53 साल बाद पुरी की रथयात्रा दो दिनों की रही। आज यात्रा का दूसरा दिन है। भगवान बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ के रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच चुके हैं। अब रथों पर ही भगवान की पूजा आरती होगी। इसके बाद राजभोग लगेगा। 9 जुलाई को भगवान मंदिर में प्रवेश करेंगे।
अगले 7 दिनों तक तीनों रथ यहीं रहेंगे। 11 जुलाई को हेरापंचमी मनेगी। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी जी भगवान से मिलने आती हैं। 15 जुलाई, सोमवार को तीनों भगवान अपने रथों में बैठकर मंदिर को लौटेंगे। भगवान के मंदिर लौटने वाली यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
कल (7 जुलाई) यात्रा का पहला दिन था। शाम 5 बजे के बाद शुरू हुई रथयात्रा सूर्यास्त के ही साथ रोक दी गई थी, भगवान जगन्नाथ का रथ सिर्फ 5 मीटर ही आगे बढ़ा था।
इस साल रथ यात्रा दो दिन क्यों?
जगन्नाथ मंदिर के पंचांगकर्ता डॉ. ज्योति प्रसाद के मुताबिक, हर साल जगन्नाथ रथयात्रा एक दिन की होती है, लेकिन इस बार दो दिन की है। इससे पहले 1971 में यह यात्रा दो दिन की थी। तिथियां घटने की वजह से ऐसा हुआ।
दरअसल, हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद वे बीमार हो जाते हैं और आषाढ़ कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक बीमार रहते हैं, इस दौरान वे दर्शन नहीं देते।
16वें दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता है और नवयौवन के दर्शन होते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से रथयात्रा शुरू होती है।
इस साल तिथियां घटने से आषाढ़ कृष्ण पक्ष में 15 नहीं, 13 ही दिन थे। इस वजह से भगवान के ठीक होने का 16वां दिन द्वितीया पर था। इसी तिथि पर रथयात्रा भी निकाली जाती है।
7 जुलाई को भगवान के ठीक होने के बाद की पूजन विधियां दिनभर चलीं। इसी दिन रथयात्रा निकलना जरूरी था। इस वजह से 7 जुलाई की शाम को ही रथयात्रा शुरू की गई। यात्रा सूर्यास्त तक ही निकाली जाती है। इसलिए रविवार को रथ सिर्फ 5 मीटर ही खींचा गया था।
आज दिनभर यात्रा में क्या-क्या हुआ,
पुरी रथयात्रा की परंपरा कब से शुरू हुई, इसकी पुख्ता जानकारी कहीं नहीं है। पुराणों के मुताबिक यह सतयुग से चली आ रही है। स्कंद पुराण के मुताबिक द्वापर युग से पहले सिर्फ भगवान विष्णु की रथ यात्रा होती थी। उन्हें नीलमाधव नाम से पूजा जाता था। द्वापर युग के बाद श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा के रथ शामिल हुए।
अपडेट्स

तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच गए हैं। अब रथों पर ही भगवान की पूजा होगी। इसके बाद भोग लगेगा। फिर संध्या दर्शन की तैयारियां होंगी।
रथयात्रा में दो अलग-अलग घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई है। भगदड़ की वजह से करीब 130 लोग घायल हुए हैं। उनकी मौत पर दुख व्यक्त करते हुए ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने मृतक के परिजन के लिए 4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है।
बलभद्र और सुभद्रा के रथ पहुंचे गुंडिचा मंदिर
देवी सुभद्रा का रथ बलभद्र के रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच गए हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ इनसे थोड़ा पीछे है।
गुंडिचा मंदिर से डेढ़ किलोमीटर दूर है देवी सुभद्रा का रथ
देवी सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ मेडिकल चौराहे तक पहुंच गया है। ये जगह गुंडिचा मंदिर से करीब डेढ़ किमी दूर है। देवी सुभद्रा से करीब 500 मीटर दूर भगवान जगन्नाथ का रथ चल रहा है।
सुबह 9.30 के बाद सबसे पहले भगवान बलभद्र का रथ ‘तालध्वज’ खींचा गया। ये रथ थोड़ी देर में गुंडिचा मंदिर पहुंचने वाला है। इसके बाद देवी सुभद्रा का रथ गुंडिचा पहुंचेगा।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तक भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के यहां रहते हैं। दशमी (15 जुलाई) को तीनों रथ पुरी के मुख्य मंदिर लौट आएंगे। लौटने की यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
आज रथयात्रा का दूसरा दिन है और कल की तरह आज भी लाखों भक्त भगवान के दर्शन करने पहुंचे हैं।

भक्तों को गर्मी से राहत दिलाने के लिए पानी की फुहारों का छिड़काव किया जा रहा है।

ये देवी सुभद्रा का रथ है। देवी को जगत जननी माना जाता है। बलभद्र और जगन्नाथ के बीच में सुभद्रा का रथ चल रहा है।

रथयात्रा के रास्ते पर भक्तों की भीड़ काफी अधिक है। लोगों रथों को चारों और से घेर रखा है। इस वजह से रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। पुलिस फोर्स लोगों को हटाकर रथ के लिए रास्ता बना रही है और फिर रथ को खींचा जा रहा है।