भारत में आतंकवाद एक गंभीर और जटिल समस्या है, जो कई सालों से देश की शांति और सुरक्षा को चुनौती दे रही है. यह न केवल लोगों की जान लेता है, बल्कि देश के विकास और एकता को भी नुकसान पहुँचाता है. आतंकवाद के कई रूप हैं, जैसे सीमा पार से आने वाला आतंकवाद, स्थानीय लोगों का कट्टरपंथीकरण, साइबर हमले, नक्सलवाद, और पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद. इन सभी खतरों से निपटने के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन यह समस्या अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. इस लेख में हम आतंकवाद के विभिन्न पहलुओं, खासकर 2008 के मुंबई हमलों और हाल के पहलगाम आतंकी हमले, के बारे में बात करेंगे. साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि भारत इस खतरे से लड़ने के लिए क्या कर रहा है और भविष्य में क्या किया जा सकता है.
2008 के मुंबई हमले, जिन्हें 26/11 हमले भी कहा जाता है, भारत में आतंकवाद के सबसे भयानक उदाहरणों में से एक हैं. ये हमले 26 नवंबर से 29 नवंबर 2008 तक चार दिन तक चले. इस दौरान, लश्कर-ए-तैयबा नाम के एक पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन के 10 आतंकवादियों ने मुंबई शहर में कई जगहों पर हमला किया. इन जगहों में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, लियोपोल्ड कैफे, टैक्सी में बम धमाके, ताजमहल पैलेस होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, और नरीमन हाउस शामिल थे. इन हमलों में 175 लोग मारे गए, जिनमें 9 आतंकवादी भी शामिल थे, और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए. जांच से पता चला कि इन हमलों की योजना और आतंकवादियों की ट्रेनिंग पाकिस्तान में हुई थी. पाकिस्तान के कुछ अधिकारियों और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी माना कि इन हमलों में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों का हाथ था. इन हमलों के बाद भारत सरकार ने आतंकवाद से लड़ने के लिए कई बड़े कदम उठाए. सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानून यूपीए (UAPA) को और सख्त किया और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) बनाई, जो आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करती है.
मुंबई हमलों के बाद आतंकवाद का स्वरूप बदलता जा रहा है. पहले आतंकवाद ज्यादातर सीमा पार से आता था, खासकर पाकिस्तान से. यह आज भी एक बड़ी समस्या है. उदाहरण के लिए, 2019 में पुलवामा में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए. हाल ही में, 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक भयानक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 से 28 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे. यह हमला पहलगाम के बैसरन घाटी में हुआ, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है. इस हमले में दो विदेशी पर्यटक (इजरायल और इटली से) और दो स्थानीय लोग भी मारे गए. आतंकवादियों ने पर्यटकों से उनका नाम और धर्म पूछा और हिंदू नाम सुनकर गोलीबारी शुरू कर दी. कुछ आतंकवादी पुलिस की वर्दी में थे, जिसके कारण पर्यटकों और स्थानीय लोगों को शुरू में उन पर शक नहीं हुआ. इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली. यह 2019 के पुलवामा हमले के बाद कश्मीर घाटी का सबसे बड़ा आतंकी हमला था. हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब का दौरा बीच में छोड़कर भारत लौटे और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) की बैठक की, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ पांच बड़े फैसले लिए गए, जैसे सिंधु जल समझौते से पीछे हटना.
आतंकवाद का खतरा अब केवल सीमा पार से ही नहीं है. देश के अंदर भी कुछ लोग कट्टरपंथी विचारों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, खासकर कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में. सोशल मीडिया और टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म इस कट्टरपंथ को और बढ़ावा दे रहे हैं. लोग ऑनलाइन आतंकवादी संगठनों के प्रचार को देखते हैं और उनके जाल में फंस जाते हैं. इसके अलावा, साइबर आतंकवाद एक नया और बड़ा खतरा बनकर उभरा है. आतंकवादी संगठन इंटरनेट का इस्तेमाल लोगों को भर्ती करने, अपने प्रचार को फैलाने, और महत्वपूर्ण जगहों, जैसे बिजली ग्रिड या बैंकों, पर हमला करने के लिए कर रहे हैं. भारत दुनिया में साइबर हमलों का दूसरा सबसे बड़ा निशाना बन चुका है.
नक्सलवाद भी भारत के लिए एक बड़ी आंतरिक समस्या है. यह मध्य और पूर्वी भारत के कई हिस्सों में फैला हुआ है, जहाँ नक्सली समूह गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाते हैं और सरकार के खिलाफ लड़ते हैं. पूर्वोत्तर राज्यों, जैसे मणिपुर और नगालैंड, में भी उग्रवाद की समस्या है. यहाँ के उग्रवादी समूह बड़े आतंकवादी नेटवर्क और विदेशी हथियारों के स्रोतों से जुड़े हुए हैं. साथ ही, शहरी इलाकों में संगठित अपराध और आतंकवाद का गठजोड़ भी बढ़ रहा है. ये अपराधी समूह तस्करी, उगाही, और ड्रग्स के धंधे के जरिए आतंकवाद को पैसा मुहैया कराते हैं.
भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के लिए कई कदम उठा रही है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच और अपराधियों को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाती है. रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी है, जो विदेशों से आने वाले आतंकवादी खतरों पर नजर रखती है. इसके अलावा, भारत में कई कानून हैं जो आतंकवाद से लड़ने में मदद करते हैं. गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) 1967 आतंकवादी अपराधियों पर मुकदमा चलाने का कानूनी आधार देता है. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) 1980 सरकार को उन लोगों को हिरासत में लेने की अनुमति देता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं.
आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के पास कई सुरक्षा बल भी हैं. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF), जैसे CRPF, BSF, ITBP, और SSB, सीमावर्ती और संघर्ष वाले इलाकों में आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) एक खास बल है जो बंधक बचाव जैसे जोखिम भरे मिशनों को अंजाम देता है. नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NatGrid) एक ऐसा सिस्टम है जो अलग-अलग एजेंसियों से जानकारी इकट्ठा करके खतरों का विश्लेषण करता है.
हालांकि भारत ने आतंकवाद से लड़ने के लिए बहुत कुछ किया है, फिर भी कुछ और कदम उठाने की जरूरत है. सबसे पहले, अलग-अलग एजेंसियों, जैसे NIA, IB, R&AW, और राज्य पुलिस, के बीच जानकारी का आदान-प्रदान और बेहतर करना होगा. अगर ये एजेंसियाँ एक साथ मिलकर काम करें, तो आतंकवादी हमलों को रोकना आसान हो सकता है. दूसरा, भारत को आधुनिक तकनीकों, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), का इस्तेमाल करना चाहिए. AI की मदद से चेहरों की पहचान, डेटा विश्लेषण, और खतरों की भविष्यवाणी करना आसान हो सकता है. तीसरा, सीमा सुरक्षा को और मजबूत करने की जरूरत है. स्मार्ट फेंसिंग, जिसमें सेंसर और कैमरे हों, और ड्रोन की मदद से सीमा पर नजर रखी जा सकती है. इससे आतंकवादियों की घुसपैठ को रोका जा सकता है.
आतंकवाद को रोकने के लिए सिर्फ सरकार के कदम ही काफी नहीं हैं. स्थानीय समुदायों को भी इसमें शामिल करना होगा. खासकर कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे इलाकों में, जहाँ कट्टरपंथ का खतरा ज्यादा है, लोगों के साथ विश्वास बनाना जरूरी है. सरकार को युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के कार्यक्रम शुरू करने चाहिए ताकि वे गलत रास्ते पर न जाएँ. साथ ही, आतंकवाद विरोधी कानूनों को और मजबूत करना होगा, खासकर साइबर आतंकवाद और अकेले हमलावरों (लोन वुल्फ) जैसे नए खतरों से निपटने के लिए.
साइबर आतंकवाद से लड़ने के लिए एक खास साइबर सुरक्षा विभाग बनाना चाहिए, जो महत्वपूर्ण जगहों, जैसे बैंकों और बिजली ग्रिड, को सुरक्षित रखे. इसके अलावा, आम लोगों को भी आतंकवाद के खिलाफ जागरूक करना जरूरी है. जागरूकता अभियान और सामुदायिक सतर्कता कार्यक्रमों के जरिए लोग संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी दे सकते हैं. गाँवों में विलेज डिफेंस गार्ड जैसे पुराने कार्यक्रमों को फिर से शुरू करना भी फायदेमंद हो सकता है.
आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत को अपने आर्थिक और कूटनीतिक रास्तों का भी इस्तेमाल करना चाहिए. जो देश आतंकवादी समूहों को पनाह देते हैं या उनका समर्थन करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए, पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते से पीछे हटने का फैसला लिया. ऐसे कदम आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों पर दबाव डाल सकते हैं.
अंत में, आतंकवाद भारत के लिए एक जटिल और लगातार बढ़ने वाला खतरा है. 2008 के मुंबई हमलों और 2025 के पहलगाम हमले ने दिखाया कि आतंकवाद कितना खतरनाक हो सकता है. आज आतंकवाद के कई रूप हैं, जैसे सीमा पार आतंकवाद, साइबर हमले, नक्सलवाद, और उग्रवाद. इन सभी से निपटने के लिए भारत को अपनी रणनीतियों को और मजबूत करना होगा. इसमें खुफिया जानकारी का बेहतर आदान-प्रदान, आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल, सीमा सुरक्षा, और स्थानीय समुदायों का सहयोग शामिल है. साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सहयोग बढ़ाना होगा ताकि आतंकवाद को पूरी तरह खत्म किया जा सके. भारत को आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी और हर संभव तरीके से इस खतरे का मुकाबला करना होगा.