दिल्ली में 2025 विधानसभा चुनाव के नतीजे आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए एक बड़ा झटका साबित हुए. 2015 और 2020 में शानदार जीत दर्ज करने वाली यह पार्टी इस बार सत्ता से बाहर हो गई. भारतीय जनता पार्टी 70 में से 48 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं. ऐसे में बीजेपी दिल्ली में 27 साल बाद सत्ता में वापसी कर रही है, जबकि AAP सिर्फ 23 सीटों पर सिमट रही है. कांग्रेस का इस बार भी खाता तक नहीं खुला.
AAP ने 2013 में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जन आंदोलन के रूप में शुरुआत की थी. लेकिन हाल के सालों में पार्टी और उसके नेताओं पर कई विवादों और आरोपों ने उनकी छवि को प्रभावित किया है. पार्टी के हार के पीछे कई बड़े कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण रहा भ्रष्टाचार के आरोप. इन्हीं आरोपों ने पार्टी की छवि को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया.
शराब नीति घोटाला और भ्रष्टाचार के आरोप
आम आदमी पार्टी ने हमेशा खुद को ईमानदारी की राजनीति करने वाली पार्टी बताया था, लेकिन शराब नीति घोटाले ने इस छवि को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया. दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रहते अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार किया गया, इससे पार्टी की स्थिति और कमजोर हो गई. ‘केजरीवाल बनाम मोदी’ की लड़ाई में भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और AAP को भ्रष्टाचार से जुड़ी पार्टी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
वहीं, पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक मनीष सिसोदिया का नाम भी घोटाले में आया और जेल जाना पड़ा. स्वास्थ्य मंत्री रहते सत्येंद्र जैन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और वह लंबे समय तक जेल में रहे. इन मामलों के चलते AAP को भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी की छवि खोनी पड़ी और जनता का भरोसा कम हो गया. कई AAP नेताओं पर ED और CBI जैसी एजेंसियों की जांच चल रही है, जिससे पार्टी की छवि प्रभावित हुई है.
क्या भ्रष्टाचार के आरोप ही सही में AAP की हार की सबसे बड़ी वजह?
इस पर एबीपी न्यूज ने कुछ विशेषज्ञों ने बात की. वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सौरभ का कहना है कि भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है. असल में चुनाव का निष्पक्ष न होना ही हार का कारण है. आज चुनाव आयोग की निष्पक्षता जरूरी है. चुनाव नतीजों से एक दिन पहले भी राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यही आरोप लगाए थे.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार ने एबीपी न्यूज से कहा, ‘आम आदमी पार्टी के हार के बहुत से कारण हो सकते हैं. हर कोई अपनी अपनी वजह बता सकता है. केजरीवाल ने ही दिल्ली में फ्री योजनाओं की शुरुआत की थी और फिर बीजेपी-कांग्रेस दोनों पार्टियों ने इन योजनाओं को स्वीकार किया और बढ़ चढ़कर प्रचार भी किया. ऐसा लगता है जनता ने शीश महल जैसे मुद्दों को महत्व दिया है. लेकिन ये चुनाव नतीजे कितने सही हैं, इस पर भी सवाल उठता है.’
भ्रष्टाचार नहीं, तो AAP की हार के फैक्टर क्या रहे?
एबीपी न्यूज ने राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार विष्णु शर्मा से भी बातचीत की. उन्होंने बताया, भ्रष्टाचार तो एक बड़ा कारण है ही. असल में जब केजरीवाल आए थे, तो इन्होंने जनता के मन में बहुत ज्यादा उम्मीदें जगा दी थीं. लेकिन, ये टिके सिर्फ रेवड़ियों और अल्पसंख्यकों की राजनीति पर रहे. दिल्ली में बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के काम होने थे, यमुना साफ होनी थी, लेकिन नहीं हुई. जनता से सिर्फ बड़ी बड़ी हवा-हवाई बातें करते रहे.
विष्णु शर्मा ने आगे कहा, “भ्रष्टाचार तो तब हुआ, जब इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीति ले जाने और दूसरे राज्यों में भी अपनी सरकार बनाने का सोचा. इसके लिए इनको फंड की जरूरत थी. तो शराब नीति के जरिए पैसा उगाने की कोशिश की गई. गोवा चुनाव में पैसे खर्च का मामला शराब नीति से जुड़ा भी. इनके सपनों के आगे दिल्लीवासियों के सपने पीछे रहे गए. केजरीवाल ने वादे बहुत किए, उनमें से बहुत कम पूरे किए. इसके अलावा, इन्होंने अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकार में रोजगार के काम दे दिए. जनता समझ रही थी कि ये लंबे जाने वाले नहीं है. दिल्ली दंगों में भी पार्टी और कार्यकर्ताओं की भूमिका पर सवाल उठे. आप की हार में कांग्रेस की भी एक बड़ा भूमिका है, कांग्रेस को लगा कि जबतक इन्हें हराएंगे नहीं, हमें कोई सीरियस लेगा नहीं.”
भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ?
आम आदमी पार्टी का जन्म भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन से हुआ, जिसे ‘जनलोकपाल आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है. यह आंदोलन 2011 में समाजसेवी अन्ना हजारे की अगुवाई में शुरू हुआ था. इसका मकसद था भारत में मजबूत लोकपाल कानून लागू करवाना, ताकि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सके. इसी आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने का फैसला किया और 2012 में आम आदमी पार्टी की स्थापना की.
अन्ना हज़ारे, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कई अन्य लोग इस आंदोलन में शामिल थे. आंदोलनकारियों ने ‘जनलोकपाल बिल’ पास करने की मांग की, जिससे एक स्वतंत्र संस्था (लोकपाल) बनाई जाए जो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सके. लाखों लोग सड़कों पर उतरे और सरकार पर दबाव बनाया, लेकिन 2011 में यूपीए सरकार ने इस बिल को पास नहीं किया.
जब सरकार ने जनलोकपाल बिल पास नहीं किया, तो अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों को लगा कि सिर्फ आंदोलन से कुछ नहीं होगा, बल्कि सिस्टम के अंदर जाकर बदलाव लाना पड़ेगा. अन्ना हज़ारे ने राजनीति में आने से मना कर दिया, लेकिन केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी की स्थापना कर दी. पार्टी का मुख्य नारा था ‘ईमानदार राजनीति’ और भ्रष्टाचार को खत्म करना.
AAP की पहली चुनावी सफलता (2013)
आप ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और 28 सीटें जीतकर भाजपा और कांग्रेस को चौंका दिया. अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई और 49 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे. सरकार ने पानी और बिजली के दाम कम किए और भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन शुरू की. लेकिन जब जनलोकपाल बिल पास नहीं हुआ, तो केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया.
दिल्ली में जबरदस्त वापसी (2015)
2015 के चुनाव में AAP ने 70 में से 67 सीटें जीतकर भाजपा और कांग्रेस को पूरी तरह हरा दिया. केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और मुफ्त सेवाओं पर ध्यान दिया. AAP की सरकार ने दावा किया कि उन्होंने दिल्ली में भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया.
लेकिन, AAP जिस मुद्दे पर बनी थी, समय के साथ उस पर खुद ही भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे. 2024 में केजरीवाल की गिरफ्तारी और 2025 दिल्ली चुनाव में हार ने पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए. अब सवाल यह है कि क्या AAP अपने पुराने स्वरूप में लौट पाएगी या फिर यह आंदोलन से जन्मी पार्टी राजनीति की भेंट चढ़ गई?