बिहार में जाति आधारित सर्वे के आंकड़े जारी हो गए हैं। इस सर्वे के जो आंकड़े सामने आए हैं, अगर वो सही हैं तो ये बीजेपी के लिए बिहार में थोड़ी टेंशन की बात हो सकती है। दरअसल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की नजर बिहार की 60 सीटों पर है। ऐसे में अगर एनडीए उम्मीदवारों को जिताने के लिए अपनी ही ऊंची जातियों के बीच समर्थन और गठबंधन सहयोगियों के नेताओं के जातिगत प्रभाव को एक साथ लाने के लिए बीजेपी को चमत्कार की उम्मीद करनी होगी। राज्य में 40 लोकसभा सीट हैं। बीजेपी बिहार में अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश कर रही है, जब उसने एनडीए में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के साथ गठबंधन कर 39 सीटें जीती थीं।
बीजेपी के लिए ‘ठाकुर का कुआं’ मुसीबत?
इधर 2024 के चुनाव से पहले बिहार में ‘ठाकुर का कुआं’ पर शुरू हुआ विवाद ब्राह्मणों और ठाकुरों/राजपूतों को टकराव के रास्ते ले आया है। राजद सांसद मनोज कुमार झा ने ‘ठाकुर का कुआं’ कविता को राज्यसभा में सुनाते हुए अपने अंदर के ठाकुर को मारने की अपील की। उनकी अपील पर गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए आनंद मोहन ने मनोज कुमार झा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आनंद मोहन के सर्थमन में कई राजपूत नेताओं के बयान भी आए हैं। इसके बाद बिहार में इस विवाद को ब्राह्मण बनाम ठाकुर की नजर से देखा जाने लगा है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि बीजेपी को इस स्थिति से बहुत की समझदारी से निपटने की जरूरत होगी।
बिहार में अगड़ी जातियों की आबादी कुल 13 प्रतिशत है। इसमें ब्राह्मण 4.7, राजपूत 4.2, भूमिहार 2.9 और कायस्त 1.2 फीसदी हैं। इन जातियों को बीजेपी का वोटर माना जाता है। अगर ब्राह्मण और ठाकुर का विवाद यूं ही चलता रहता है तो इसका नुकसान बीजेपी को हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक, आनंद मोहन ‘ठाकुर’ के सहारे अपनी राजनीति और बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपी) को फिर से एक्टिव करना चाहता हैं। बिहार में इस वक्त राजपूतों का कोई बड़ा नेता नहीं है।अगर आनंद मोहन इसमें कामयाब हो जाते हैं तो इसका नुकसान बीजेपी को हो सकता है।
बीजेपी की बेचैनी से महागठबंधन खुश?
इधर जातिगत सर्वे के आंकड़ों पर बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने एक ही बात कही- ‘हम पहले जाति आधारित जनगणना के विवरणों का अध्ययन और विश्लेषण करेंगे, और फिर नीतिगत दृष्टिकोण पर अपना बयान देंगे।’ पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राज्य नेतृत्व इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य शीर्ष नेताओं के संपर्क में है। उन्हें उम्मीद है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व केंद्रीय सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों और ईबीसी के बीच आरक्षण / कोटा के न्यायपूर्ण विभाजन की जरूरत पर रोहिणी आयोग की सिफारिशों के बारे में कुछ कर सकता है। इधर प्रत्यक्ष तौर पर भी बीजेपी की बेचैनी जेडीयू, राजद, कांग्रेस और वाम दलों वाले छह दलों के महागठबंधन खुश नजर आ रहा है।