मालदीव (Maldives) में विपक्ष के उम्मीदवार मोहम्मद मुइजू (Mohamed Muizzu) नए राष्ट्रपति चुने गए हैं. प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (PPM) नेता मुइजू ने 53 फीसदी वोट हासिल कर मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को हराया. मुइजू चीन के तगड़े समर्थक हैं, ऐसे में उनका चुना जाना भारत के लिए एक झटका माना जा रहा है.
कौन हैं मोहम्मद मुइजू (Who is Mohamed Muizzu)
45 वर्षीय मोहम्मद मुइजू सिविल इंजीनियर हैं और वर्तमान में माले शहर के मेयर भी हैं. मुइजू, चीनी नीतियों के प्रबल समर्थक हैं. अपने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार कहते रहे हैं कि अगर वो राष्ट्रपति बने तो मालदीव में चीनी निवेश में बढ़ोतरी होगी. खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में चीन और करीब आएगा. राष्ट्रपति चुनाव से कुछ वक्त पहले ही मुइजू चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के नेताओं से मिले थे और कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूत करने पर जोर देंगे.
क्यों कहे जा रहे थे प्रॉक्सी कैंडिडेट?
मोहम्मद मुइजू, मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन (Abdulla Yameen) के बेहद करीबी हैं और उन्हें अपना गुरु मानते हैं. यामीन की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. मुइजू जब राष्ट्रपति चुनाव में उतरे तो उन्हें यामीन का प्रॉक्सी भी कहा गया. आपको बता दें कि अब्दुल्ला यामीन ही वो शख़्स थे जिन्होंने भारत के खिलाफ ‘इंडिया आउट’ कैंपेन की शुरुआत की थी.
मुइजू का जीतना भारत के लिए सिरदर्द क्यों?
मालदीव, रणनीतिक नजरिये से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. हिंद महासागर से गुजरने वाले मालवाहक जहाज, मालदीव से होकर जाते हैं. एक तरीक से यह सेंटर प्वाइंट है. साल 2018 में जब इब्राहिम मोहम्मद सोलिह पहली बार राष्ट्रपति बने तो भारत-मालदीव और करीब आए. हिंद महासागर के इस इलाके पर भारत की पकड़ मजबूत होती गई. भारत ने मालदीव में अरबों डॉलर का निवेश किया. तमाम प्रोजेक्ट लगाए.
चुनाव मालदीव में लेकिन उसमें भारत-चीन की साख दांव पर क्यों
भारत ने मालदीव को 4 लड़ाकू विमान भी दिये. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय सेना की एक छोटी टुकड़ी भी मालदीव में है. चीनी समर्थक मुइजू इसका तीखा विरोध करते आ रहे हैं. उन्होंने कहा था कि अगर सत्ता में आए तो सबसे पहले भारतीय सैन्य टुकड़ी से छुटकारा पाएंगे. साथ ही भारत के साथ व्यापारिक-सामरिक समझौतों की समीक्षा भी करेंगे.
कहां खड़ा है चीन?
इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से पहले 2013 से 2018 तक अब्दुल्ला यामीन, मालदीव के राष्ट्रपति थे और उनकी चीन से करीबी थी. यामीन की अगुवाई में ही मालदीव ने चीन के महात्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीसिएटिव (Belt and Road Initiative) में शामिल होने का फैसला लिया था. लेकिन यामीन के सत्ता से जाते ही समीकरण बदल गए. यह चीन के लिए बड़ा झटका था. सोलिह के कार्यकाल में जिस तरीके से भारत और मालदीव करीब आए, वह चीन को रास नहीं आ रहा था.
क्या है ‘ऑपरेशन कैक्टस’?
मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजू के भारत विरोध की वजह 35 साल पुराने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ में भी छिपी है. साल 1988 में मौमून अब्दुल गयूम (Maumoon Abdul Gayoom) मालदीव के राष्ट्रपति हुआ करते थे. मालदीव के प्रवासी कारोबारी अब्दुल्ला लुत्फी ने पीपुल्स लिबरेशन आर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल इलम (PLOTE) की मदद से गयूम के खिलाफ बगावत कर दी और तख्तापलट की तैयारी करने लगे. एयरपोर्ट से लेकर बंदरगाह, सरकारी टेलीविजन और तमाम कार्यालयों पर कब्जा कर लिया.
तब अब्दुल गयूम ने तमाम देशों से मदद मांगी और लोकतंत्र बचाने की अपील की, जिसमें भारत भी शामिल था. भारत ने फौरन मालदीव में अपनी सेना भेज दी. भारतीय सैनिकों ने न सिर्फ मौमून अब्दुल गयूम की जान बचाई. बल्कि तख्तापलट होने से भी रोका था. मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजू, कई मौकों पर ‘ऑपरेशन कैक्टस’ का जिक्र करते हुए कहते रहे हैं कि भारत ने मालदीव की संप्रभुता और निजी मामले में दखल दी थी.