शरद पवार ने अपनी राजनीतिक इकाई एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर देश और महाराष्ट्र की राजनीति की पेचीदा पिच पर नई गुगली फेंकी है। हालांकि बाद में पार्टी के भीतर का पारा मापने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा वापस भी ले लिया है। इसके बावजूद‚ राजनीतिक दांव–पेच में माहिर 82 वर्षीय इस मराठा क्षत्रप की गुगली का मर्म अक्सर बहुत बाद में समझ आता है। इसके बावजूद उनके खानदान‚ पार्टी और उनकी राजनीति की प्रयोगशाला महाराष्ट्र के मौजूदा समीकरणों के मद्देनजर उनके इस्तीफे को सारे पत्ते अपने हाथ में रखने की अंतिम कोशिश माना जा रहा है। पवार के खानदान‚ पार्टी तथा उनकी अपनी राजनीतिक चालों में हाल में अनेक विरोधाभास सामने आए हैं।
एनसीपी में पवार के महाराष्ट्र में राजनीतिक उत्तराधिकारी समझे जाने वाले अजीत पवार की हालिया गतिविधियां और उनके बयान अपने काका से बहुधा विरोधाभासी रहे हैं। कभी वे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़़णवीस से मिलने के बाद मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा का इजहार करके खुद के बीजेपी से हाथ मिलाने के कयास पैदा करते हैं। फिर अचानक अजीत अपने काका शरद पवार से मिलने के बाद आजीवन एनसीपी में ही बने रहने और महाराष्ट्र विकास आघाडी की मजबूती के बयान से पलटी मारते हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री शिंदे सहित दलबदलू शिवसेना के १६ विधायकों की सदस्यता रद्द होने की आशंका वाली सर्वोच्च अदालत की तलवार से अजीत के राजनीतिक दांव अभी संशय में ही हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में पवार सीनियर के दाएं हाथ समझे जाने वाले प्रफुल्ल पटेल को भी अजीत के बीजेपी से हाथ मिलाने के दांव में भागीदार माना जा रहा है। शरद पवार ने खुद भी पिछले महीने हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उद्योगपति गौतम अडाणी पर लगे धोखाधडी एवं अज्ञात स्रोतों से अपनी कंपनी में पैसा लगवाने के आरोपों का सार्वजनिक विरोध करके कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों से अलग लाइन अपनाई।
उसके बाद उन्होंने अडाणी की कॉरपोरेट प्रैक्टिस एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा सरकारी कंपनियों एवं संपत्तियों को गौतम अडाणी को देने में पक्षपात संबंधी आरोपों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग से असहमति जता दी। पवार सीनियर ने गौतम अडाणी की अपने मुंबई स्थित बंगले पर दो घंटे तक मेहमाननवाजी करके देश के समूचे राजनीतिक विपक्ष के विपरीत अपनी चाल भी चली। ये दीगर है कि उसी बीच वे नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मिले और विपक्षी एकता के प्रयासों का समर्थन किया।
इस प्रकार लगातार सियासी विरोधाभासों की बदौलत सुर्खियों में बने रह कर शरद पवार ने अब अपनी पार्टी एवं खानदान को ही अपनी गुगली से हिट विकेट कर दिया। दो मई को अपने संस्मरणों की दूसरी किश्त के विमोचन के मौके पर वाईबी चव्हाण सभागार में उनके इस्तीफे की घोषणा से विचलित पार्टी नेताओं ने जब ‘साहेब’ से पद पर बने रहने की अपील की तो उन्होंने दो–तीन दिन का समय मांग कर उन्हें शांत किया। हालांकि बाद में अजीत पवार ने बताया कि पवार सीनियर ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कमेटी को नया अध्यक्ष चुनने को कहा है। इस कमेटी में अजीत पवार‚ सुप्रिया सुले‚ प्रफुल्ल पटेल‚ छगन भुजबल‚ पवार ने कहा कि उन्होंने लगातार कई साल पार्टी का नेतृत्व किया है‚ अब वे इस जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं। हालांकि उन्होंने साफ कहा कि वे सक्रिय राजनीति से संन्यास नहीं ले रहे। राज्य सभा में उनका कार्यकाल अभी तीन साल बाकी है।
पार्टी कार्यकर्ताओं ने हालांकि उनके फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करके आत्महत्या की धमकी दी मगर उनके भतीजे अजीत ने एक बार भी उनसे अध्यक्ष पद पर बने रहने को नहीं कहा। हो सकता है कि सुप्रिया एवं अजीत को उनके फैसले की भनक रही होगी। इसके बावजूद पवार सीनियर का एनसीपी अध्यक्ष पद से खुद को अलग करना महाराष्ट्र एवं देश की बडी राजनीतिक घटना है। इसमें राजनीतिक कारणों से इतर स्वास्थ्य एवं उम्र संबंधी दिक्कतों के योगदान से भी इंकार नहीं किया जा सकता। पवार के पार्टी नेतृत्व छोडने की घोाणा को कुछ लोग महाराष्ट्र के महा विकास आघाडी गठबंधन के अंत की चेतावनी भी मान रहे हैं। आगामी लोक सभा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में क्रमशः एक साल एवं डेढ साल बचा है। ऐसे में कयास यह भी लग रहा है कि एनसीपी कहीं सुप्रिया और अजीत के बीच बंट न जाए। शरद पवार के कदम के बाद बीजेपी द्वारा महाराष्ट्र की राजनीति में बडे बदलाव की संभावना जताना इस कयास का आधार है। बीजेपी के केंद्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने एनसीपी के अस्तित्व पर संकट बताया है। हालांकि पार्टी कार्यकर्ताओं ने जितनी शिद्दत से ‘साहेब’ से इस्तीफा वापस लेने का इसरार किया है‚ वह बागियों के लिए चेतावनी है। इसलिए अजीत के बीजेपी से हाथ मिलाने के मंसूबों की अटकलों पर पवार सीनियर ने फिलहाल तो पानी फेर दिया है। शरद पवार के राजनीतिक दांव का पूर्वानुमान हमेशा ही कठिन रहा है। अपनी राजनीतिक सूझबूझ एवं नेतृत्व क्षमता के बूते वे जहां २७ साल की कच्ची उम्र में विधायक चुने गए वहीं उन्होंने जब देश के सबसे अमीर राज्य महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की पहली बार शपथ ली तब वे महज ३८ साल के थे। उन्होंने साल १९७८ में मराठा सरदार वसंतदादा पाटिल की कांग्रेस सरकार से विधायक तोडकर विपक्षी जनता पार्टी और अपने धुर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एसबी चव्हाण की मदद से सरकार बनाई थी। पवार सीनियर चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्रीय रक्षा एवं कृषि मंत्री रहे हैं। एनसीपी का गठन उन्होंने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के विरोध में २४ साल पहले साल १९९९ में कांग्रेस छोडकर किया था। ये दीगर है कि उसके कुछ ही महीने बाद उसी साल हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलने पर सोनिया नीत कांग्रेस से ही हाथ मिलाकर राज्य में सरकार भी बना ली। कांग्रेस से गठबंधन में एनसीपी ने जूनियर पार्टनर रहते हुए भी पूरे १५ साल महाराष्ट्र में सरकार चलाई। फिर पवार सीनियर ने सोनिया गांधी नीत कांग्रेस के यूपीए गठबंधन में ही अगला लोक सभा चुनाव लडा। अंततः मई‚ २००४ में बनी यूपीए सरकार में अगले पूरे एक दशक केंद्रीय मंत्री भी रहे। वे विधानसभा अथवा लोक सभा का कोई भी चुनाव कभी नहीं हारे। पुणे में १२ दिसम्बर‚ १९४० को जन्मे शरद पवार से पहले उनकी मां राजनीति में थीं‚ जिन्होंने स्थानीय निकाय का चुनाव लडने वाली पहली महिला होने की हिम्मत की थी। पवार २००५ से २००८ तक बीसीसीआई यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन रहे। वे क्रिकेट की अंतराष्ट्रीय संस्था आईसीसी के अध्यक्ष २०१० में रहे।
कुल मिलाकर दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र के सबसे अनुभवी‚ खांटी और राजनीतिक मौसम विज्ञानी राजनेता शरद पवार ने अपनी शैली के अनुरूप अपनी पार्टी रूपी चाय के प्याले में तूफान पैदा कर दिया है। देखना यही है कि उनके बाद एनसीपी का क्या भविष्य होगाॽ क्या एनसीपी‚ पवार सीनियर की बेटी और सांसद सुप्रिया सुले तथा उनके भतीजे अजीत पवार के बीच बंट जाएगीॽ या फिर सुप्रिया अपने पिता की विरासत के अनुरूप पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा होंगी एवं अजीत महाराष्ट्र में अपने चाचा के मराठा राजनीतिक जहाज की पतवार थामे रहेंगेॽ
शरद पवार ने महाराष्ट्र की राजनीति की पेचीदा पिच पर नई गुगली फेंकी है। राजनीतिक दांव–पेच में माहिर ८२ वर्षीय इस मराठा क्षत्रप की गुगली का मर्म अक्सर बहुत बाद में समझ आता है। इसके बावजूद उनके खानदान‚ पार्टी और उनकी राजनीति की प्रयोगशाला महाराष्ट्र के मौजूदा समीकरणों के मद्देनजर उनके इस्तीफे को सारे पत्ते अपने हाथ में रखने की अंतिम कोशिश माना जा रहा है। पवार के खानदान‚ पार्टी तथा उनकी अपनी राजनीतिक चालों में हाल में अनेक विरोधाभास सामने आए हैं। एनसीपी में पवार के महाराष्ट्र में राजनीतिक उत्तराधिकारी समझे जाने वाले अजीत पवार की हालिया गतिविधियां और बयान अपने काका से बहुधा विरोधाभासी रहे हैं। कभी वे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री फड़़णवीस से मिलने के बाद मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा का इजहार करके खुद के बीजेपी से हाथ मिलाने के कयास पैदा करते हैं। अचानक अपने काका शरद पवार से मिलने के बाद आजीवन एनसीपी में ही बने रहने के बयान से पलटी मारते हैं …………