वसुंधरा राजे के शासन के दौरान हुए कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट मंगलवार को जयपुर में एक दिन के उपवास पर बैठे। इसके बाद बुधवार को वह पार्टी नेताओं से बातचीत के लिए दिल्ली पहुंचे। पायलट ने अपने मंच के बैकग्राउंड में कांग्रेस के चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने से परहेज किया। पायलट को राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सांसद हनुमान बेनीवाल का भी समर्थन मिला, जिन्होंने उन्हें कांग्रेस छोड़ने और नई पार्टी बनाने की सलाह दी। बेनीवाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं। सचिन पायलट नाम तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ले रहे हैं, लेकिन निशाना अशोक गहलोत पर लगा रहे हैं। इसके पीछे की वजह साफ है। पायलट किसी भी तरह से मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उन्हें अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के वादों पर यकीन नहीं है, इसलिए उन्होंने इस साल के आखिर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले आखिरी दांव चल दिया है। उनका सीधा संदेश यही है कि या तो कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करे या फिर वह अपना रास्ता अलग कर लेंगे। इसीलिए उन्होंने अनशन के वक्त जो पोस्ट लगाए, उसमें न कांग्रेस कहीं थी और न कांग्रेस के नेता। दूसरी तरफ, अशोक गहलोत पुराने चावल हैं। सियासत के मैदान में सचिन पायलट उनके सामने बच्चे हैं। पायलट ने पिछले साल सितंबर में गहलोत की सरकार गिराने में पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन सीएम के एक दांव के सामने उनकी सारी चालें धरी रह गईं। अब सचिन पायलट का सब्र जवाब दे गया है, इसलिए उन्होंने बगावती तेवर अपनाए हैं। सियासत में सब्र से ज्यादा तजुर्बा काम आता है, और अशोक गहलोत के पास 50 साल का अनुभव है। वह ये साबित करने की कोशिश करेंगे कि पायलट ने पर्दे के पीछे बीजेपी से हाथ मिला लिया है, और उनके जहाज को कमांड बीजेपी से मिल रही है। इस मामले में पायलट के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का फोकस राजस्थान पर नहीं दिख रहा है। वे कुछ दूसरी चुनौतियों का सामना करने में लगे हुए हैं।
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