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प्रचंड क्यों राष्ट्रपति प्रणाली चाहते हैं?

शेर बहादुर देउबा और चीन के पैरोकार केपी शर्मा ओली के बीच मुकाबला

UB India News by UB India News
November 21, 2022
in अन्तर्राष्ट्रीय
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प्रचंड क्यों राष्ट्रपति प्रणाली चाहते हैं?
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नेपाल में आज चुनाव हो रहे हैं। इसके लिए वोटिंग शुरू हो गई है जो शाम 5 बजे तक चलेगी। यहां संसद और विधानसभा के चुनाव के लिए एकसाथ वोटिंग हो रही है। मुकाबला वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के बीच है।

नेपाल निर्वाचन आयोग के मुताबिक, 22,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान हो रहा है।
नेपाल निर्वाचन आयोग के मुताबिक, 22,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान हो रहा है।
3 लाख सुरक्षाकर्मी और एक लाख जनसेवक चुनावी ड्यूटी में लगाए गए हैं। भारत ने चुनाव आयोग को अलग-अलग तरह के 80 नए वाहन दिए हैं।
3 लाख सुरक्षाकर्मी और एक लाख जनसेवक चुनावी ड्यूटी में लगाए गए हैं। भारत ने चुनाव आयोग को अलग-अलग तरह के 80 नए वाहन दिए हैं।

संसद और विधानसभा के लिए एक-साथ वोटिंग
नेपाल की संसद की कुल 275 सीटों और प्रांतीय विधानसभाओं की 550 सीटों के लिए चुनाव हो रहा है। साल 2015 में घोषित किए गए नए संविधान के बाद ये दूसरा चुनाव है। देश के 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा वोटर अपनी सरकार को चुनेंगे। इसके रिजल्ट एक हफ्ते में आने की उम्मीद है।

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नेपाल में आज 20 नवंबर को हो रहे संसद और प्रदेश विधानसभा के चुनाव में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी ‘माओवादी केंद्र’ ने अपने चुनावी घोषणापत्र में राष्ट्रपति और प्रदेश कार्यपालिका अध्यक्ष के प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था करने का वायदा किया है। इसने नेपाल में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। माओवादियों का कहना है कि राष्ट्रपति व्यवस्था देश में राजनीतिक स्थिरिता, संपन्नता और शांति के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही माओवादी सांसदों का चुनाव पूरी तरह से समानुपातिक प्रणाली से करने का वायदा अपने घोषणापत्र में किया है। माओवादी वर्तमान संसदीय व्यवस्था को समाप्त कर राष्ट्रपति प्रणाली की शासन व्यवस्था लागू करना चाहते हैं।

नेपाल का पॉलिटिकल सिस्टम बदलने में क्यों जुटे माओवादी
माओवादियों का नेपाल में राजशाही को समाप्त कर गणतंत्र लाने में बड़ा योगदान है। लगभग दस साल चले जनयुद्ध में 17 हजार लोगों के बलिदान के बाद नेपाल में संघात्मक लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हो पाई। माओवादी संघात्मक और गणतंत्र तो स्थापित करने में सफल रहे, लेकिन लोकतंत्र के अंदर राष्ट्रपति प्रणाली को माओवादी स्थापित नहीं कर पाए थे। संविधान सभा में माओवादी लगातार प्रत्यक्ष राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था करने की मांग करते रहे थे, लेकिन वे इसके लिए पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा सके और 2015 में जब संविधान स्वीकार किया गया तो संसदीय व्यवस्था को स्वीकार कर लिया, लेकिन संविधान पारित होने पर भी उन्होंने अपनी असहमति दर्ज कराई थी। पिछले सालों में नेपाल में जिस तरह से राजनीतिक अस्थिरता रही, उससे माओवादियों को यह अवसर फिर से मिल गया कि वे एक बार फिर से राजनीतिक प्रणाली को बदलने की मुहिम चलाएं और राष्ट्रपति प्रणाली की बात करें।

nepal-election

प्रचंड क्यों चाहते हैं राष्ट्रपति प्रणाली
इसके साथ ही माआवादियों ने प्रदेशों में कार्यपालिक अध्यक्ष के प्रत्यक्ष चुनाव की भी बात की है, लेकिन वे मुख्यमंत्री के सवाल पर चुप हैं। प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही माओवादी सांसदों की संख्या कम करना चाहते हैं और सभी सांसदों का चुनाव समानुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर करना चाहते हैं। वर्तमान में नेपाल में संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में 275 सदस्य हैं। इसमें 165 सदस्य प्रत्यक्ष तरीके से चुने जाते हैं और 110 सदस्य आनुपातिक प्रणाली के तरीके से चुने जाते हैं। माओवादी चाहते हैं कि प्रतिनिधि सभा में कुल 165 सदस्य ही हों और ये सभी समानुपातिक प्रणाली से चुने जाएं। राष्ट्रपति का 25 सदस्यीय मंत्रिमंडल होगा और ये सभी विशेष होंगे, जबकि राज्यों में सदस्यों का 15 प्रतिशत तक ही मंत्री बन सकेंगे। अगर कहा जाए तो माओवादी पूरी तरह से वर्तमान प्रधानमंत्री आधारित व्यवस्था से राष्ट्रपति प्रणाली की ओर जाना चाहते हैं। सवाल यही है कि आखिर प्रचंड क्यों राष्ट्रपति प्रणाली चाहते हैं, जबकि वे दो बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन चुके हैं।

इसका उत्तर यह है कि 2008 में माओवादी नेपाल में सबसे बड़ी पार्टी थे, लेकिन उसमें लगातार विभाजन होता रहा और 2013 में माओवादी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी में बदल गई और इस बात की संभावना नहीं है कि माओवादी अपनी राजनीतिक स्थिति में कोई बड़ा परिर्तन ला पाएंगे। दूसरी ओर तमाम कमजोरियों के बाद भी प्रचंड आज भी नेपाल में सबसे लोकप्रिय और स्वीकार्य राजनीतिक चेहरा हैं और इस कारण राष्ट्रपति प्रणाली माओवादियों के राजनीतिक लाभ की स्थिति में हैं।

नेपाल के दूसरे दलों का क्या है मूड
अन्य राजनीतिक दलों को देखें तो नेपाली कांग्रेस पूरी तरह से संसदीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था के पक्ष में हैं और ओली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ‘एमाले’ 2015 से पहले प्रत्यक्ष प्रधानमंत्री के चुनाव चाहती थी, लेकिन एक बार संसदीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थापित होने के बाद अब वह कोई भी परिवर्तन नहीं चाहती है। इस तरह नेपाल की दो प्रमुख राजनीतिक दल प्रत्यक्ष राष्ट्रपति की व्यवस्था के पक्ष में नहीं हैं। एमाले से अलग हुई माधव नेपाल की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ‘एकीकृत समाजवादी’ने प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव पर तो चुप है लेकिन चुनावों के बढ़ते खर्च को देखते हुए निर्वाचन प्रणाली में सुधार की बात अपने घोषणापत्र में की है। प्रत्यक्ष राष्ट्रपति व्यवस्था को सबसे बड़ा समर्थन बाबू राम भट्टराई की पार्टी नेपाली समाजवादी पार्टी से मिला। भट्टाराई ने अपने घोषणापत्र में राष्ट्रपति प्रणाली का समर्थन किया है। वैसे भी जनयुद्ध के दौर से लेकर 2015 तक प्रचंड और बाबूराम भट्टराई एक ही पार्टी में थे और बाद में मतभेदों के चलते भट्टराई माआवादी पार्टी से अलग हो गए और उन्होंने नया शक्ति नाम से एक राजनीतिक दल बनाया। इस चुनाव में भट्टराई चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी के उम्मीदवार माओवादी के चुनाव चिह्न पर ही चुनाव लड़ रहे हैं।

शासन प्रणाली में सुधार पर धुर दक्षिणपंथी भी साथ
आश्चर्यजनक रूप से माओवादी के शासन प्रणाली में सुधार को लेकर समर्थन अति दक्षिणपंथी राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी की ओर से आया है। यह पार्टी प्रत्यक्ष राष्ट्रपति के स्थान पर प्रत्यक्ष प्रधानमंत्री के चुनाव का वायदा कर रही है साथ ही वह राजतंत्र की एक संरक्षक के तौर पर स्थापना भी चाहती है। यह पार्टी माओवादियों की तरह सांसदों का चुनाव पूरी तरह से समानुपातिक तरीके से चाहती हैं। यह देश में वर्तमान तीन स्तरीय- केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन को समाप्त कर द्विस्तरीय शासन व्यवस्था यानि केंद्र और स्थानीय सरकार चाहती है, यानि प्रदेशों को समाप्त करना चाहती है।

लाख टके का सवाल यह है कि क्या माओवादी अपने लक्ष्य में सफल हो पाएंगे। इसकी संभावनाएं तो काफी कम हैं। क्योंकि प्रमुख राजनीतिक दलों में इस विचार को लेकर कोई उत्साह नहीं है। फिर एमाले के प्रधानमंत्री केपी ओली ने जिस तरह से अधिनायकवादी तरीके से संविधान की अवहेलना की, उसको देखते हुए माओवादी पार्टी के अंदर भी संशय है कि कहीं राष्ट्रपति भी तो इसी तरह से निरंकुश तो नहीं हो जाएगा। फिर राष्ट्रपति प्रणाली के लिए दो तिहाई मतों से संविधान संशोधन की जरूरत होगी जो माओवादी नहीं पा सकेंगे। फिलहाल तो यह माओवादियों का अजेंडा भर बनकर चर्चा के विषय तक ही सीमित है।

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