ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ओआरएस) को मेडिसिन में 20वीं शताब्दी की महान खोज माना गया। इसकी सहायता से 6 करोड़़ से ज्यादा इंसानी जिंदगियां बचीं। ऐसे में इसको ईजाद करने वाले शख्स का जीवन गुमनामी में बीत जाए इससे ज्यादा तकलीफदेह कुछ नहीं हो सकता।
यह सुखद और दुखद दोनों है कि वो शख्स एक भारतीय था‚ जिसने बीते रविवार को कोलकाता में ८८ साल की उम्र में अंतिम सांस ली। ड़ॉ. दिलीप महालनोबिस। एक शख्स ने सोशल मीडि़या पर इन्हें यूं परिभाषित किया–ईश्वर विभिन्न रूपों में पृथ्वी पर आते हैं और मानवता की सेवा कर चुपचाप चले जाते हैं।’ महालनोबिस को ईश्वर का रूप यूं ही नहीं बताया गया। दरअसल‚ महालनोबिस ने ओआरएस का पेटेंट नहीं कराया। बता दें कि ओआरएस एक घोल है‚ जिसमें डायरिया संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए टेबल सॉल्ट‚ बेकिंग सोडा और कमर्शियल ग्लूकोज का मिश्रण होता है। रामबाण खोज को उन्होंने मानवता को समर्पित कर दिया। निस्वार्थ भाव का दुर्लभ उदाहरण। आज पेटेंट पर अपने नाम की मुहर को लेकर मारामारी किसी से छुपी नहीं है। जिस मेडि़कल पेशे से महालनोबिस थे उसकी व्यावसायिक मानसिकता किसी से छुपी नहीं है। वास्तव में महालनोबिस अनूठे थे। १९३४ में अविभाजित बंगाल के किशोरगंज में जन्मे महालनोबिस ने १९५८ में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। लंदन में क्वीन एलिजाबेथ हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन के रजिस्ट्रार के रूप में चुने जाने वाले पहले भारतीय बने। १९६४ में ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी पर अपना शोध शुरू किया। ॥ आज जब हम आजादी की हीरक जयंती मना रहे हैं‚ ऐसे में हम उन लोगों और घटनाओं को याद कर रहे हैं जिनका इस सफर में बहुमूल्य योगदान रहा। १९७१ में मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के कैंप में हैजा (कॉलरा) फैल गया। आईवी स्लाइन के स्टॉक को खत्म होता देखकर महालनोबिस ने ओआरएस इस्तेमाल करनेकाफैसलाकिया‚ जिससे कैंप में मृत्यु दर ३० फीसद से घटकर ३ फीसद रह गई। डायरिया के इलाज में क्रांति लाने के लिए दुनिया भर में उच्च प्रशंसा प्राप्त करने वाले इस बंगाली डॉक्टर के सम्मान में भारत सरकार को निःसंदेह कुछ विशेष करना चाहिए।
सेंसेक्स में 300 अंक से ज्यादा की गिरावट……
हफ्ते के पहले कारोबारी दिन आज यानी 17 फरवरी को सेंसेक्स 300 अंक से ज्यादा की गिरावट के साथ 75,600...