वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत चुके हैं. उन्होंने शशि थरूर को आशानुरूप शिकस्त दी है. मल्लिकार्जुन खड़गे के नामांकन के समय ही ये साफ हो गया था कि वो इस चुनाव में जीत हासिल करेंगे. हालांकि शशि थरूर ने मुकाबले को रोचक बनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वो विफल रहे. राजनीतिक जानकार पहले से ही ये बता रहे थे कि मल्लिकार्जुन खड़गे इस चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज करेंगे. इसकी वजह है उनका गांधी परिवार का नजदीकी होना. जिस तरह से अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए पहले अशोक गहलोत चुनाव लड़ रहे थे, फिर दिग्विजय सिंह का नाम आया और आखिर में मल्लिकार्जुन खड़के चुनाव मैदान में उतरे, उसी समय ये तय हो गया था कि उन्होंने गांधी परिवार की सहमति से चुनाव लड़ा था. और वो चुनाव में जीत दर्ज करने वाले हैं. भले ही इसे कयास लगाना कहते हैं, लेकिन हकीकत यही है कि पहले दिन से सभी को पता था कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होंगे. उन्होंने कांग्रेस के अब तक के इतिहास में सिर्फ छठी बार हुए अध्यक्ष पद के चुनाव में जीत हासिल कर ली है. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे ने 7897 वोटों से जीत हासिल की. वहीं, शशि थरूर को करीब 1000 वोटों से ही संतोष करना पड़ा.
अब जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत ही चुके हैं, तो कुछ सवालों के जवाब सभी लोग ढूंढ रहे हैं. इनके जवाब तो मल्लिकार्जुन खड़गे ही देंगे, लेकिन ये सब भविष्य में सामने आएगा. आईए, हम बताते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने किस तरह की चुनौतियां होंगी.
‘यस मैन’ की छवि को बदल पाएंगे खड़गे?
मल्लिकार्जुन खड़गे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हैं. लेकिन उनकी छवि हमेशा से मास लीडर की नहीं, बल्कि यस मैन की रही है. यस मैन का मतलब है कि ‘हाई कमान’ के आदेश का पालन करना. मल्लिकार्जुन खड़गे चूंकि अब कांग्रेस पार्टी में सबसे बड़े पद पर पहुंच चुके हैं. ऐसे में उनके सामने चुनौती रहेगी कि वो अपने यस मैन की छवि को बदलें. क्या वो ऐसा कर पाएंगे?
कांग्रेस को जमीन पर फिर से खड़ा करना
मल्लिकार्जुन खड़गे को विरासत में जो कांग्रेस मिली है, उसमें सबसे बड़ी खामी ये है कि ये कांग्रेस पार्टी अब तक की सबसे कमजोर कांग्रेस पार्टी है. क्षेत्रीय क्षत्रप खुद को मजबूत कर रहे हैं. गहलोत और राजस्थान में जो विवाद हुआ, वो किसी से छिपा नहीं. मध्य प्रदेश हो या पंजाब, हिमाचल हो या कोई भी अन्य राज्य. जमीनी कार्यकर्ता अब पार्टी से लगभग दूर हैं. जो कार्यकर्ता हैं, वो क्षेत्रीय क्षत्रपों के पराक्रम को ही संभालने में लगे हैं. हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि आज कांग्रेस पार्टी के पास हर एक विधानसभा क्षेत्र में ढंग का उम्मीदवार तक नहीं है. वो कई राज्यों में जूनियर पार्टनर बनने को मजबूर है.
युवा जोश और अनुभव में तालमेल बिठाना
मल्लिकार्जुन खड़गे बहुत अनुभवी नेता हैं. हालांकि राजस्थान में जो एपिसोड हुआ. मध्य प्रदेश में जो कुछ भी हुआ. वो किसी से छिपा नहीं है. कांग्रेस की नई पीढ़ी आगे बढ़कर संघर्ष करने को तैयार है. वो सत्ता में भागीदारी भी चाहती है. लेकिन अब तक अनुभवी लोगों को ही प्राथमिकता मिलती रही है. चाहे मध्य प्रदेश में कमलनाथ की बात हो या राजस्थान में अशोक गहलोत की. बगावत हर जगह हुई. यूपी जैसे सबसे बड़े राजनीतिक राज्य में कई क्षेत्रीय मगर मजबूत युवा क्षत्रप पार्टी से हट चुके हैं. चाहे आरपीएन सिंह हों, जितिन प्रसाद हों. ललितेशपत्रि त्रिपाठी हों. एमपी में सिंधिया हों या हिमाचल प्रदेश की लीडरशिप. अब मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी में युवा जोश और अनुभव का तालमेल बिठाकर चलना होगा. हालांकि राजस्थान में खड़गे गए थे दोनों पक्षों में सुलह कराने, लेकिन न तो उनकी किसी विधायक ने सुनी न ही अजय माकन की. दोनों ही नेताओं को वापस लौटना पड़ा था. ऐसे में उनके सामने ये बड़ी चुनौती मौजूद रहेगी.
जी-23 जैसे असंतुष्टों से निपटना
मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष पद चुनाव में मनीष तिवारी जैसे नेताओं ने उनका समर्थन किया, जो जी-23 गुट से आते थे. इस गुट ने खुलेआम गांधी परिवार की लीडरशिप को बदलने की मांग की थी. शशि थरूर भी इसी गुट में थे. इस गुट के कई बड़े नेताओं ने पार्टी ही छोड़ दी है. जो बचे हैं, उनमें से कुछ ने पाला बदल लिया है. लेकिन अब भी कुछ अति वरिष्ठ नेता हठ पर बैठे हैं. चूंकि अब लीडरशिप (कथित तौर पर) बदल चुकी है, तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी भी खड़गे पर है. इसके अलावा अन्य जो असंतुष्ट हैं. उन्हें भी मनाना खड़गे की जिम्मेदारी बनती है. चूंकि उनकी छवि गांधी परिवार के ‘यस मैन’ की है, तो ये चुनौती भी बड़ी बन गई है.
कांग्रेस पार्टी को जीत की पटरी पर लौटाना
कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को जीत की डगर पर लौटाने की है. राहुल गांधी, सोनिया गांधी और कथित तौर पर प्रियंका गांधी की अगुवाई में पार्टी को लगातार हार झेलनी पड़ रही थी. इन हारों में मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के सामने वफादार के तौर पर खड़े रहे. लेकिन अब कमान उनके हाथ में है तो लगातार कांग्रेस को मिल रही हार के सिलसिले को तोड़ना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. वैसे, खड़गे के सामने जीत की चुनौती तो सबसे पहले खड़ी है, क्योंकि कुछ ही समय में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में पार्टी को बीजेपी का मुकाबला करना है, साथ ही अपने खोए इस्तकबाल को हासिल करने में भी पूरा जोर लगा देना है.
इन चुनौतियों के अलावा भी खड़गे के सामने खुद की उम्र से लेकर पार्टी की आर्थिक स्थिति तक को सुधारने की जिम्मेदारी है. ऐसे में क्या खड़गे इन चुनौतियों से पार पा पाएंगे, इनके जवाब तो भविष्य काल में छिपे हुए हैं.
इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश और अगले साल कुछ अन्य राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों और उससे भी अहम 2024 लोकसभा चुनाव से पहले देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ‘संजीवनी’ हासिल करने की जद्देजेहद में हैं. इस बदलाव की शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष पद पर गैर गांधी परिवार के किसी शख्स की ताजपोशी से होगी. इसके लिए सोमवार को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. सोनिया गांधी पार्टी की सबसे लंबी अवधि तक अध्यक्ष रहीं और दो दशकों से अधिक समय बाद कांग्रेस को गैर गांधी परिवार का अध्यक्ष मिला. इस पद के लिए कांग्रेस आलाकमान के ‘अनिधिकृत रूप से अधिकृत उम्मीदवार’ मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच मुकाबला था. तमाम नाटकीय पेंचों से भरपूर कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत हुई है. नए अध्यक्ष का नाम सामने आ गया है और साथ ही उसके लिए शुरू हो जाएगा चुनौती भरा सफर. गौर करने वाली बात यह है कि खड़गे अध्यक्ष बने है परन्तु कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनावी मुकाबला और उसके परिणाम काफी कुछ ‘पहली बार’ अपने में समेटे होंगे. डालते हैं इस ‘पहली बार’ पर एक नजर
अपने अस्तित्व में आने के लगभग 130 साल के इतिहास में आजादी के बाद कांग्रेस के कमोबेश 40 अध्यक्ष हुए हैं. देश की इस सबसे पुरानी पार्टी ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी हिस्सा लिया. इस चुनाव में यदि मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष बनते हैं, तो बाबू जगजीवन राम के 50 साल बाद वह कांग्रेस के दूसरे दलित अध्यक्ष होंगे.
सोमवार को देश भर के कांग्रेस के 9 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने कांग्रेस का नए अध्यक्ष चुनने के लिए मतदान किया.
2000 में सोनिया गांधी ने 7,700 मतों में से 7,448 वोट हासिल कर कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीता था. उनके खिलाफ खड़े हुए जितेंद्र प्रसाद को महज 94 मत ही मिले थे.
दो दशकों से अधिक समय बाद पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस को गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष नहीं मिलेगा. फिलवक्त कांग्रेस अध्यक्ष पद अस्थायी रूप से सोनिया गांधी के पास है. 2019 लोकसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद राहुल गांधी के इस्तीफा देने और कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने को राजी नहीं होने के बाद से सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष हैं.
ऐसे में कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव में खड़े दोनों ही उम्मीदवारों को कांग्रेस की राजनीति का दशकों पुराना अनुभव है. शशि थरूर कांग्रेस नेता के साथ-साथ एक शानदार राजनयिक रहे हैं, तो 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे अपने पांच दशकों के राजनीतिक करियर में हालिया सालों से राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाते आए हैं.
कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया दिग्गज कांग्रेसी मधुसूदन मिस्त्री की देखरेख में हो रही है. मतगणना के दिन शशि थरूर के पोलिंग एजेंट ने मतदान में धांधली का आरोप लगा चुनाव प्रक्रिया को दागदार बना दिया है. सोमवार को देश के अलग-अलग हिस्सों में कांग्रेस अध्यक्ष पद की वोटिंग के बाद मतपेटियां दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय लाई गई थीं.
कांग्रेस अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया में राहुल गांधी के वोट डालने को लेकर शुरुआत में संशय था. राहुल गांधी फिलवक्त ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में व्यस्त हैं. हालांकि उन्होंने वोट डाल लगाए जा रहे सारे कयासों पर पानी फेर दिया.
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव से पहले ही कई विवाद खड़े हुए. इनमें से एक शशि थरूर के ‘एकसमान खेल का मैदान नहीं’ वाली विवादास्पद टिप्पणी से जुड़ा हुआ है. शशि थरूर का आरोप रहा है कि कई कांग्रेस प्रतिनिधि खुलेआम मल्लिकार्जुन खड़गे का समर्थन कर रहे हैं. इनमें से एक प्रमुख नाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी है, जो शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बतौर प्रबल दावेदार थे.
परदे के पीछे इस बात की सरगोशी रही है कि मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के पसंदीदा हैं. इस पर खड़गे ने कई बार सफाई दी. सोमवार को वोटिंग से पहले भी उन्होंने कहा, ‘गांधी परिवार ने देश के लिए बहुत कुछ अच्छा किया है और उनकी सलाह पार्टी के लिए लाभप्रद साबित होगी. ऐसे में मैं उनसे सलाह-मशविरा करने के अलावा सहयोग की अपेक्षा भी रखता हूं. इसमें कोई शर्म की बात नहीं हैं. अगर मीडिया की कोई सलाह अच्छी लगती है, तो उसे मानता हूं. ऐसे में गांधी परिवार ने पार्टी के लिए भी बहुत कुछ किया है, तो उनसे सलाह-मशविरा करना मेरा कर्तव्य भी हो जाता है.’
इस बीच #Tharoorfortomorrow के हैशटैग से प्रचार अभियान चलाने वाले खड़गे के प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर लगातार पार्टी में सुधार लाने की बात कर रहे हैं.. शशि थरूर कांग्रेस के असंतुष्ट गुट जी-23 के प्रमुख नेता हैं, जिन्होंने भारी पैमाने पर बदलाव के लिए सोनिया गांधी को पत्र लिखा था. हालांकि रोचक बात यह है कि जी-23 समूह के सभी नेताओं का समर्थन शशि थरूर को नहीं मिला है.