बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे फेज में 5 सीटों पर 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है। इनमें से तीन सीटें- किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया सीमांचल में आती हैं, जो मुस्लिम बहुल हैं। भागलपुर और बांका अंग क्षेत्र की सीटें हैं। इन सीटों पर हवा का रुख किधर है? कौन मजबूत स्थिति में है? कौन किस पर क्यों भारी है?
इस बातचीत में इन पांचों सीटों का माहौल समझने की कोशिश की गई। इन पांचों सीट में से एनडीए एक और इंडिया ब्लॉक 3 (कांग्रेस-2, आरजेडी-1) सीटों पर मजबूत दिख रहा है।
भागलपुर में जेडीयू तो किशनगंज से कांग्रेस के सांसद रिपीट होने की संभावना है। बांका और कटिहार में बदलाव हो सकता है। सबसे ज्यादा रोचक मामला पूर्णिया सीट पर है। यहां पर जेडीयू और आरजेडी प्रत्याशी पर निर्दलीय भारी पड़ रहे हैं।
बता दें कि 2019 के चुनाव में पांच सीटों में से एक कांग्रेस किशनगंज सीट जीती थी, जबकि चारों सीटों पर एनडीए से जेडीयू प्रत्याशी जीते थे।
1- किशनंगज सीट: 68% मुस्लिम आबादी वाले लोकसभा में कांग्रेस सब पर भारी
इस बार किशनगंज में त्रिकोणीय मुकाबला है। हालांकि, कांग्रेस यहां पर भारी पड़ रही है। 68 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस लोकसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला कांग्रेस के सीटिंग सांसद जावेद आजाद, जेडीयू से मास्टर मुजाहिद और AIMIM से अख्तरुल ईमान के बीच है। तीनों यही साबित करने में जुटे हैं कि मुस्लिम के सबसे बड़े हितैषी हम हैं। इन तीनों प्रत्याशियों में जो यहां मुस्लिमों को साध लेगा, उसकी जीत तय है।
किशनगंज की गलियों में घूमने के बाद ये मालूम होता है कि तीन मजबूत दावेदार भले मैदान में हों, लेकिन मुख्य मुकाबला AIMIM और कांग्रेस के बीच ही है। जदयू के कैंडिडेट को भाजपा का सपोर्ट होने से काफी नुकसान होता हुआ दिख रहा है। एक्सपर्ट, व्यापारी और आम लोगों से बात करने के बाद ये पता चलता है कि जीत-हार का अंतर भले कम हो, लेकिन कांग्रेस यहां से जीत का चौका लगा सकती है। इसके चार कारण हैं।
किशनगंज में कांग्रेस का कैडर वोट का मिल रहा लाभ
बिहार के अन्य इलाकों में घूमने पर लोग मोदी..मोदी की बात करते हैं, लेकिन यहां कि फिजा से मोदी लगभग पूरी तरह गायब हैं। यहां लोग मोदी को हटाने और राहुल को पीएम बनाने की बात करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस का कैडर वोट। 50 साल के ऊपर के लोग कांग्रेस के खिलाफ कुछ भी सुनने को राजी नहीं होते हैं।
किशनगंज में चुनाव का मुद्दा पूछने पर 55 वर्षीय जमालुद्दीन कहते हैं कि राहुल गांधी का मेनिफेस्टो लोगों तक पहुंच रहा है। इसका जबरदस्त असर पड़ेगा। बहादुरगंज के इस्लामुद्दीन कहते हैं कि मुद्दा क्या है। हम लोग कांग्रेस को वोट देते आए हैं और देंगे। आजादी के बाद से देश को कांग्रेस संभाल रही है। इसलिए वोट उसे ही देंगे। कांग्रेस को वोट देने वाले लोगों के पास एक ही तर्क है कि वे कांग्रेस को देते आए हैं इसलिए देंगे। ऐसे ही वोटर्स किशनगंज में कांग्रेस की ताकत हैं।
हिंदू वोटर्स का भी कांग्रेस को मिल रहा है सपोर्ट
किशनगंज के ग्रामीण इलाकों में हमारी मुलाकात कामदेव यादव से हुई। वे कहते हैं कांग्रेस फाइनल है। कोई योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। ओवैसी जी बीजेपी के एजेंट हैं तो उनका क्या ही होगा। जबकि, किशनगंज के व्यापारी का मानना है कि कांग्रेस के होने से यहां शांति रहेगी।
बीजेपी के पास इतना समर्थन नहीं है कि वे जीत पाएं। किशनगंज में 50 साल से कपड़े का कारोबार करने वाले कन्या लाल शर्मा कहते हैं कि यहां केवल कांग्रेस ही मुद्दा है, इसके अलावा कुछ नहीं। क्योंकि, यहां 80 वर्सेज 20 की लड़ाई है। इसके आगे आप खुद समझ लीजिए। बाजार के लगभग व्यापारी इसी तरह की ही बात करते हुए मिलते हैं।
आंकड़ों में अख्तरुल मजबूत, भरोसे में पिछड़ रहे
किशनगंज में कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा चर्चा AIMIM के कैंडिडेट और प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान की है। बहादुरगंज के मो. हबीब कहते हैं AIMIM भी ठीक है। पिछली बार इसके 5 विधायक जीते थे, इनमें 4 राजद में शामिल हो गए। एक अख्तरुल ईमान बचे हैं। वे भी सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। देखते हैं इनका क्या होता है। लोग बदलाव की भी बात करते मिलते हैं, लेकिन AIMIM पर खुलकर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।
अगर आंकड़े की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अख्तरुल किशनगंज से लड़े थे। विनिंग कैंडिडेट कांग्रेस के जावेद आजाद को मात्र 72 हजार कम वोट मिले थे। 26.8% वोट के साथ अख्तरुल तीसरे नंबर रहे थे। इसके बाद 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में किशनगंज के 6 सीटों में से 4 पर पार्टी ने कब्जा जमाया था। हालांकि, बाद में एक अखतरुल को छोड़ सभी राजद में शामिल हो गए थे। यही कारण है कि जनता इन पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रही है।
मुजाहिद की छवि अच्छी, लेकिन भाजपा से नुकसान
जदयू के मास्टर मुजाहिद दो बार किशनगंज के कोचाधामन विधानसभा से विधायक रह चुके हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में तो अख्तरुल ईमान को हराकर ही वे विधानसभा पहुंचे थे। इस बार दोनों लोकसभा चुनाव में आमने-सामने हैं। कोचाधामन में इनकी छवि एक सरल और मददगार नेता की है। मोदी के नाम पर हिंदू आबादी इन्हें वोट भी कर रही है, लेकिन मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के कारण इन्हें नुकसान भी हो रहा हैै।
किशनगंज किसका, ये कत्ल की रात को तय होता है
चुनाव के दौरान किशनगंज में एक शब्द जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है, वो है-कत्ल की रात। लोग कहते हैं कि किशनगंज किसका होगा, ये चुनाव से पहले की रात तय होता है। हर इलाके में चुनाव से पहले एक सभा की जाती है। यहां आपसी सहमति से तय किया जाता है कि मुस्लिम इस बार किस पार्टी के उम्मीदवार को जीता रहे हैं और क्यों? इसी के आधार पर सभी मुस्लिम वोट करते हैं। हालांकि, कोई ऑन कैमरा इस बात को बोलने के लिए राजी नहीं हुए।
2- पूर्णिया सीट: त्रिकोणीय मुकाबला, पप्पू यादव ज्यादा मजबूत
पूर्णिया सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव ने मुकाबला दिलचस्प कर दिया है। वह दो बार निर्दलीय और एक बार सपा के टिकट पर यहीं से सांसद रहे हैं। इस चुनाव में भी वह जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा और आरजेडी प्रत्याशी बीमा भारती पर भारी पड़ रहे हैं। इसकी तीन प्रमुख वजह है।
पहला- लालू का यहां एमवाई समीकरण आरजेडी से ज्यादा पप्पू यादव के साथ है। दूसरा- पप्पू यादव यहां से एक साल से तैयारी कर रहे हैं, उन्होंने कई कार्यक्रम पूर्णिया में किए। जबकि, टिकट मिलने के बाद जेडीयू और आरजेडी उम्मीदवार सक्रिय हुए। तीसरा- पप्पू यादव के साथ सिंपैथी वोट का होना। कांग्रेस में शामिल होने के बाद लालू की वजह से टिकट न मिल पाना। इसको पप्पू यादव खूब भुना रहे हैं। वो बताने में लगे हैं कि लालू अपने परिवार के अलावा दूसरे यादव की भी नहीं सोचते।
पूर्णिया के लोग कहते हैं, ‘पूर्णिया में MY का समीकरण शुरू से RJD के साथ रहा है। 4 लाख 87 हजार मुस्लिम और 1 लाख 27 हजार यादव वोटर हैं। बाकी 12 लाख वोटर्स में पिछड़ा, अति पिछड़ा, वैश्य जैसी जातियां हैं। पप्पू यादव और बीमा भारती दोनों का वोट बैंक MY समीकरण है। पप्पू यादव के साथ एडवांटेज है कि टिकट न मिलने की वजह से लोगों में उनके प्रति सहानुभूति के साथ आक्रोश भी है, लेकिन वो वोट में कितना तब्दील होगा, ये आने वाला समय बताएगा।’
आरजेडी अपने वोट बैंक को संभालने और पप्पू यादव को हराने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं। पूर्णिया में दो दिन से खुद तेजस्वी यादव कैंप कर किए हुए हैं। आरजेडी के 40 विधायक मोर्चा संभाले हुए हैं। तेजस्वी को सभाओं में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वहां पप्पू यादव जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं।
आप तेजस्वी के इस भाषण से अंदाजा लगा सकते हैं-
“आप लोग किसी धोखे में नहीं आइए। यह चुनाव किसी एक व्यक्ति का चुनाव नहीं है। यह एनडीए और इंडिया गठबंधन की लड़ाई है। या तो इंडिया को चुनिए, बीमा भारती को वोट करिए और अगर इंडिया को नहीं चुन सकते, बीमा भारती को वोट नहीं दे सकते तो फिर एनडीए को चुन लीजिए। साफ बात है।”
3- कटिहार: कटिहार में कांटे की टक्कर, जाति-धर्म का समीकरण कांग्रेस प्रत्याशी के साथ
कटिहार लोकसभा सीट पर इस बार लड़ाई काफी दिलचस्प है। एनडीए के यहां से जेडीयू सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी को इंडिया ब्लॉक से 5 बार सांसद रहे तारिक अनवर कांटे की टक्कर दे रहे हैं।
एक्सपर्ट के मुताबिक एनडीए राम मंदिर, एनआरसी, सीएए, ट्रिपल तलाक और धारा 370 से लीड करना चाहती है। वह वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर सीमांचल में घुसपैठ का मुद्दा भी उठा रही है। इसके जवाब में इंडिया ब्लॉक का हर वर्ग एकजुट होकर मुस्लिम और यादव वोटों को सहेजने में जुटा है। दोनों दलों के कैंडिडेट्स के बीच टक्कर कांटे की है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी की लहर थी तब एनडीए से जेडीयू कैंडिडेट दुलाल चंद्र गोस्वामी महज 57 हजार वोटों से जीत दर्ज करा पाए थे।
मुस्लिम-यादव और निषाद वोटों की वजह से कांग्रेस के तारिक अनवर भारी पड़ रहे हैं। चुनाव के ऐन वक्त पर वीआईपी के मुकेश सहनी के आने की वजह से कटिहार में ढाई लाख निषाद वोट का एक बड़ा हिस्सा तारिक की तरफ शिफ्ट हो सकता है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट बताते हैं, कटिहार लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं, सीमांचल का यह एक महत्वपूर्ण इलाका है। यहां 41 प्रतिशत वोटर्स मुस्लिम और 12 प्रतिशत यादव हैं। यदि लालू प्रसाद यादव पूरी निष्ठा से कांग्रेस के तारिक अनवर की मदद कर दें तो वे बीजेपी से जेडीयू में गए दुलाल चंद्र गोस्वामी को पराजित कर सकते हैं। क्योंकि, यहां मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण नहीं हो पाता है। यहां हिंदू-मुस्लिम कार्ड इसीलिए ही होता है, जिससे एनडीए को फायदा मिल जाए। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है, जिसका लाभ एनडीए के कैंडिडेट दुलाल चंद्र गोस्वामी को मिल सकता है।
अब लालू की ताकत पर तारिक अनवर की जीत का पूरा ग्राफ डिपेंड है। इसलिए भी कहा जा सकता है कि यहां मुकाबला कांटे वाला है। तारिक अनवर भी एमवाई समीकरण पर काम कर रहे हैं। वह कटिहार लोकसभा क्षेत्र से साल 1980, 1984, 1996 और 1998 में लगातार जीत दर्ज कर चुके हैं। इससे उनकी पकड़ भी क्षेत्र में कम नहीं है। दुलाल चंद्र गोस्वामी को 2019 में मोदी लहर का फायदा मिला था। अब 2024 में दोनों कैंडिडेट्स आमने-सामने कड़ी टक्कर में हैं।
अगर पॉलिटिकल मजबूती की बात करें तो कटिहार की 6 विधानसभा सीटों में कदवा और मनिहारी पर कांग्रेस के विधायक हैं। बलरामपुर विधानसभा सीट भाकपा माले के पास है। वहीं, बरारी में जेडीयू के विधायक हैं। एनडीए मोदी के चेहरे के साथ सीएम नीतीश कुमार के नाम पर अत्यंत पिछड़े और मुस्लिम समुदाय के वोटों को साधने की कोशिश की है।
एक्सपर्ट मानते हैं, कटिहार लोकसभा सीट काफी समय तक कांग्रेस के कब्जे में रही है। इस बार मुकाबला कड़ा दिख रहा है, क्योंकि दुलाल चंद्र गोस्वामी से वोटर्स नाराज भी चल रहे हैं। ऐसे में मोदी के चेहरे वाला फैक्टर ही अधिक काम आएगा। एनडीए को भी पता है कि कटिहार में हिंदू और पिछड़ी कार्ड से चुनाव में लड़ाई आसान होगी, इसलिए वह इस फैक्टर पर पूरी तरह से लगी है। मोदी और शाह के साथ नीतीश की सभा के बाद चुनावी हवा का रुख कुछ बदला भी है।
4- भागलपुर सीट: पहली बार अजय को चुनौती, फिर भी जाति मोदी फैक्टर से भारी
सिल्क सिटी में जेडीयू के सांसद अजय मंडल और कांग्रेस के विधायक अजीत शर्मा के बीच भिड़ंत है। अजय मंडल की जाति गंगोता का वोट बैंक उनकी ताकत है। दूसरा फैक्टर मोदी हैं, जिसकी वजह से दूसरी पिछड़ी जातियों का उन्हें सपोर्ट है। यही वजह है कि वह बढ़त बनाए हुए हैं।
अजीत शर्मा भूमिहार जाति से आते हैं पर उनकी ताकत उनकी जाति के वोट बैंक से ज्यादा लालू प्रसाद की जाति यादव और मुसलमान का वोट बैंक है। भागलपुर में वैश्यों और दलितों का वोट यह डिसाइड करेगा कि जेडीयू के अजय मंडल फिर से सांसद बनेंगे या कांग्रेस के अजीत शर्मा गठबंधन इंडिया का झंडा लहराएंगे। बिहपुर से बीजेपी विधायक शैलेश मंडल और गोपाल मंडल पर भी सभी की नजर है कि वे कितना वोट अजय मंडल को दिलवा पाते हैं।
अजय मंडल के बारे में इस बार ज्यादा निगेटिव है। आम लोग शिकायत करते हैं कि एमपी बनने के बाद वे झांकने नहीं आए। लेकिन, जो राम मंदिर को बड़ा मुद्दा मानने वाले लोग हैं वे अंतिम समय में एनडीए के प्रत्याशी अजय मंडल को ही वोट कर आएंगे, वे लालू प्रसाद या कांग्रेस को मजबूत नहीं करेंगे। ऐसे लोग वैश्यों में सर्वाधिक हैं।
लोग कहते हैं कि भागलपुर में टक्कर जबरदस्त है। अजीत शर्मा बीजेपी से भूमिहारों का वोट अपनी तरफ ले रहे हैं। मुसलमानों और यादवों का वोट भी शर्मा को ही मिल रहा है। अजय मंडल के साथ बीजेपी और जेडीयू का वोट है। लेकिन, पिछली बार की तरह अजय मंडल के लिए जीत आसान नहीं है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय आज तक सामने नहीं आ पाया।
भागलपुर में वर्षों बाद कांग्रेस की तरफ से कोई सवर्ण उम्मीदवार मैदान में है और ताकतवर स्थिति में है। लेकिन, यह पूरा इलाका ओबीसी वोट बैंक का है। कांग्रेस ने भूमिहार को टिकट कुछ खास कारणों से दिया है। पहली बात यह कि अजीत शर्मा धन-बल से मजबूत हैं, दूसरी बात कि अजीत शर्मा को महागठबंधन की वजह से यादवों और मुसलमानों का बड़ा वोट मिल जाएगा। राहुल गांधी ने भी इस सीट की अहमियत को समझा और तेजस्वी के साथ भागलपुर में सभा को संबोधित किया है। अजीत शर्मा अपनी बेटी अभिनेत्री नेहा शर्मा के साथ रोड शो भी कर रहे हैं। इसका असर भी पड़ रहा है।
अंग क्षेत्र में नीतीश कुमार फैक्टर नहीं दिखते, जबकि इन्होंने बिहार में विकास को लेकर काफी काम किया है। नौकरी के सवाल पर लोग तेजस्वी के नाम की चर्चा करते हैं और राष्ट्रवाद के नाम पर नरेन्द्र मोदी की। इन सब पर जाति भारी है। अजीत शर्मा मन से चुनाव लड़ रहे है, खर्च कर रहे हैं। कांग्रेस के अंदर काफी खींचातन के बावजूद वे अपना टिकट ले आए थे।
5- बांका सीट: इस बार कांटे की टक्कर, मौजूदा सांसद की अनदेखी से जयप्रकाश को फायदा
बांका की चुनावी लड़ाई कांटों वाली है। जाति के हिसाब से टक्कर एक यादव की दूसरे यादव से है। चुनाव में एक तरफ जदयू के उम्मीदवार गिरधारी यादव हैं, जो वर्तमान सांसद भी हैं। तो दूसरी तरफ राजद के उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव हैं। ये बांका के पूर्व सांसद हैं। यहां से 2014 में चुनाव जीत थे।
बात है हवा के रुख की तो बांका के अलग-अलग इलाकों की जनता और राजनीति के जानकार के दावे के हिसाब से वर्तमान समय में राजद के उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव रेस में आगे हैं। अभी हवा का रुख इनकी ओर ही है।
बांका संसदीय क्षेत्र में कुल वोटर्स की संख्या 15 लाख के करीब है। यहां यादवों की संख्या सबसे अधिक है। करीब 3 लाख यादव वोटर्स हैं। दूसरे नंबर पर करीब 2 लाख 80 हजार वोटर्स के साथ सवर्ण हैं। जबकि, तीसरे नंबर पर 2.50 लाख वोटर्स के साथ मुसलमान हैं। फिर वैश्य वोटर्स की संख्या 1.80 लाख हैं। इनके बाद कुशवाहा की संख्या 1.30 लाख, कुर्मी और धानुक को मिलाकर 1.30 लाख वोटर्स हैं। वहीं, दलित और महादलित वोटर्स की संख्या 1 लाख 25 हजार है। इसमें 60 हजार पासवान तो 65 हजार वोटर्स आदिवासी हैं।
स्थानीय लोगो से जब बांका का वर्तमान राजनीतिक माहौल क्या है के बारे में पूछा जाता तो कहते हैं कि जो काम करेगा, उसे वोट दिया जाएगा। जो काम नहीं करेगा, उसे वोट नहीं दिया जाएगा। बांका टाउन या इसके आसपास के इलाके में पिछले 5 सालों में कोई काम हुआ ही नहीं। सांसद गिरधारी यादव ने कोई काम करके नहीं दिखाया। इस कारण राजद के जयप्रकाश नारायण का पलड़ा भारी है।
बांका की राजनीति को जानने वाले कहते हैं- ‘वैसे बांका की जनता के मूड से साफ पता चल रहा है कि राजद उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव अभी तक बढ़त बनाए हुए हैं। हालांकि, चुनाव के आखिरी वक्त में यहां करवट बदल भी जाता है।’
सवाल है कि जयप्रकाश यादव के पक्ष में जनता का मूड क्यों है? इस पर लोग बताते हैं कि वर्तमान सांसद गिरधारी यादव को लेकर मतदाताओं में आक्रोश है। पिछले चुनाव में लोगों ने NDA को इस विश्वास के साथ वोट दिया था कि नरेंद्र मोदी हैं तो बांका का विकास होगा। लेकिन, जनता के विश्वास पर सांसद उतर नहीं पाए। केंद्र सरकार भी जनता की उम्मीदों पर खड़ी नहीं उतर पाई।
5 साल पहले जिस जगह पर बांका था, वहां से आगे विकास होने की जगह ये ससंदीय क्षेत्र और पिछड़ ही गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राम मंदिर से बांका की कुछ ही जनता प्रभावित है। जबकि, बड़े स्तर पर इसका कोई प्रभाव नहीं है।
पिछले चुनाव में बड़ा था जीत-हार का अंतर
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बांका में कुल 20 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। पर उस चुनाव में भी गिरधारी और जयप्रकाश के बीच ही बीच मुकाबला था। पिछले चुनाव में कुल 9 लाख 89 हजार 181 वोट पड़े थे। जदयू के उम्मीदवार गिरधारी यादव को 4 लाख 77 हजार 788 वोट मिले थे और वो चुनाव जीत गए थे।
जबकि, राजद के जय प्रकाश यादव को 2 लाख 77 हजार 256 वोट ही मिले थे। इन दोनों के बीच हार-जीत का अंतर 2 लाख 532 वोटों का था। जो एक बड़ा अंतर था। वहीं, बाकी के 18 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।