मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) द्वारा पाला बदलकर महागठधबंन के साथ सरकार बनाने से भाजपा (BJP) क्षुब्ध है। हालांकि, विपरीत परिस्थिति में भी अपना मार्ग सुगम बना लेने वाली भाजपा विपक्ष की भूमिका को भी कमोवेश अपनी जीत मान रही है। आज नहीं तो कल सही की आशा के साथ पार्टी के वे नेता भी कमर कसने लगे हैं, जिनके इलाके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)में रहते हुए जदयू के हवाले हो गए थे।
विश्वासघात धरना में खूब दिखी ऊर्जा
कोर कमेटी की ओर से तय कार्यक्रम के तहत पार्टी नेता प्रदेश से लेकर जिला और मंडल स्तर तक महाधरना का आयोजन कर रहे हैं। जिला स्तर पर शुक्रवार को संपन्न विश्वासघात महाधरना में नया दृश्य रहा। महाधरना में भाजपा के 2024 के भावी लड़ाके ऊर्जा से भरे हुए थे। पार्टी की संगठनात्मक 45 जिला मुख्यालयों में सक्रियता भी दिखी। दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू और लोजपा से सीट शेयरिंग के कारण बेटिकट हुए पांच पूर्व सांसदों ने महाधरना में जमकर दम-खम दिखाया। इसके साथ ही कुछ जिलों में नए लड़ाके भी 2024 की तैयारी में जुट गए हैं।
सीट छोड़कर भी बढ़ा गिरिराज का कद
2019 में जदयू के लिए लोकसभा की पांच सीटिंग सीटें छोड़ने के कारण भाजपा के पांच सांसद बेटिकट हो गए थे। तय फार्मूले के तहत छह में पांच सीटें जदयू तो एक लोजपा के खाते में चली गई थी। लोजपा के खाते में गई नवादा सीट से तब केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सांसद हुआ करते थे। भाजपा ने बाद में गिरिराज सिंह को बेगूसराय से चुनाव लड़ाया। वे जीते भी और प्रोन्नत भी हुए। केंद्र सरकार में वे केंद्रीय मंत्री बने। उसके पहले वे राज्य मंत्री थे।इलाका कब्जा करने के लिए अंगड़ाई ले रही आशा
भाजपा की ओर से छोड़ी गई सीटिंग सीटों में से पांच (वाल्मीकिनगर, झंझारपुर, सिवान, गोपालगंज व गया) जदयू के खाते में चली गई थीं। इस वजह से वाल्मीकिनगर के तत्कालीन सांसद सतीश चंद्र दूबे बेटिकट हो गए थे। बाद में उन्हें राज्यसभा भेजा गया। महत्वपूर्ण यह कि झंझारपुर के तत्कालीन सांसद वीरेन्द्र कुमार चौधरी 2014 में जदयू से भाजपा में आकर चुनाव लड़े थे, लेकिन 2019 के रेस से वे बाहर हो गए थे। इसी तरह से 2014 में बसपा से आकर गोपालगंज के सांसद बने जनक राम भी बेटिकट हुए। भाजपा ने जनक राम को प्रदेश महामंत्री बनाया और उसके बाद विधान पार्षद। वे नीतीश सरकार में मंत्री भी बनाए गए। सिवान से ओम प्रकाश यादव और गया से हरि मांझी पैदल हुए थे। बदली हुई परिस्थिति में इन सबकी महत्वाकांक्षा एक बार फिर अंगड़ाई लेने लगी है।
छोटे सहयोगियों से अपनी संभावना का फलक होगा बड़ा
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन 2019 में समझौते के तहत 17 सीटों से उसे संतोष करना पड़ा था। अगला चुनाव 2024 में होगा। भाजपा का मानना है कि माहौल उसके अनुकूल है। बिहार में कोई बड़ा दल उसका साझीदार नहीं तो इसका लाभ उसे अधिकाधिक सीटों पर लड़ने के रूप में मिलेगा। छोटे साझीदारों की हिस्सेदारी कम होने से निष्कंटक राज और राजनीति के लिए गुंजाइश बढ़ेगी।