नये राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की तारीख 25 जुलाई तय हो गई है। पक्ष और विपक्ष, दोनों की हलचलें भी पर्याप्त तेज हैं। विपक्ष की कमान स्वयं अपनी पहल पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी संभालती दिखाई दी हैं, तो भाजपा के जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह राष्ट्रपति पद के नाम पर सर्वसम्मति बनाने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं से बातचीत के दौर में हैं।
ममता बनर्जी की बैठक में प्रमुख विपक्षी दल शामिल हुए, लेकिन आम आदमी पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल अपवाद रहे। ममता बनर्जी ने कुछ नेताओं के नाम भी सामने रख दिए। पहले एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार के नाम पर चर्चा हुई, लेकिन उन्होंने विनम्रता से इंकार कर दिया। बाद में फारुख अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के नाम सामने आए जिनमें फारुख अब्दुल्ला की ओर से भी इंकार आ गया है।
गोपाल कृष्ण गांधी के नाम पर हो सकता है कि आगे भी चर्चा हो लेकिन समूचा विपक्ष स्वयं अपने आपको एकजुट रख सके, यह संभव दिखाई नहीं देता। राष्ट्रपति चुनाव के दौर में विपक्षी एकता की कोशिशों के बीच असहमति की दरारें भी साफ दिखाई दे रही हैं। दो-चार दलों के प्रवक्ता यह कहते हुए नजर आए हैं कि हमें विपक्षी एकता के लिए आपस में राजनीति नहीं करनी चाहिए और किसी नाम पर सहमति बनानी चाहिए। कहना होगा कि विपक्ष ने स्वयं ही उजागर कर दिया है कि राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार खड़े करने में उसमें एका नहीं है।
भाजपा की ओर से की जा रही सर्वसम्मति की कोशिशें विपक्ष के उस बयान से साबित हो जाती हैं, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो देश के ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने वाली मोदी सरकार पर अंकुश लगा सके यानी विपक्ष उस प्रत्याशी की तलाश कर रहा है जो मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर असहमति जता सके और सरकारी पक्ष ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहा है जो पूरी तरह सरकार के समर्थन में हो। इस सबमें यह स्पष्ट है कि किसी एक व्यक्ति के नाम पर सर्वसम्मति बनाना लगभग असंभव है।
विपक्ष किसी भी सूरत में भाजपा की पसंद में अपनी पसंद नहीं मिलाएगा। भले ही उसकी हार तय हो। वैसे यह एक ऐसा अवसर हो सकता था जहां पक्ष और विपक्ष अपने राजनीतिक हितों को थोड़ा ऊपर उठाते और सर्वसम्मति बनाकर यह उदाहरण प्रस्तुत करते कि देश में अभी भी कुछ मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर एका हो सकता है। यह उदाहरण सामने न भी आए, लेकिन आना जरूर चाहिए।