महाराष्ट्र में करीब ढाई साल पहले महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद से ही माना जा रहा था कि यह सरकार अपने अंतर्विरोधों के कारण ही अपने क्षरण को प्राप्त होगी।
लेकिन सरकार बनने के कुछ ही सप्ताह बाद देश में शुरू हो गई कोविड-19 महामारी के कारण दो वर्ष तक देश और प्रदेश अपनी दिक्कतों में ही जूझता रहा। किसी को सरकार के बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली लेकिन हाल ही में संपन्न हुए राज्य सभा चुनाव ने संकेत दे दिए हैं कि महाविकास आघाड़ी सरकार के क्षरण की शुरु आत हो चुकी है। और इस क्षरण की भूमिका लिखी है विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने।
राज्य सभा चुनाव में त्रिदलीय महाविकास आघाड़ी ने जबरन अपना चौथा उम्मीदवार खड़ा किया जबकि उसकी क्षमता इस उम्मीदवार को जिताने की नहीं थी। उसे जिताने के लिए आघाड़ी ने भरपूर प्रयत्न किए। कुछ छोटे दलों एवं कई निर्दलीय विधायकों को पांच सितारा होटल में रखा गया। उन्हें भरपूर ‘ट्रेनिंग’ दी गई। लेकिन मतदान के दिन सारी ट्रेनिंग धरी रह गई, और महाविकास आघाड़ी का चौथा उम्मीदवार मुंह के बल धड़ाम हो गया। आश्चर्य यह कि सत्तारूढ़ आघाड़ी में कई अनुभवी लोग इस बात का ख्याल रखने के लिए मौजूद थे कि कितने वोट किसे दिलवाए जाएं। किसे पहली प्राथमिकता के वोट दिलवाए जाएं, किसे दूसरी प्राथमिकता के वोट दिलवाए जाएं। इसके बावजूद दूसरी प्राथमिकता के खेल में महाविकास आघाड़ी पिछड़ गई, और भारतीय जनता पार्टी अपने तीसरे उम्मीदवार धनंजय महाडिक को जितवाने में कामयाब हो गई। शिवसेना में पहले उम्मीदवार रहे वरिष्ठ नेता संजय राउत तीन बार स्वयं राज्य सभा सदस्य रह चुके हैं। इसके बावजूद वह राज्य सभा चुनाव में दूसरी प्राथमिकता के मतों का गणित नहीं समझ सके, और देवेंद्र फडणवीस पहली प्राथमिकता में काफी पीछे रहने के बावजूद सिर्फ दूसरी प्राथमिकता का खेल जीतकर अपने उम्मीदवार को जितवाने में कामयाब रहे। फडणवीस की प्रतिबद्धता इससे भी समझी जा सकती है कि वह मतदान शुरू होने से 15 मिनट पहले ही विधानभवन पहुंच गए, और परिणाम आने तक वहीं टिके रहे। जबकि दूसरी ओर शिवसेना के मुखिया एवं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सिर्फ अपना मत देने के लिए ही विधानभवन तक आए।
आघाड़ी की इस हार ने सत्तारूढ़ गठबंधन के आपसी विश्वास को हिलाकर रख दिया है। परिणाम आने के कुछ ही घंटों बाद महाविकास आघाड़ी के शिल्पकार कहे जाने वाले बहुत ही वरिष्ठ नेता शरद पवार ने स्पष्ट कर दिया कि, ‘कई निर्दलीय विधायक हैं, जिन्होंने हमारे साथ कभी न कभी काम किया है। मैं उन्हें कुछ कहूं तो वे न नहीं कर सकते। लेकिन मैं इस सब में पड़ा नहीं।’ शरद पवार ने अपने बयान में कहा कि देवेंद्र फडणवीस में लोगों को अपने साथ जोड़ने की कला है। शरद पवार का यह बयान बहुत कुछ बयां कर देता है। साफ है कि पवार ने अपने संपर्क और संबंध शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार को जितवाने में खर्च करना उचित नहीं समझा। उन्होंने अपने बयान में यह भी बता दिया कि भाजपा का समर्थन कर रहे कुछ निर्दलीय विधायकों ने हमारे उम्मीदवार (यानी प्रफुल्ल पटेल) को वोट दिया है यानी उन्होंने अपने उम्मीदवार की जीत तो सुनिश्चित की, लेकिन शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार की जीत पर ध्यान नहीं दिया।
लगभग यही स्थिति कांग्रेस की रही। कांग्रेस ने जब एक बाहरी उम्मीदवार इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र भेजा, तो महाराष्ट्र कांग्रेस में काफी नाराजगी देखी जा रही थी। उस समय माना जा रहा था कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के ही कुछ विधायक इधर-उधर हो सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं, और इमरान प्रतापगढ़ी को पूरे 44 वोट मिले। यह और बात है कि आंतरिक रूप से कुछ वोट इन दलों में इधर से उधर स्थानांतरित किए गए हों। लेकिन इस चुनाव में शिवसेना की स्थिति ऐसी रही कि यदि जरा सी चूक और हो जाती, तो शायद शिवसेना का एक भी उम्मीदवार न जीत पाता क्योंकि भाजपा के तीसरे उम्मीदवार एवं शिवसेना के पहले उम्मीदवार को मिले मतों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था।
यही कारण है कि इस हार ने शिवसेना की खीझ बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तो चुप हैं। लेकिन पार्टी में बोलने की ही जिम्मेदारी संभाल रहे संजय राउत निर्दलीय विधायकों पर लगातार बरस रहे हैं। उन्हें गद्दार बता रहे हैं। यह सोचे बगैर कि इन्हीं विधायकों से चंद दिनों बाद विधान परिषद में भी वोट लेना है। 20 जून को होने जा रहे इस चुनाव में भी महाविकास आघाड़ी ने अपनी मत क्षमता से एक उम्मीदवार अधिक खड़ा कर दिया है। लेकिन इस बार यह उम्मीदवार शिवसेना का नहीं, बल्कि कांग्रेस का है। पता चला है कि राज्य सभा में अपनी हार से खीझी बैठी शिवसेना ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार सभी पार्टयिां अपना-अपना उम्मीदवार देखें। दरअसल, विधान परिषद के लिए शिवसेना और राकांपा ने दो-दो उम्मीदवार खड़े किए हैं। इन दोनों दलों की विधायक संख्या मिलाकर चार उम्मीदवार जितवाने की क्षमता भी है। लेकिन इन्हीं की देखादेखी कांग्रेस ने भी दो उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। उसे अपना दूसरा उम्मीदवार जितवाने के निर्दलीय विधायकों एवं छोटे दलों की जरूरत पड़ेगी।
इस बार तो राज्य सभा की तरह मतपत्र अपने एजेंट को दिखाना भी जरूरी नहीं होगा यानी बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। भाजपा ने इस चुनाव में भी अपनी क्षमता से एक उम्मीदवार अधिक खड़ा किया है। परिणामत: महाविकास आघाड़ी को 10 दिन के अंदर ही दूसरी बार मात खानी पड़ सकती है। बात इन दो मातों तक ही सीमित नहीं रहने वाली। आने वाले कुछ महीनों में ही महाराष्ट्र में कई जगह स्थानीय निकायों के चुनाव लंबित हैं। इनमें मुंबई की महानगर पालिका भी शामिल है, जहां शिवसेना पिछले 30 साल से सत्ता में है। पिछले चुनाव में भी वह भारतीय जनता पार्टी से सिर्फ दो सीटों से आगे रही थी। इस बार भाजपा सांगठनिक स्तर पर और ज्यादा सतर्क होकर तैयारियां कर रही है। राज्य सभा के बाद विधान परिषद में भी यदि महाविकास आघाड़ी गिरी तो उसके गिरने का सिलसिला आगे भी जारी ही रहने वाला है।