विश्व के अनेक शीर्ष वैज्ञानिक और विद्वान अब मानते हैं कि धरती की जीवनदायिनी क्षमताएं संकटग्रस्त हो चुकी हैं और मानवता का कर्त्तव्य और चुनौती है इस जीवनदायिनी क्षमता की रक्षा करना। इस स्थिति में विनाशक युद्ध छेड़ देना या ऐसे कारणों को उत्पन्न करना जिससे युद्ध की आशंका और बढ़ जाए–इस कर्त्तव्य से पूरी तरह विमुख होना और संकट को बढ़ा देना है। मानवता ऐसी गंभीर गलतियों से कैसे बचे और किस तरह मूल कर्त्तव्यों और चुनौतियों के लिए समर्पित रहे‚ इसके लिए भविष्य नियोजन के मूल आधारों पर व्यापक सहमति बननी चाहिए।
सबसे पहला आधार है अमन–शांति के लिए गहरी प्रतिबद्धता। इतिहास में यह सदा जरूरी रहा पर आज तो मानवता की रक्षा और धरती पर जीवन की रक्षा के लिए अति आवश्यक है। हथियार इतने विनाशक हो चुके हैं कि मानव के भविष्य को अब युद्धविहीन भविष्य के रूप में ही देखना होगा। विभिन्न देशों की आंतरिक हिंसा और क्षेत्रीय‚ सांप्रदायिक जातिगत आदि हिंसा को भी न्यूनतम करना होगा। इस सब के लिए अमन–शांति के प्रति और अहिंसा के प्रति गहरी आस्था होनी चाहिए।
दूसरा बड़ा आधार पर्यावरण की रक्षा का है। स्टॉकहोम रेसेलियंस सेंटर ने ९ संदर्भों में धरती की सीमा रेखाओं को पहचानने का प्रयास किया है। इन सीमा रेखाओं पर अतिक्रमण हुआ तो धरती पर जीवन की संभावनाओं पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ेगा। ये नौ संदर्भ हैं–जलवायु बदलाव‚ स्ट्रोटोस्पफीयर की ओजोन परत‚ भूमि उपयोग में बदलाव‚ ताजे या मीठे पानी का उपयोग एवं दोहन‚ जैव–विविधता‚ समुद्रों का अम्लीकरण‚ नाईट्रोजन एवं फास्फोरस में वृद्धि‚ वायु प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण। इन संदर्भों में निर्धारित सीमा–रेखाओं का अतिक्रमण धरती पर जीवन के लिए घातक होगा। इन सभी सीमा रेखाओं को निर्धारित करने में कठिनाइयां हैं पर जहां तक संभव था यह काम इस केंद्र के वैज्ञानिकों ने किया है। इनमें से तीन संदर्भों में सीमा–रेखा का उल्लंघन संभवतः पहले ही हो चुका है। ये तीन संदर्भ हैं–जलवायु बदलाव‚ जैव विविधता और बायोस्फीयर में नाइट्रोजन की वृद्धि।
इस अध्ययन में बताया गया है कि ये सब सीमा–रेखाएं एक दूसरे से पूरी तरह अलग निश्चित तौर पर नहीं हैं और एक संदर्भ में जो भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं‚ वे दूसरे संदर्भों को भी प्रभावित करती हैं‚ और उनसे प्रभावित होती हैं। इस तरह वास्तविक जीवन में इन सब कारकों के मिले–जुले असर से खतरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं। विश्व में लगभग ९–१० ऐसी गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं हैं‚ जिनके मिले–जुले असर से धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में पड़ गई है। इन पर्यावरण समस्याओं को समय रहते नियंत्रित करने के लिए विश्व स्तर‚ राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर गहरी प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। तीसरा मूल आधार है समानता व न्याय। विश्व में जाति‚ लिंग‚ रंग‚ नस्ल‚ धर्म‚ संप्रदाय आदि विभिन्न स्तरों पर तरह–तरह के अन्याय व भेदभाव होते रहे हैं। उन्हें पूरी तरह समाप्त कर समानता व न्याय के आधार पर भावी विश्व का नियोजन होना चाहिए। चौथा आधार है कि केवल मनुष्यों की नहीं अपितु सभी जीव–जंतुओं‚ पशु–पक्षियों‚ जल व स्थल जीवों‚ कीट–पतंगों आदि की रक्षा व भलाई को समुचित महत्व मिलना चाहिए।
एक अन्य बुनियादी आधार है कि लोकतंत्र में गहरी आस्था होना व विभिन्न विवादों और समस्याओं के लोकतांत्रिक समाधान को समुचित महत्व देना। इसके लिए पारदर्शिता की व्यवस्था में सुधार करना भी आवश्यक है। एक अन्य आधारभूत बात यह है कि मानव के विभिन्न संबंध आधिपत्य के स्थान पर आपसी सहयोग की बुनियाद पर खड़े हों। लिंग‚ वर्ग‚ जाति‚ समुदाय यहां तक कि परिवार के संबंधों में भी प्रायः कहीं न कहीं आधिपत्य की सोच रहती है। इसके स्थान पर सहयोग की सोच आए। मनुष्य के प्रकृति व अन्य जीवों से संबंध भी आधिपत्य पर आधारित न हों अपितु ‘सभी को जीने का हक है’ और ‘सभी की जीवनदायिनी स्थितियों की रक्षा हो’ के आधार पर ये संबंध होने चाहिए। इस तरह के भविष्य को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयास करने होंगे और इन उद्देश्यों के अनुरूप जीवन–मूल्यों का प्रसार व्यापक स्तर पर करना चाहिए।
एक अति महत्वपूर्ण जीवन–मूल्य है– सतत प्रयास करना कि हम किसी को अन्य मनुष्य या जीव को‚ अपने किसी कार्य से दुख न पहुंचाएं‚ कष्ट न पहंुचाएं। यदि इस मूल्य के अनुरूप दैनिक व्यवहार हो तो दुनिया में दुख–दर्द में बहुत कमी लाना संभव है। इसी तरह का एक अन्य जीवन–मूल्य है–यथासंभव अन्य मनुष्यों और जीवों के दुखों को कम करना। एक अन्य जरूरी और महत्वपूर्ण जीवन–मूल्य है–यथासंभव पर्यावरण की क्षति कहीं न करें और यथासंभव पर्यावरण की रक्षा में योगदान दें।
इन तीनों उपलब्धियों के लिए अपनी क्षमताओं का निरंतर विकास करना भी इतना ही जरूरी है जितना इन मूल्यों को अपनाना। इसके लिए सभी तरह के नशे से अपने को सदा दूर रखना व यथासंभव स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना‚ ईमानदारी से अध्ययन–चिंतन करना अपने आसपास के लोगों में सार्थक विचार–विमर्श करना यह बहुत उपयोगी है। सादगी का जीवन जीना‚ विलासिता को न्यूनतम करना‚ नजदीकी संबंधों को प्रगाढ़ बनाना आवश्यक है। मनुष्य किसी के हक को कभी न छीने अपितु मेहनत से अपनी क्षमताओं का विकास करते हुए आगे बढ़े व अपने जीवन को सभी मनुष्यों‚ जीवों व पर्यावरण की भलाई से जोड़े‚ यही सबसे उचित राह है।
अमन–शांति के प्रति मनुष्य का समर्पण उसके दैनिक जीवन में अहिंसक आचरण में‚ दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार में अभिव्यक्त होना चाहिए। अधिकांश हिंसा क्रोध में होती है‚ अतः क्रोध से बचना चाहिए। इस तरह विश्व के लिए जरूरी बदलावों का मेल व्यक्तिगत जीवन के लिए जरूरी बदलावों से करना चाहिए। विश्व में सार्थक बदलाव के अनुकूल जीवन–मूल्यों का प्रयास करोड़ों लोगों के जीवन में होगा तो विश्व के लिए वास्तव में जरूरी बदलाव की बुनियाद तैयार होगी।