केरल में वाममोर्चा की सरकार केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार या विकास के उनके गुजरात मॉडल की कितनी मुरीद होगी‚ अंदाजा लगाया जा सकता है। पर यह अंदाजा आज किस तरह एक बड़ा पूर्वाग्रह साबित हो रहा है‚ इसकी बड़ी मिसाल हाल में देखने को मिली है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने पिछले हफ्ते उस समय लोगों को सकते में ला दिया जब उन्होंने मुख्य सचिव वीपी जॉय को गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के ई–गवर्नंस ‘डैशबोर्ड सिस्टम’ का अध्ययन करने के लिए गुजरात भेजा। यह खबर जितनी बड़ी और कौतूहल पैदा करने वाली थी‚ इसकी उतनी चर्चा पहले नहीं हुई। अब धीरे–धीरे इस बारे में बात होनी शुरू हुई है। अखबारों में इस पर स्तंभकार अब आलेख लिख रहे हैं तो विकास और शासन के साझे पर जोर देने वाले जानकार इस तथ्य का उल्लेख अलग–अलग मंचों पर कर रहे हैं।
दरअसल‚ पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति के सूर्य के दक्षिणायन होने को लेकर अगर किसी को मलाल हो तो हो‚ पर सरजमीनी हकीकत तो यही है। यही नहीं‚ इस दौरान पिछले तीन दशक का वह मुहावरा भी बदल गया कि विकास का मतलब सिर्फ लालफीताशाही को कम करना और निवेश के लिए उदार और अनुकूल माहौल तैयार करना है। गौर करें कि देश में सुशासन और विकास की राह भले केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने ली हो‚ पर इसे बकायदा विकास के एक मॉडल के तौर पर स्थापित और चर्चित करने का श्रेय नरेन्द्र मोदी को जाता है‚ जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गुजरात विकास का यह मॉडल उनके बाद भी प्रदेश में आगे बढ़ता रहा‚ समृद्ध होता रहा।
गुजरात के अनुभव के आधार पर ही अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में केंद्र की मोदी सरकार लगातार आगे बढ़ रही है। इस दौरान योजनागत सफलताओं से ज्यादा श्रेय उनको इस बात का जाता है कि उन्होंने ई–गवर्नंस को देश की शासकीय व्यवस्था का न सिर्फ हिस्सा बनाया बल्कि इसके तहत योजनाओं के विकास से लेकर उससे जुड़े हर पहलू पर कारगर निगरानी की व्यवस्था को ठोस आकार दिया। भारत में आज केंद्र के साथ अधिकतर राज्य सरकारें भी नागरिक सेवाओं को जारी करने और उन्हें लागू करने के लिए तकनीक का अधिकाधिक उपयोग कर रही हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इसका श्रेय गुजरात को जाता है। अलबत्ता‚ आम धारणा के उलट तकनीक की मध्यस्थता से शासन चलाना और विकासवादी एजेंडे को लागू करना आसान नहीं बल्कि खासी विस्तृत प्रक्रिया है। ई–गवर्नंस को सही मायने में फलदायी बनाने के लिए सरकारी तंत्र और इस क्षेत्र से संबंधित पेशेवर मानव बल दोनों के बीच सही संयोजन जरूरी है। हाल के कुछ दिनों में गुजरात सरकार द्वारा उपयोग में लाए जा रहे ई–गवर्नंस मॉडल में सीएम डैशबोर्ड की चर्चा काफी हो रही है। अब तक के अपने कारगर इस्तेमाल से गुजरात की इस डैशबोर्ड व्यवस्था ने साबित किया है कि नागरिकों के कल्याण के प्रति राज्य सरकार की प्रतिबद्धता और पारदर्शिता को फलदायी बनाने के लिए यह अहम उपकरण है।
गुजरात सरकार के बाद कई अन्य राज्य सरकारों ने भी इस मॉडल को लागू करते हुए प्रशासनिक समीक्षा के लिए अपने–अपने स्तर पर डैशबोर्ड व्यवस्था को लागू किया है‚ पर नतीजे उतने बेहतर नहीं आए हैं। दरअसल‚ गुजरात सरकार ने जिस तरह से इसमें सरकारी तंत्र की हर छोटी–बड़ी प्रक्रियाओं को शामिल किया है वह राज्यों के लिए खास तौर पर सीखने लायक है। हम गुजरात के ‘सीएम डैशबोर्ड’ पर आगे और बात करें उससे पहले जरूरी है यह जान लेना कि यह व्यवस्था काम कैसे करती है। डैशबोर्ड एक ऐसी तकनीकी व्यवस्था है जहां कई विजेट्स होते हैं और वो आपको उन सभी रिपोर्ट और डाटा के अवलोकन सुविधा देते हैं‚ जो आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। यह व्यवस्था साथ ही कई विश्लेषणात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत करता है‚ जिससे जमीनी स्थिति समझ में आती है। डैशबोर्ड की मदद से आप कई क्षेत्रों की योजनाओं और अन्य कार्य प्रगति पर भी नजर रख सकते हैं और इसकी प्रगति से जुड़े विस्तृत विश्लेषण से अवगत हो सकते हैं। साफ है कि वह दौर गया जब सचिवालयों में ऐसे कामों के लिए फाइलों की पहले तो मोटाई बढ़ती थी‚ फिर या तो वे ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते थे या फिर उनके जरिए आप कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते।
गुजरात का सीएम डैशबोर्ड इस स्थिति का कारगर उत्तर है। इस बारे में और तफ्सील से बात करें तो गुजरात के इस सीएम डैशबोर्ड में राज्य के २० से अधिक सेक्टर्स के ४००० से अधिक मानकों पर राज्य की योजनाओं और परियोजनाओं की समीक्षा की जाती है। इसे गुजरात के ई–गवर्नंस मॉडल की सफलता ही कहा जाएगा‚ जिसकी शुरु आत पांच साल पहले प्रशासनिक कार्यप्रणाली में नागरिक केंद्रित सेवाओं‚ योजनाओं और परियोजनाओं को जमीनी स्तर पर‚ सही समय पर और पूरी पारदर्शिता के साथ लागू करने के लिए सीएम डैशबोर्ड के रूप में एक ऐसे नये अध्याय से हुई थी‚ जिसका अध्ययन आज देश की कई राज्य सरकारें कर रही हैं। हाल ही में केरल सरकार के अधिकारियों की टीम ने जब इस डैशबोर्ड को देखा तो इसकी सराहना की। इतना ही नहीं‚ पिछले साल नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने और केंद्र सरकार की डिपार्टमेंट ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स एंड पब्लिक ग्रिवान्सेस‚ विभाग के अधिकारियों की एक टीम ने भी गुजरात के सीएम डैशबोर्ड की व्यवस्था को देखा–समझा था और इस व्यवस्था को देश के शेष राज्यों में भी इसे लागू करने का सुझाव दिया था। हाल ही में जारी सुशासन सूचकांक २०२१ में गुजरात को पहला स्थान मिला है।
यह इस बात की पुष्टि करता है कि गुजरात सरकार अपने ई–गवर्नंस मॉडल (सीएम डैशबोर्ड और अन्य डिजिटल प्लटेफॉर्म) के माध्यम से ‘सिटीजन फर्स्ट’ के दृष्टिकोण के लिए पूर्ण रूप से गंभीर और प्रतिबद्ध है। गुजरात में ई–गवर्नंस के सफल प्रयोग और उसके अपेक्षित नतीजों से जो एक बात और साबित हुई है‚ वह यह कि देश में राजनीति और विकास का नया साझा खड़ा हो रहा है। जिन लोगों को यह बात अब भी समझ नहीं आ रही उन्हें केरल के मुख्य सचिव वीपी जॉय की बातों को सुनना चाहिए और यह मान लेना चाहिए कि राजनीति के अलग–अलग ध्रुव आज देश में विकास के मामले में एकमत हैं‚ एक–दूसरे से सीखने के लिए हर तरह के पूर्वाग्रह से ऊपर उठ रहे हैं।