अनेक अंतर्विरोधो के बावजूद महिलाओं ने भारतीय समाज में अपनी जगह पुख्ता की है। प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था। प्रारंभिक वैदिक काल, गार्गी और मैत्रयी जैसी विदुषियों के आख्यान से भरा है। बाबजूद इसके वर्चस्व एवं प्रतिरोध के विभिन्न स्तरों पर स्त्रियों को अनपेक्षित रूप से दुराग्रह का समना करना पड़ा है।
कार्यस्थल पर यौन शोषण और छेड़छाड़ की हाल की घटनाएं फौरी तौर पर इस बात को पुख्ता करती है कि एक आधुनिक राष्ट्र की गरिमामयी छवि वाला देश आज भी अविकसित, भीरू और संकीर्ण मानसिकता के चरित्र से बाहर नहीं निकल पाया है। कार्यस्थल से जुड़ी हाल में घटित कुछ घटनाएं तो बेहद चौंकाने वाली है। बिहार के गया के पंचायती राज विभाग कार्यालय में डीपीआरो द्वारा एक महिला कर्मचारी को दफ्तर में टाइट जींस और टी शर्ट पहन कर आने और ऐसा न करने पर दूरदराज के इलाके में तबादला कर देने की धमकी देना कुत्सित मानसिकता का ही परिचायक है। कुछ दिन पहले भी ठीक ऐसा ही मामला सामने आया था जिसने देशभर में सनसनी फैला दी थी। लेडी सिंघम नाम से प्रसिद्ध वन रेंज अधिकारी (आरएफओ) दीपाली चव्हाण द्वारा यौन शोषण के चलते आत्महत्या करना और अपने पर्यवेक्षक पर यौन उत्पीड़न और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाना स्पष्ट तौर पर यौनलोलुप समाज के वीभत्स चेहरे को सामने लाता है।
ऐसे मामले कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानूनों को लागू करने में सामाजिक और प्रणालीगत अक्षमता पर सवाल उठाते हैं। खास तौर से पुरु ष-केंद्रित और पुरु ष-प्रधान व्यवसायों पर। हालांकि ऐसे मामलों पर वैधानिक संज्ञान लेते हुए 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में ‘विशाखा दिशानिर्देश’ निर्धारित किए। इसके जरिए नियोक्ता के लिए महिला कर्मचारियों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने के लिए कदम उठाना और समाधान, निपटारे या अभियोजन के लिए कार्यप्रणाली की व्यवस्था करना अनिवार्य बना दिया गया। इस कानून में यौन उत्पीड़न को शारीरिक संपर्क और कोशिशों, या यौन संबंध हेतु मांग या अनुरोध, या कामुक टिप्पणी, या अश्लील साहित्य या चित्र का प्रदशर्न या यौन प्रकृति के किसी अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक, या गैर-मौखिक आचार-व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है। इनमें से कोई भी कार्य चाहे प्रत्यक्ष हो या सांकेतिक, कानून के तहत यौन उत्पीड़न है।
इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन द्वारा 2017 में कराए गए भारत में अब तक के सबसे बड़े सर्वेक्षण में पाया गया कि रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न अब भी व्यापक रूप से पांव पसारे हुए है। जिनमें अश्लील टिप्पणियों से लेकर यौन अनुग्रह की सीधी मांग तक सम्मिलित है, लेकिन सवाल ये है कि पुख्ता कानून व्यवस्था और सख्त सजा के प्रावधानों के बावजूद आज भी स्थिति में सुधार क्यों नहीं? समाज में वर्चस्व के विरु द्ध चेतना के निर्माण में सक्षम महिलाएं तभी आगे आ पाएंगी, जब उन्हें एक सुरक्षित माहौल दिया जा सकेगा। वेदना और उत्पीड़न की गहरी लकीरों से कहीं उनके अस्तित्व की इबारत न दरकने लगे इसका ध्यान रखना होगा। कार्यस्थल पर उसकी प्रतिभा और शुचिता शंका के घेरे में है तो विकास और आधुनिकता की अवधारणा छद्म है।