उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले चरण का चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। ११ जिलों की ५८ सीटों पर ६०.१७ फीसद मतदान हुआ‚ जो पिछले चुनाव (२०१७) के मुकाबले करीब ३ फीसद कम है। मतदान में शामली जिले का कैराना सबसे ज्यादा ७५ फीसद वोटिंग वाला क्षेत्र रहा तो गाजियाबाद जिले की साहिबाबाद विस सीट पर सबसे कम महज ४७.२२ फीसद वोट पड़े़। जैसा कि अनुमान था कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर ज्यादा मतदान हुआ लेकिन वैसा कुछ नहीं दिखा। जितना फीसद पिछले चुनाव में था‚ वैसा ही कुछ इस बार भी रहा। इसके बावजूद चुनाव को एकतरफा नहीं कहा जा सकता है। यानी लड़़ाई कांटे की है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां ज्यादा तादाद में लोग घरों से मतदान के लिए निकले वहीं शहरी क्षेत्र के मतदाताओं में उदासी दिखी। दिल्ली से सटे नोएड़ा में ५०.१० फीसद वोटिंग हुई। यह कम तो है मगर इस मामले में राहत भरा है कि पिछले चुनाव में यहां ४८.५६ फीसद वोट पड़े़ थे। केंद्रीय चुनाव आयोग ने हालांकि हाल के वर्षों में मतदान बढ़ाने को लेकर गंभीर प्रयास किए हैं। पहले चरण के मतदान में एक और तथ्य भी सामने आया कि स्थानीय मुद्दों के अलावा बिजली के बिल और स्कूलों की फीस को केंद्र में रखकर लोगों ने मतदान किया। कोविड़ प्रोटोकाल के तहत इस बार मतदान का समय एक घंटे बढ़ाया गया‚ जो मतदान केंद्रों पर दिखा भी। कुछ जगहों पर ईवीएम में खराबी के कारण मतदान में व्यवधान भी देखने को मिला। कुल मिलाकर मतदान को बेहतर कहा जा सकता है। अभी छह चरण का मतदान बाकी है। देखना है कि आने वाले चरण में मतदान का फीसद बढ़ता है‚ या पिछले वर्ष की तरह रहता है। जहां तक जीत के दावों की बात है तो भाजपा गठबंधन ने वोटिंग को अपने पक्ष में बताया है जबकि विपक्षी गठबंधन का मानना है कि जनता ने उन्हें अपनी वोटिंग से आशीर्वाद दे दिया है। चुनाव इस मायने में भी बेहद अहम है क्योंकि चुनाव के पहले चरण की शुरुआत उस इलाके से हुई है जहां जाट बहुतायत में हैं। ज्ञात है कि किसान आंदोलन के कारण केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान वर्ग में जबरदस्त विरोध देखा गया। दूसरा चरण १४ को है। उम्मीद है कि चुनाव इसी तरह शांतिपूर्वक हो जाए।
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