दलित समुदाय की सात वर्षीय मासूम बच्ची से दुष्कर्म के आरोपी को महज चार दिन में फांसी की सजा सुनाने वाले बिहार की पोस्को अदालत के न्यायाधीश को निलंबित कर दिया गया है। निलंबन में कहा गया है कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित है। लेकिन हकीकत यह है कि अभी तक उन्हें किसी भी मामले में कारण बताओ नोटिस तक नहीं दिया गया है। दुष्कर्म के मामले में त्वरित न्याय करने वाले न्यायिक अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई बिहार की न्यायिक व्यवस्था पर सवाल खडा कर रही है।
सर्वोच न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कहते हैं कि ‘ त्वरित न्याय देने वाले ईमानदार न्यायिक अधिकारी के खिलाफ ऐसी कार्रवाई से न्यायपालिका की छवि धूमिल होगी।’ गौरतलब है कि बिहार के अररिया जिला के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और पोस्को अदालत के न्यायाधीश शशिकांत राय ने आजाद भारत के इतिहास में न्यायपालिका के त्वरित न्याय की दिशा में बडा कीर्तिमान बना दिया। देश का संविधान लागू होने के ७३ वें वर्ष में उन्होंने दलित वर्ग की सात साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म के आरोपी मोहम्मद मेजर नामक आरोपी को महज चार दिन की सुनवाई के बाद २७ जनवरी २०२२ को फांसी की सजा सुना दी। इसी के साथ आरोपी पर १० हजार रुपए जुर्माना लगाते हुए पीडित बच्ची के परिजनों को दस लाख रुपए मुआवजा देने का भी आदेश दिया। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार करीब ६० साल के आरोपी मोहम्मद मेजर ने तीन शादियां की हुई हैं और वह २२ बच्चों का पिता है। यौन अपराधों से जुडे दर्जन भर से ज्यादा मामलों के इस आरोपी के खिलाफ छह मामलों में अभियोग पत्र भी दाखिल हो चुका है। दहशत के कारण गांव के करीब एक दर्जन दलित परिवार पलायन कर चुके हैं। आदतन यौन अपराधों के इस आरोपी ने अपने ही गांव वीर नगर में रहने वाले दलित परिवार की करीब सात वर्षीय मासूम बच्ची को अपनी हैवानियत का शिकार बनाया था। जिससे पहले उसने मासूम बच्ची की कनपटी पर बंदूक रखकर उसे जान से मारने की धमकी भी दी थी। इस मामले में हुई सुनवाई को महज चार दिन में पूरा करके पोस्को अदालत के न्यायाधीश शशिकांत राय ने आरोपी को मौत की सजा सुना दी। त्वरित न्याय देने के उनके इस फैसले की देश भर में प्रशंसा हो रही है।
बिहार सरकार के अभियोजन निदेशालय ने इस मामले को राष्ट्रीय रिकॉर्ड बताते हुए न्यायिक प्रशंसा में अधिसूचना पत्र भी जारी किया था। इससे पहले भी न्यायाधीश शशिकांत राय ने सात साल की नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के आरोपी को महज एक दिन की न्यायिक प्रक्रिया के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनकर राष्ट्रीय रिकॉर्ड स्थापित कर चुके हैं। इतना ही नहीं उनकी अदालत में सैकडों मामलों में त्वरित न्याय दिया जा चुका है।
हैरानी की बात है कि जिस समय देश में महिलाओं के खिलाफ बढ रही आपराधिक घटनाओं और दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई और सजा देने में होने वाली देरी के खिलाफ लगातार आवाज उठ रही है‚ तब न्यायपालिका की गरिमा बढाने वाले न्यायाधीश के खिलाफ ऐसी कार्रवाई चर्चा का विषय बन गई है। इतना ही नहीं इस कार्रवाई के बाद उच्च न्यायिक संस्थानों के फैसले पर गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं। सर्वोच न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह इस कार्रवाई को अनुचित करार देते हैं। उनका कहना है कि आज जब देरी से होने वाले फैसलों के कारण न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठते रहते हैं तो त्वरित न्याय देने वाले किसी न्यायिक अधिकारी को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। लेकिन यहां तो ऐसी न्यायाधीश को सजा देने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि हम समाज को क्या संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि किसी फैसले के खिलाफ एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई एक नई परंपरा शुरू कर देगी। कानून में किसी भी फैसले के खिलाफ अपील का प्रावधान है। यदि फैसला देने वाले न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई तो पूरे देश में हजारों नए मुकदमे दर्ज करने पडेंगे।