कोरोना का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव शिक्षा‚ शिक्षण और शिक्षार्थियों पर ही पड़ा है। मार्च‚ २०२० में अचानक बोर्ड–परीक्षा रद्द होने‚ दो–दो लॉकडाउन लगने‚ कोरोना की पहली व दूसरी लहर के त्रासद परिणामों को देखने–सुनने‚ ऑनलाइन कक्षाओं के बोझिल दबावों और शरीरिक–मानसिक दुष्प्रभावों को लगातार झेलने तथा तीसरी लहर व ओमीक्रोन की वैश्विक आशंकाओं और अफवाहों आदि का चौतरफा शोर सुनते रहने का बाल–मन पर कितना गहरा व व्यापक असर पड़ा होगा‚ इसका अनुमान कोई भी संवेदनशील व्यक्ति सहज ही लगा सकता है। चिंताओं–आशंकाओं का आलम यह है कि मध्य अगस्त–सितम्बर से ऑफलाइन कक्षाएं लगाने की अनुमति मिलने के बाद आज भी कई विद्यालय ऑनलाइन कक्षाएं चलाने को बाध्य एवं मजबूर हैं।
ऐसे में जब सीबीएसई ने संपूर्ण पाठ्यक्रम को दो भागों एवं सत्रों में बांटते हुए प्रथम सत्र की बोर्ड–परीक्षा बहुविकल्पी और द्वितीय सत्र की लिखित व विषयगत (सब्जेक्टिव) रखने की घोषणा की तो शिक्षकों–अभिभावकों–विद्यार्थियों ने खुलकर इसका स्वागत किया। सबको लगा कि सत्र देर से प्रारंभ होने तथा रोज बदलतीं परिस्थितियों व नवीन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई बच्चों पर परीक्षा व पाठ्यक्रम का बोझ कम करना चाहता है पर प्रथम सत्र की परीक्षा प्रारंभ होते ही बच्चों के लिए सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी स्थिति निर्मित हो गई। अब जबकि बोर्ड–परीक्षा समापन की ओर है‚ विद्यार्थी‚ शिक्षक‚ अभिभावक‚ सभी चिंता और अवसाद में हैं।
सामाजिक जागृति के बिना तो नकल और कदाचार पर पूरी तरह नकेल कस पाना किसी भी व्यवस्था के लिए कदाचित संभव नहीं पर जाने–अनजाने व्यवस्था द्वारा ही ऐसे छिद्र और संभावनाओं को खुला छोड़ देना सर्वथा अनुचित है। नई परीक्षा पद्धति में शिक्षण–संस्थाओं के नाम पर नकल का ठेका लेने वालों‚ डमी स्कूल्स और कोचिंग–संस्थान चलाने वालों की पौ–बारह है। बहुविकल्पी प्रश्नों पर आधारित यह परीक्षा कोचिंग संस्थाओं की कार्यप्रणाली एवं तैयारी कराने के तौर–तरीकों के अनुकूल है। इसमें परीक्षार्थी के लिए एक से अधिक ओएमआर शीट निकालने‚ परीक्षा–कक्ष का निरीक्षण करने‚ ओएमआर शीट का मूल्यांकन करने‚ मूल्यांकित शीट को अपलोड करने जैसी सारी जिम्मेदारी संबंधित विद्यालय पर ही छोड़ दी गई है। उसी शहर या निकट के किसी विद्यालय से किसी शिक्षक को ‘ऑब्जर्वर’ नियुक्त किया गया है। तमाम परीक्षा–केंद्रों पर विषय–विशेषज्ञों की बजाय किसी से भी ओएमआर शीट का निरीक्षण कराया जा रहा है। ऐसे में नकल और कदाचार को प्रोत्साहन मिल रहा है।
कोढ़ में खाज सीबीएसई द्वारा तैयार प्रश्न पत्र भी हैं। प्रतीत होता है कि सीबीएसई ने ये प्रश्न पत्र शिक्षकों से नहीं‚ अपितु प्रतियोगी परीक्षा कराने वाली एजेंसियों से बनवाए हों। प्रश्न पत्र बनाने के क्रम में कोरोना से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों‚ विलंबित सत्र‚ अनियमित कक्षाओं‚ प्रश्न हल करने की समय–सीमा‚ निर्धारित पाठ्यक्रम‚ बोर्ड द्वारा जारी प्रतिदर्श प्रश्न पत्रों‚ पूर्वाभ्यास‚ कक्षानुसार कठिनाई–स्तर‚ विषयगत विविधता आदि की घनघोर उपेक्षा की गई है। प्रश्न पत्र का स्तर उचा और कठिन रखते हुए सीबीएसई ने कोविड से उत्पन्न व्यवधानों और विद्यालयों के शैक्षिक स्तरों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा। परीक्षा संबंधी उसके तमाम निर्णयों और प्रश्न पत्रों को देखकर यही लगता है जैसे वह कठिन कोविड–काल में बच्चों के साथ प्रयोग–दर–प्रयोग कर रहा हो।
सनद रहे कि बच्चे कोई प्रयोगशाला या उत्पाद नहीं हैं कि एक प्रयोग विफल रहने के बाद दूसरा.तीसरा.आजमाया जाए। सीबीएसई को ऐसे प्रयोग करने ही थे तो स्थितियां सामान्य होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी‚ नवीं और ग्यारहवीं से इसकी शुरु आत कर बच्चों को मानसिक तौर पर पहले तैयार करना चाहिए था। बारहवीं बोर्ड के परिणाम पर ही बच्चों का भविष्य और कॉलेज–विश्वविद्यालयों में प्रवेश निर्भर करता है। सीबीएसई की अनिश्चितता‚ ढुलमुल नीति एवं लापरवाही का दुष्परिणाम बच्चे क्यों भुगतें!
सीबीएसई के तौर–तरीकों एवं प्रश्न पत्रों की वास्तविक स्थिति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उसे अपने ही द्वारा बनाए गए दसवीं के अंग्रेजी और बारहवीं के समाजशास्त्र विषय के प्रश्न पत्र के लिए दो–दो बार सार्वजनिक माफी तक मांगनी पड़ी। दसवीं के हिंदी‚ अंग्रेजी‚ गणित व विज्ञान तथा बारहवीं के अंग्रेजी‚ गणित‚ फीजिक्स‚ अकाउंट्स‚ हिंदी आदि विषयों के प्रश्न पत्र अपेक्षानुरूप नहीं आए। अधिकांश विषयों में उत्तर के रूप में दिए गए विकल्प बहुत मिलते–जुलते‚ एक जैसे एवं भ्रमात्मक थे। बारहवीं में हिंदी–कोर विषय के प्रश्न संख्या ५७ में विकल्पों को देखें–‘(बी) पिता की जिम्मेदारियों का भार उठाने के लिए‚ (डी) अपने पिता के कामों में हाथ बंटाने के लिए।’ हिंदी समेत कई विषयों में पाठ्येतर प्रश्न पूछे गए। बारहवीं के अकॉन्ट्स विषय में तो ठीक परीक्षा वाले दिन प्रश्न पत्र का पैटर्न बदल दिया गया। सीबीएसई को बताना चाहिए कि गणित और भौतिकी जैसे विषयों में ०.८ या १ अंक के प्रश्नों के लिए एक–एक पृष्ठों में हल किए जा सकने वाले जटिल प्रश्नों को पूछना कितना व्यावहारिक और न्यायसंगत थाॽ
ऐसे प्रश्नों के लिए सही चरणों (स्टेप्स) पर कोई अंक न देना भी सीखने की चरणबद्ध प्रक्रिया के एकदम विपरीत है। नई पद्धति की परीक्षा में भाषा एवं सामाजिक–विज्ञान के प्रश्नों में मौलिक चिंतन‚ रचनात्मक दृष्टि‚ आलोचनात्मक विश्लेषण या अभिव्यक्ति–कौशल के आकलन–अवलोकन का कोई स्थान–अवसर ही नहीं रखा गया। हिंदी–अंग्रेजी में बहुविकल्पी प्रश्नों के अंतर्गत कवि की मनःस्थिति‚ शब्दों के प्रतीकार्थ‚ कविता के संदेश जैसे तमाम प्रश्न पूछे गए‚ जिनमें स्वतंत्र एवं भिन्न विवेचना–व्याख्या की गुंजाइश तो सदैव बनी ही रहती है। इस प्रकार की परीक्षा पद्धति से तो रट कर वमन करने की परिपाटी और अंकों की गलाकाट प्रतिस्पद्र्धा को ही बल मिलेगा।
नई परीक्षा पद्धति की तमाम त्रुटियों‚ न्यूनताओं‚ छूटे छिद्रों को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई को टर्म–१ की परीक्षा का अंक–भार (वेटेज) कम करना चाहिए‚ टर्म–२ की परीक्षा के आधार पर ही उनका मूल्यांकन करना चाहिए और उसका पाठ्यक्रम‚ प्रश्न पत्र का पैटर्न‚ परीक्षा की समय सारिणी आदि की शीघ्रातिशीघ्र घोषणा करनी चाहिए। बोर्ड परीक्षाथयों के टर्म–१ के बुरे अनुभवों से बच्चों को उबारना व्यवस्था की नैतिक जिम्मेदारी है। याद रहे‚ चाहे बोर्ड की परीक्षा हो या जिंदगी की‚ हारे हुए मन और टूटे हुए मनोबल से कदापि उत्तीर्ण नहीं की जा सकती।