भारत अगस्त महीने में गैर स्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाल रहा है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता हर महीने वर्ण क्रम के आधार पर स्थायी और गैर स्थायी सदस्य एक महीने के लिए संभालते हैं। भारत के लिए यह अध्यक्षता इस रूप में महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ९ अगस्त को सुरक्षा परिषद की उच्चस्तरीय चर्चा की अध्यक्षता करेंगे। यह पहला अवसर होगा जब देश का कोई प्रधानमंत्री इस विश्व संस्था की अध्यक्षता करेगा। भारत विशेष तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के लिए व्यक्तिगत रूप से यह बड़़ी उपलब्धि होगी। विगत महीनों में पश्चिमी देशों की मीडि़या और बौद्धिक वर्ग ने भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान चलाया है। प्रधानंमत्री मोदी के विरुद्ध किसी–न–किसी मुद्दे को लेकर निशाना साधा गया है। ऐसी धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े़ लोकतंत्र के विशेषण का अधिकारी नहीं है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निर्वाचित शासनाध्यक्ष न होकर वास्तव में अधिनायकवादी हैं। ऐसे में मोदी का सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभालते हुए विश्व बिरादरी को संबोधन गलत धारणाओं को दूर करने में सहायक बनेगा।
प्रधानमंत्री मोदी समुद्री सुरक्षा और उसे सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर विचार व्यक्त करेंगे। चर्चा के विषय के रूप में समुद्री सुरक्षा को चुना जाना मौजूदा अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के अनुरूप है। दक्षिणी चीन सागर और इंड़ो पैसिफिक क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा और मोटर वाहन दुनिया के सामने प्रमुख एजेंड़ा बना हुआ है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में उभर रहा चतुर्गुट (क्वाड़) भी इससे जुड़़ा है। मोदी इस विषय पर विचार करते समय सीधे या परोक्ष रूप से हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका और अन्य देशों के साथ सहयोग का जिक्र करेंगे। यह क्वाड़ के सदस्य देशों की ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया सहयोग संगठन आसियान के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने का भी अवसर होगा। मोदी सुरक्षा परिषद के मंच से चीन की समुद्र और भूमि पर जारी विस्तारवादी गतिविधियों की ओर संकेत कर सकते हैं।
भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान तीन बिंदुओं समुद्री सुरक्षा‚ शांति अभियान और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को केंद्र में रखा है। अध्यक्ष के रूप में भारत ने पिछले शुक्रवार को अफगानिस्तान की घटनाक्रम पर चर्चा का आयोजन किया। सभी सदस्य देशों ने अफगानिस्तान के तेजी से बिगड़़ रहे हालात पर चिंता व्यक्त की। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. त्रिमूर्ति ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आगाह किया कि काबुल पर तालिबान का कब्जा होना अफगानिस्तान और आसपास के देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है। तालिबान का दावा है कि दो तिहाई अफगानिस्तान उनके कब्जे में है। तालिबानी कब्जे वाले क्षेत्रों से मिल रही खबरों के अनुसार यह आतंकवादी संगठन अपनी पुरानी मध्ययुगीन विचारधारा और बर्बर कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है। बीस साल बाद प्राचीन सभ्यता वाला एक उदारवादी देश माने जाने वाला अफगानिस्तान फिर बर्बर युग में प्रवेश कर सकता है। सबसे दुखद बात यह है कि विभिन्न देशों को अधिक चिंता इस बात को लेकर है कि तालिबान के कब्जे के बाद उनके लिए कोई सुरक्षा खतरा पैदा न हो। रूस ने उजबेकिस्तान और ताजिकिस्तान के सुरक्षा बलों के साथ आतंकवाद विरोधी अभ्यास शुरू किया है। चीन भी ऐसे ही कदम उठा रहा है। हालांकि चीन को अपने पुराने दोस्त पाकिस्तान पर भरोसा है कि वह तालिबान आतंकवादियों और उइगर मुस्लिम पृथकतावादियों को शिजियांग प्रांत का रुख नहीं करने देगा।
सबसे विषम स्थिति भारत के लिए पैदा होने वाली है। इस समय लश्कर–ए–तैयबा और जैश–ए–मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन तथा पाकिस्तान के जिहादी तालिबान के साथ कंधे–से–कंधा मिलाकर लड़़ रहे हैं। तालिबान के काबुल पर काबिज होने के बाद वे जम्मू–कश्मीर को अगले जिहाद का केंद्र बनाएंगे। जाहिर है कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई इन आतंकवादियों को दिशा–निर्देश देगी। भारत में पहले से ही घरेलू राजनीति में विभाजन पैदा करने की कोशिश की जा रही है। घरेलू राजनीति में विभाजन और संघर्ष की समाप्ति के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।