सैनिकों का पूर्वी लद्दाख के इलाके में अपने पूर्व निर्धारित एवं मान्य स्थानों की ओर लौटने की सूचना निस्संदेह‚ तत्काल राहत देने वाली है। हालांकि इसकी पहली सूचना १० फरवरी को चीन की ओर से ही आई। वहां के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव खत्म होने तथा सेना वापसी की औपचारिक जानकारी दी किंतु भारत में इस पर विश्वास करना कठिन था क्योंकि इसके पहले कई बार सहमति होने के बावजूद चीन ने उसका पालन नहीं किया था।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में सेनाओं की झड़प से पूर्व की स्थिति में जाने के समझौता की पुष्टि कर दी। रक्षा मंत्री का कहना सही है कि समझौते से भारत ने कुछ नहीं खोया है। समझौता के बाद दोनों देशों की जो टुकडि़यां एक–दूसरे के एकदम करीब तैनात थीं‚ वहां से पीछे हटते हुए पूर्व स्थिति में जाएंगी। पैंगोंग झील इलाके में चीन अपनी सेना को उत्तरी किनारे में फिंगर ८ के पूरब की दिशा की तरफ रखेगा। मई के पूर्व यही स्थिति थी। भारतीय सेना फिंगर ३ के पास स्थित स्थायी धन सिंह थापा पोस्ट पर आ जाएगी। पैंगांग झील के दक्षिण किनारे से भी दोनों सेनाएं इसी तरह की कार्रवाई करेंगी। इसी तरह चीन ने २०२० में दक्षिण किनारे पर जो भी निर्माण किए हैं‚ उन्हें हटाया जाएगा। दोनों देश पैंगोंग के उत्तरी इलाके पर पट्रोलिंग को फिलहाल रोक देंगे। पट्रोलिंग जैसी सैन्य गतिविधियां तभी शुरू होंगी जब राजनीतिक स्तर समझौता हो जाएगा। सीमा की गहरी समझ तथा चीन एवं भारत की सेनाओं की तैनात स्थिति को समझने वाले जानते हैं कि तत्काल इससे बेहतर समझौता नहीं हो सकता।
ठीक है कि चीन ने समझौते में जो कहा वह करेगा ही यह निश्चयात्मकता के साथ कोई नहीं कह सकता। पैंगोंग त्से के अलावा तीन अन्य स्थानों डेप्सांग‚ गोगरा और हॉट ्प्रिरंग पर तनाव पैदा हुआ था। डेप्सांग में भी सेनाएं आमने–सामने हैं‚ लेकिन वहां पूर्व स्थिति में बदलाव नहीं हुआ। गोगरा और हॉट ्प्रिरंग में यथास्थिति में बदलाव हुआ था। वहां सेनाएं थोड़ी पीछे हटी हैं‚ लेकिन मई‚ २०२० से पहले की स्थिति बहाल होनी शेष है। रक्षा मंत्री ने बयान में कहा कि एलएसी पर कुछ पुराने मसले बचे हुए हैं। आगे की बातचीत इन पर होगी। वस्तुतः सबसे ज्यादा टकराव पैंगोंग त्से झील इलाके में था। इसलिए पहला फोकस वहां चीन की धृष्टतापूर्ण कार्रवाइयों को खत्म कराने पर था। अगर चीनी सैनिक झील के उत्तरी तट पर फिंगर ८ के पूरब की तरफ लौट जाएंगे तथा अप्रैल‚ २०२० के बाद झील के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर बनाए गए संरचना को नष्ट कर देगा तो इसमें बचा क्या हैॽ सच यह है कि चीन ने उत्तरी तट पर जो एडवांस पोजिशन हासिल की थी‚ उसे छोड़ेगा। तो फिर खोया किसनेॽ वास्तव में गलवान की झड़प के बाद चीन ने बड़ी तादाद में इन इलाकों में जवान तैनात कर दिए थे। जवाब में हमने भी जबरदस्त तैनाती की। उसी का परिणाम है कि चीन कसमसा कर पीछे हटने को मजबूर हुआ है। सामरिक रूप से महkवपूर्ण इलाकों में हमारी सेनाएं तैनात हैं‚ और इसी कारण भारत की बढ़त है। ३‚४८८ किमी. लंबी भारत–चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा अधिकतर जगह जमीन से गुजरती है‚ मगर पूर्वी लद्दाख में आने वाली करीब ८२६ किमी. लंबी नियंत्रण रेखा के लगभग बीच में पैंगोंग झील पड़ती है। यह लंबी‚ गहरी और लैंड़लॉक्ड़ (जमीन से घिरी हुई) झील है।
१४ हजार २७० फीट की उचाई पर स्थित १३४ किमी. पैंगोंग झील लद्दाख से लेकर तिब्बत तक फैली है। ६०४ किमी. क्षेत्र में फैली झील कहीं–कहीं ६ किमी. तक चौड़ी भी है। इसमें संपूर्ण रेखांकन संभव नहीं। झील के दो–तिहाई हिस्से पर चीन का नियंत्रण है‚ और शेष भारत के हिस्से में आता है। यहां दोनों देश नावों से पट्रोलिंग करते हैं। यह वीरान दुर्गम पहाडि़यों वाला इलाका हैं‚ जिनके स्कंध निकले हुए हैं। इन्हें ही फिंगर एरिया कहा जाता है। ऐसे ८ फिंगर एरिया हैं‚ जहां भारत–चीन सेना की तैनाती है। भारत की नियंत्रण रेखा फिंगर ८ तक है‚ लेकिन नियंत्रण फिंगर ४ तक ही रहा है। भारत की स्थायी चौकी फिंगर ३ के पास है। चीन की सीमा चौकी फिंगर ८ पर है‚ लेकिन नियंत्रण रेखा के फिंगर २ तक उनका दावा है। फिंगर ४ में एक समय उसने स्थायी संरचना बनाने की कोशिश की थी जिसे भारत की आपत्ति के बाद हटा लिया गया। भारत फिंगर ८ तक पट्रोलिंग करता रहा है। पिछले साल मई में फिंगर ५ एरिया में दोनों सेनाएं आमने–सामने आ गई थीं। चीन ने अप्रैल–मई से ही फिंगर ४ तक अपनी सेना को तैनात कर रखा था। कहने की आवश्यकता नहीं कि चीन के जवाब में भारत ने भी चोटियों पर भारी संख्या में जवान तैनात कर दिए।
Pics of Indian and Chinese troops and tanks disengaging from the banks of Pangong lake area in Eastern Ladakh where they had been deployed opposite each other for almost ten months now.
(Pics Source: Northern Command, Indian Army) pic.twitter.com/Or2pwBo0AA
— ANI (@ANI) February 16, 2021
चीन ने भी कल्पना नहीं की थी कि काफी विचार–विमर्श‚ योजना और सैन्य तैयारी से दिए गए धोखे के खिलाफ भारत इस तरह डटकर मरने–मारने की अंतिम सीमा तक चला जाएगा। भारत ने जिस तरह सेना के सभी अंगों को सक्रिय किया‚ आकाश से लेकर धरती और पानी में जैसी जबरदस्त मोर्चाबंदी की‚ उसकी उम्मीद किसी देश को नहीं थी। आज चीन की पूरी योजना‚ जिसे हम साजिश मानते हैं‚ विफल हो चुकी है। भारत तो जवाब देने के लिए मजबूर था। उनको सबक देने के लिए जवाबी कार्रवाई में अपनी तैनाती की। वे हट जाएं तो हमें वापस पूर्व स्थिति में जाना ही है। वे बात चाहते थे लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि पूर्व स्थिति बहाल होने के ४८ घंटे के अंदर फिर बातचीत शुरू होगी और उन्हें मानना पड़ा। बातचीत में भी भारत ने स्पष्ट किया कि समस्याओं का समाधान तीन आधारों पर हो सकता है। एक‚ दोनों देश नियंत्रण रेखा को मानें और उसका आदर करें यानी गलवान का अपराध और विश्वासघात दोबारा न हो। दो‚ कोई भी देश वर्तमान स्थिति बदलने की एकतरफा कोशिश न करे तथा तीन‚ दोनों देश सभी समझौतों को पूरी तरह मानें और पालन करें।
बहरहाल‚ चीन को भारत के साथ सीमा और सैन्य व्यवहार पर अपनी पूरी रणनीति नये सिरे से बनाने को विवश होना पड़ा है। समझौता उसी की परिणति है। इसमें खोने के लिए केवल चीन के पास ही कुछ था। चीन के साथ सीमा विवाद इतिहास की भूलों की देन है। चीन जैसा दुष्ट राष्ट्र कभी इसे सुलझाना नहीं चाहता क्योंकि वह लाभ की स्थिति में है। १९६२ के युद्ध का एकतरफा अंत हुआ और उसने अपनी स्थिति मजबूत करनी शुरू कर दी। उसका राष्ट्रीय लक्ष्य हर मायने में विश्व का सर्वशक्तिमान देश बनना है। वह जो कुछ कर रहा है‚ उसी लक्ष्य के अनुरूप। भारत के लिए आवश्यक है कि राजनीतिक मतभेदों को परे रखकर उसके लक्ष्य को समझते हुए अपनी रक्षा नीति के साथ कूटनीति की जवाबी तैयारियों और कार्रवाइयों के प्रति एकजुटता दिखाए।