देश में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में केंद्र सरकार जगह दिलाना चाहती है लेकिन तमिलनाडु के बाद महाराष्ट्र में भी इसे लेकर सियासत गरमा गई है. आलम यह है कि महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस इस वक्त बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. बीजेपी सियासी भंवर में फंसती दिख रही है. महायुति गठबंधन में बीजेपी के साथी अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने भी सीएम का साथ छोड़ दिया है. जमीन खिसकता देख सीएम को अपना फैसला वापस लेना पड़ा. एक तरफ शिवसेना यूबीअी चीफ उद्धव ठाकरे मराठी अस्मिता के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं. वहीं, दूसरी तरफ एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने भी मोर्चा खोला हुआ है. दोनों भाई सरकार को घेरने के लिए एक साथ रैली करने जा रहे हैं.
5वीं क्लास तक हिन्दी को दी गई थी जगह
देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने इसी साल अप्रैल में केंद्र सरकारी की पॉलिसी को महाराष्ट्र में लागू कर दिया था. सरकारी आदेश में कहा गया कि स्कूलों में पहली से पांचवीं क्लास तक हिंदी को जगह दी जाएगी. इसे स्कूली शिक्षा में तीसरी भाषा के रूप में स्थान दिया गया है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे इसका विरोध कर रहे हैं. करीब दो दशक से एक दूसरे के विरोधी रहे उद्धव और राज इस मुद्दे पर एक मंच पर आने वाले हैं. दोनों ने इसे मराठी अस्मिता पर हमला बताते हुए 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त विरोध मार्च की घोषणा की है.
एक तरफ उद्धव ठाकरे की शिवसेना इसे भाषाई आपातकाल बता रही है. वहीं, चचेरे भाई राज ठाकरे भी इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन चलाने की बात कह चुके हैं. राज का कहना है कि मराठी भाषी महाराष्ट्र में वो हिन्दू थोपने की इजाजत नहीं देंगे. यह मुद्दा देवेंद्र फडणवीस के लिए जल का जंजाल बनता नजर आ रहा है. BJP बैकफुट पर नजर आ रही है. जमीन घिसका देख महाराष्ट्र सीएम को अपने फैसले को वापस लेना पड़ा. 29 जून को सीएम ने हिन्दी को तीसरी भाषा बनाने वाले अपने सरकारी आदेश को वापस ले लिया.
बीजेपी ने किया समिति का गठन
मराठी अस्मिता के मुद्दे पर लीपापोती करने के लिए सरकार की तरफ से डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में नई समिति का गठन किया गया है, जो इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. BJP ने दावा किया कि नीति उद्धव के कार्यकाल में माशेलकर समिति की सिफारिशों पर आधारित थी. हालांकि शिवसेना यूबीटी इससे इत्तेफाक नहीं रखती. संजय राउत ने बीजेपी पर झूठ बोलने का आरोप लगाया. इस विवाद ने मराठी वोट बैंक को एकजुट कर ठाकरे बंधुओं को सियासी मौका दे दिया है. बीएमसी चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है.
देश में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में केंद्र सरकार जगह दिलाना चाहती है लेकिन तमिलनाडु के बाद महाराष्ट्र में भी इसे लेकर सियासत गरमा गई है. आलम यह है कि महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस इस वक्त बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. बीजेपी सियासी भंवर में फंसती दिख रही है. महायुति गठबंधन में बीजेपी के साथी अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने भी सीएम का साथ छोड़ दिया है. जमीन खिसकता देख सीएम को अपना फैसला वापस लेना पड़ा. एक तरफ शिवसेना यूबीअी चीफ उद्धव ठाकरे मराठी अस्मिता के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं. वहीं, दूसरी तरफ एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने भी मोर्चा खोला हुआ है. दोनों भाई सरकार को घेरने के लिए एक साथ रैली करने जा रहे हैं.
5वीं क्लास तक हिन्दी को दी गई थी जगह
देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने इसी साल अप्रैल में केंद्र सरकारी की पॉलिसी को महाराष्ट्र में लागू कर दिया था. सरकारी आदेश में कहा गया कि स्कूलों में पहली से पांचवीं क्लास तक हिंदी को जगह दी जाएगी. इसे स्कूली शिक्षा में तीसरी भाषा के रूप में स्थान दिया गया है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे इसका विरोध कर रहे हैं. करीब दो दशक से एक दूसरे के विरोधी रहे उद्धव और राज इस मुद्दे पर एक मंच पर आने वाले हैं. दोनों ने इसे मराठी अस्मिता पर हमला बताते हुए 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त विरोध मार्च की घोषणा की है.
एक तरफ उद्धव ठाकरे की शिवसेना इसे भाषाई आपातकाल बता रही है. वहीं, चचेरे भाई राज ठाकरे भी इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन चलाने की बात कह चुके हैं. राज का कहना है कि मराठी भाषी महाराष्ट्र में वो हिन्दू थोपने की इजाजत नहीं देंगे. यह मुद्दा देवेंद्र फडणवीस के लिए जल का जंजाल बनता नजर आ रहा है. BJP बैकफुट पर नजर आ रही है. जमीन घिसका देख महाराष्ट्र सीएम को अपने फैसले को वापस लेना पड़ा. 29 जून को सीएम ने हिन्दी को तीसरी भाषा बनाने वाले अपने सरकारी आदेश को वापस ले लिया.
बीजेपी ने किया समिति का गठन
मराठी अस्मिता के मुद्दे पर लीपापोती करने के लिए सरकार की तरफ से डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में नई समिति का गठन किया गया है, जो इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. BJP ने दावा किया कि नीति उद्धव के कार्यकाल में माशेलकर समिति की सिफारिशों पर आधारित थी. हालांकि शिवसेना यूबीटी इससे इत्तेफाक नहीं रखती. संजय राउत ने बीजेपी पर झूठ बोलने का आरोप लगाया. इस विवाद ने मराठी वोट बैंक को एकजुट कर ठाकरे बंधुओं को सियासी मौका दे दिया है. बीएमसी चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है.