क्या राजनीति में ‘शहंशाह’ बनने के चक्कर में चिराग पासवान ‘फकीर’ बनने के रास्ते पर चल दिए हैं? शाहाबाद क्षेत्र बीते कुछ दिनों से बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण हो गया है. एलजेपी (रामविलास) के सुप्रीमो और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने जब से इस क्षेत्र में दिलचस्पी लेना शुरू किया है, उसके बाद से ही यह क्षेत्र अचानक ही सुर्खियों में आ गया है. शाहबाद क्षेत्र में जातीय समीकरण और स्थानीय नेतृत्व की अहम भूमिका रही है. कभी आरजेडी का गढ़ रहे इस क्षेत्र में बीते लोकसभा चुनाव में एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा की हार ने गठबंधन को बड़ा झटका दिया था. कुशवाहा वोटों के विभाजन के कारण भाजपा को इस क्षेत्र में कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, जिससे शाहाबाद क्षेत्र में भाजपा का सफाया हो गया था. लेकिन चिराग पासवान अब इस एरिया के नए शहंशाह बनने का सपना देख रहे हैं. लेकिन हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा उन्हें ‘लंघी’ यानी झटका दे दें तो हैरानी नहीं होगी.
शाहाबाद में दलित (पासवान, मुसहर), OBC (कुशवाहा, यादव), और EBC मतदाता निर्णायक हैं. चिराग का पासवान वोट, कुशवाहा का OBC आधार, और मांझी का मुसहर समुदाय NDA के लिए फायदेमंद हो सकता है. लेकिन RJD-CPI(ML) का यादव-मुस्लिम-दलित गठजोड़ अभी भी इस क्षेत्र में मजबूत है. चिराग की रैली और उनकी ‘बिहार बुला रहा है’ की घोषणा से यह स्पष्ट है कि वे क्षेत्र में दलित वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, जो CPI(ML) के लिए चुनौती है. वहीं, चिराग (40 सीटों की मांग), कुशवाहा (20 सीटें), और मांझी (30-40 सीटें) की महत्वाकांक्षाएं NDA के सीट बंटवारे को जटिल बना रही हैं.
चिराग, मांझी और सिरफुटोव्वल?
चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा सभी अपने-अपने जातीय और क्षेत्रीय आधार पर मजबूत नेता माने जाते हैं. चिराग पासवान दलित समुदाय में अपनी पहचान रखते हैं, मांझी महादलित समुदाय में प्रभावी हैं और उपेंद्र कुशवाहा कुशवाहा समुदाय में पकड़ मजबूत है. ऐसे में भाजपा के लिए शाहाबाद क्षेत्र में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी सफलता के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. इसलिए, भाजपा को अपने सहयोगी दलों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए सीटों का बंटवारा करना होगा, ताकि गठबंधन की एकजुटता बनी रहे और वोटों का विभाजन न हो.
शाहबाद का सामाजिक-राजनीतिक समकीरण
यह क्षेत्र सामाजिक-राजनीतिक रूप से दलित, OBC, और EBC मतदाताओं का केंद्र है, जहां CPI(ML) ने दलित वोटों के सहारे और RJD ने यादव-मुस्लिम समीकरण के दम पर दबदबा बनाया है. ऐसे में चिराग पासवान ने 8 जून 2025 को आरा के रमना मैदान से अपनी पार्टी LJP (रामविलास) के लिए बिहार विधानसभा चुनाव का आगाज किया. उनकी रैली को भारी जनसमर्थन मिला, जिसे X पोस्ट्स में “जन शैलाब” के रूप में वर्णित किया गया.
उपेंद्र कुशवाहा और मांझी की भूमिका
उपेंद्र कुशवाहा, कुशवाहा समुदाय (OBC) का प्रभावशाली नेता होने के नाते, शाहाबाद में अपनी पार्टी के लिए सीटों की मांग कर रहे हैं. उनकी रणनीति OBC वोटों को NDA के पक्ष में लामबंद करना है. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी काराकाट सीट से हार ने उनकी स्थिति को कमजोर किया है. वहीं, जीतन राम मांझी का प्रभाव दलित (मुसहर) समुदाय तक सीमित है. उनकी बहू दीपा मांझी ने 2024 के उपचुनाव में इमामगंज सीट जीती, जिससे HAM का आत्मविश्वास बढ़ा है. लेकिन मांझी की 30-40 सीटों की मांग, जो NDA के भीतर तनाव का कारण बन सकती है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को कुल 40 सीटें देने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें चिराग पासवान की LJP(RV) को 25-28 सीटें, जीतन राम मांझी की HAM(S) को 6-7 सीटें, और उपेंद्र कुशवाहा की RLM को 4-5 सीटें मिल सकती हैं.