अमेरिका भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए कई कृषि उत्पादों पर भी ध्यान दे रहा है. इनमें सबसे अहम हैं सोयाबीन, मक्का और कपास. ये तीनों फसलें अमेरिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह इनका दुनिया भर में बड़ा निर्यातक है.
साल 2022 में इन तीनों फसलों का कुल निर्यात मूल्य लगभग 62 अरब डॉलर तक पहुंच गया था, जो दिखाता है कि ये अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए कितने बड़े हैं. अमेरिका चाहता है कि भारत इन उत्पादों को खरीदे ताकि उसका व्यापार और मुनाफा बढ़े. भारत में इन फसलों की मांग बढ़ रही है, और अमेरिका इसे एक सुनहरा मौका मानता है.
दरअसल अमेरिका भारत को एक बहुत बड़ा और तेजी से बढ़ता हुआ बाजार मानता है. भारत की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है और लोगों की आय भी धीरे-धीरे बढ़ रही है. इससे भारत में खाने-पीने की चीजों की मांग बढ़ रही है, खासकर पशु उत्पादों जैसे दूध, अंडे, मछली, और मांस की.
अमेरिका की एक सरकारी रिपोर्ट (USDA) कहती है कि अगले कुछ सालों में भारत में इन चीजों की खपत बहुत बढ़ेगी. जब लोग ज्यादा मांस, दूध या अंडे खाएंगे, तो पशुओं को खिलाने के लिए चारे की जरूरत भी बढ़ेगी. इस चारे में मक्का और सोयाबीन मुख्य रूप से इस्तेमाल होते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक भारत को अपने पशुओं के लिए बहुत सारा चारा चाहिए होगा.भारत में अभी मक्का और सोयाबीन का उत्पादन इतना नहीं है कि यह मांग पूरी हो सके. इसलिए उसे बाहर से यानी अमेरिका जैसे देशों से ये फसलें आयात करनी पड़ सकती हैं. इसके अलावा, कपास की बात करें तो भारत पहले इसे बहुत निर्यात करता था, लेकिन अब उसे खुद कपास खरीदना पड़ रहा है. अमेरिका दुनिया का बड़ा कपास निर्यातक है, और वह भारत को अपना कपास बेचकर फायदा उठाना चाहता है. भारत का बढ़ता बाजार अमेरिका के लिए एक बड़ा मौका है.
हालांकि अमेरिका के इन उत्पादों को भारत में लाने में कई मुश्किलें हैं. पहली मुश्किल है भारत का आयात शुल्क (टैक्स). भारत सरकार सोयाबीन पर 45% और मक्का पर 50% शुल्क लगाती है. इसका मतलब है कि ये चीजें भारत में बहुत महंगी हो जाती हैं, और अमेरिका के लिए इन्हें बेचना मुश्किल हो जाता है. दूसरी बड़ी रुकावट है भारत का जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों पर नियम. GM फसलें ऐसी होती हैं जिनमें वैज्ञानिक तरीके से बदलाव किया जाता है ताकि वे कीटों से बची रहें या ज्यादा पैदावार दें. लेकिन भारत में GM मक्का, सोयाबीन, और सोयाबीन मील (चारा) पर पाबंदी है.
अमेरिका में ज्यादातर मक्का और सोयाबीन GM होते हैं, इसलिए भारत इन्हें खरीद नहीं सकता. ये नियम और शुल्क अमेरिकी उत्पादों को भारत में आने से रोकते हैं. अमेरिकी सरकार चाहती है कि भारत इन शुल्क को कम करे और GM फसलों पर पाबंदी हटाए, ताकि उसका व्यापार बढ़ सके. लेकिन भारत के अपने नियम और किसानों की चिंताएं भी हैं, जो इन बदलावों को मुश्किल बनाती हैं.
भारत में मक्का और सोयाबीन का इस्तेमाल ज्यादातर पशु चारे के लिए होता है. जैसे-जैसे भारत में लोग ज्यादा दूध, अंडे, मछली, और मांस खाने लगेंगे, पशुओं की संख्या और उनके चारे की जरूरत भी बढ़ेगी. मक्का और सोयाबीन मील पशुओं के लिए बहुत जरूरी हैं क्योंकि ये उन्हें ताकत और पोषण देते हैं. USDA की रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक भारत में चारे की मांग बहुत बढ़ जाएगी.
अभी भारत में मक्का और सोयाबीन का उत्पादन सीमित है. अगर मांग बढ़ती है, तो भारत को अपने खेतों में ज्यादा पैदावार करनी होगी या बाहर से आयात करना होगा. अमेरिका इसी मौके का फायदा उठाना चाहता है, क्योंकि वह इन फसलों का बड़ा उत्पादक है. भारत की बढ़ती आबादी और बेहतर जीवनशैली इस मांग को और बढ़ा रही है.
बात करें कपास की तो पहले भारत बहुत बड़ा निर्यातक था. लेकिन हाल के सालों में उसकी स्थिति बदल गई है. अब वह कपास खरीदने वाला देश बन गया है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत में GM कपास की मदद से पहले बहुत उत्पादन होने लगा था. लेकिन 2006 के बाद नई GM तकनीक को मंजूरी नहीं मिली. साथ ही, पुरानी GM किस्मों पर कीटों ने हमला करना शुरू कर दिया, जिससे पैदावार कम हो गई.
अब भारत को अपने कपड़ा उद्योग के लिए ज्यादा कपास चाहिए और वह इसे बाहर से खरीद रहा है. अमेरिका के लिए यह एक बड़ा मौका है, क्योंकि वह दुनिया में कपास का बड़ा निर्यातक है. अगर भारत कपास पर 11% आयात शुल्क हटाए, तो अमेरिका और ज्यादा कपास भारत को बेच सकता है.
GM तकनीक ने भारत के कपास उत्पादन को पूरी तरह बदल दिया था. 2000 के दशक में Bt जीन वाली GM कपास आई, जो कीटों से बचाती थी. इससे भारत में कपास की पैदावार बहुत बढ़ गई, और 2011-12 तक वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक बन गया. भारत उस समय कपास का बड़ा निर्यातक भी था. लेकिन 2006 के बाद नई GM तकनीक को मंजूरी नहीं मिली. पुरानी Bt किस्में कीटों के खिलाफ कमजोर पड़ गईं, और उत्पादन घटने लगा. इस वजह से भारत अब फिर से कपास आयात करने लगा.
भारत में हर व्यक्ति साल में औसतन 82.6 किलो पशु उत्पाद (दूध, अंडे, मांस आदि) खाता है (2020 के आंकड़े). यह दुनिया के औसत (143 किलो) से बहुत कम है. लेकिन भारत में पशु उत्पादों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है. 2000 से 2022 तक मुर्गी, अंडे, मांस, दूध, और घी का उत्पादन बहुत बढ़ा है. यह बढ़ोतरी दिखाती है कि आने वाले सालों में लोग और ज्यादा पशु उत्पाद खाएंगे.
अगर भारत अमेरिकी उत्पादों, खासकर कपास, पर आयात शुल्क और पाबंदी हटाए, तो इसका बड़ा फायदा उसके कपड़ा उद्योग को हो सकता है. भारत का कपड़ा और तैयार कपड़े का उद्योग दुनिया में मशहूर है. अगर सस्ता और अच्छा कपास अमेरिका से आए, तो भारतीय कंपनियां ज्यादा कपड़े बना सकती हैं और उन्हें सस्ते दाम पर बेच सकती हैं. इससे भारत का निर्यात बढ़ेगा, जिसमें अमेरिका भी शामिल हो सकता है. साथ ही, ज्यादा कपास उपलब्ध होने से नौकरियां भी बढ़ेंगी. यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है.