बिहार का नाम आते ही सबसे पहले इसकी ऐतिहासिक विरासत का स्मरण होता है. यह वही भूमि है, जहां महात्मा बुद्ध को पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और जहां भगवान महावीर ने पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था. यह वही प्रदेश है, जिसने महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट को जन्म दिया, जिनकी खोजों ने गणित और खगोलशास्त्र को नई दिशा दी. आर्यभट्ट, जिनका जन्म कुसुमपुर (आधुनिक पटना) या अस्मक में माना जाता है, ने दशमलव प्रणाली में शून्य का प्रयोग कर गणित जगत में क्रांतिकारी योगदान दिया. बिहार का इतिहास अपनी समृद्ध विरासत के कारण आज भी विश्वभर में प्रसिद्ध है, और नालंदा विश्वविद्यालय इसकी गौरवशाली विरासत का एक प्रमुख उदाहरण है.
बिहार दिवस क्यों मनाया जाता है?
बिहार को राज्य का दर्जा 22 मार्च 1912 में मिला जब यह बंगाल से अलग होकर एक स्वतंत्र प्रांत बना. जब बिहार राज्य बना, तब इसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी और शिक्षा और औद्योगिक विकास की ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता था और आज भी इसमें बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। हालांकि, सरकार अब अपनी कई योजनाओं से इसे बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है. आज हम पुनः 22 मार्च को बिहार दिवस मनाने जा रहे हैं जो 1912 में बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग होकर एक स्वतंत्र प्रांत के रूप में बिहार की स्थापना की याद दिलाता है. यह वर्ष 2025 न केवल राज्य के गौरवशाली इतिहास को याद करने का अवसर है बल्कि बिहार के विकास, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और भविष्य की दिशा पर चर्चा करने का भी समय है ताकि हर बिहारी इस क्षण को गौरवान्वित कर सके.
बिहार का इतिहास और सांस्कृतिक विरासत
बिहार प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता, शिक्षा और राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से लेकर चाणक्य और सम्राट अशोक तक, इस धरती ने अनेक ऐतिहासिक हस्तियों को जन्म दिया है. बिहार की गौरवशाली विरासत ने सदियों से पूरी दुनिया को ज्ञान, संस्कृति और शासन की दिशा में मार्गदर्शन किया है. आधुनिक बिहार भी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक पहचान को संजोए हुए है, जहां मिथिला पेंटिंग, लोकगीत, छऊ नृत्य और भोजपुरी संस्कृति इसकी सांस्कृतिक धरोहर के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं.
बंगाल और बिहार का बंटवारा कब हुआ था?
बिहार का गठन 22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग होकर हुआ था. प्रारंभिक दौर में यह राज्य पूरी तरह से कृषि पर निर्भर था, जबकि शिक्षा और उद्योग की गति धीमी थी. हालांकि, वर्तमान में बिहार सरकार द्वारा व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए बिहार लघु उद्यमी योजना, जीविका जैसी गरीबी उन्मूलन योजनाओं के साथ-साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं, जिससे राज्य की स्थिति में सुधार हो रहा है.
बिहार स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र रहा है, जहां चंपारण सत्याग्रह (1917) जैसी ऐतिहासिक घटनाओं ने इसे राष्ट्रीय आंदोलन की धुरी बना दिया. हाल के दिनों में प्रशांत किशोर द्वारा शुरू की गई जन सुराज यात्रा भी बिहार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से जारी है.
आजादी के बाद हरित क्रांति, सिंचाई परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास के प्रयास हुए, लेकिन औद्योगीकरण की धीमी गति और बढ़ती बेरोजगारी राज्य के लिए चुनौती बनी रही. इसी कारण बड़े स्तर पर चीनी मिलें और मोकामा की बाटा फैक्ट्री जैसी औद्योगिक इकाइयां बंद हो गईं.
1970 से 2000 का दौर बिहार के लिए राजनीतिक अस्थिरता, जातीय संघर्ष और बड़े पैमाने पर पलायन का गवाह बना. हालांकि, इसी अवधि में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन (1974) और मंडल आयोग (1990) के प्रभाव से सामाजिक न्याय को बल मिला. बावजूद इसके, आर्थिक विकास की गति धीमी रही, जिससे बिहार पिछड़ता चला गया.
2000 में झारखंड के अलग होने के बाद बिहार के सामने नई चुनौतियां उत्पन्न हुईं, जिनमें कानून-व्यवस्था की गिरती स्थिति प्रमुख थी. हालांकि, सरकार में बदलाव के बाद कानून-व्यवस्था में सुधार, सड़क निर्माण और शिक्षा के विस्तार की दिशा में ठोस कदम उठाए गए.
हाल के वर्षों में बिहार स्टार्टअप्स, डिजिटल टेक्नोलॉजी और उद्योगों को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है. हालांकि, बेरोजगारी, बाढ़ और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता अब भी बनी हुई है. बिहार दिवस 2025 हमारे लिए यह संकल्प लेने का अवसर है कि हम अपने गौरवशाली इतिहास से सीखते हुए इसे शिक्षा, उद्योग और नवाचार के केंद्र के रूप में विकसित करें और बिहार को हर क्षेत्र में आगे ले जाएं.
बिहार दिवस 2025 का थीम क्या है?
इस वर्ष बिहार दिवस की थीम ‘उन्नत बिहार, विकसित बिहार’ तय की गई है. इस थीम के तहत बिहार के विभिन्न शहरों जैसे पटना, गया, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. सरकारी स्तर पर भी प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने की पहल देखने को मिलेगी, ताकि यहां के लोग अपने बिहार की सांस्कृतिक विरासत को जान सकें.
बिहार की नई पीढ़ी शिक्षा, तकनीक और उद्यमिता में आगे बढ़ रही है. सरकार बिहार को स्टार्टअप हब के रूप में विकसित करने के लिए भी अनेक योजनाओं पर काम कर रही है, ताकि युवाओं को रोजगार और अवसर मिल सकें. इस वर्ष बिहार दिवस 2025 सिर्फ उत्सव का दिन नहीं है, बल्कि अपने इतिहास से सीखने और भविष्य के लिए नई दिशा तय करने का अवसर भी है.
बिहार दिवस के मौके पर कई कार्यक्रम
पटना के गांधी मैदान में 22 मार्च को बिहार दिवस के मौके पर कई कार्यक्रम होने हैं. इसे लेकर पटना की ट्रैफिक पुलिस ने भी पूरी तैयारी की है. गांधी मैदान आने वाले वाहनों के लिए पार्किंग की भी विशेष व्यवस्था की गयी है. गांधी मैान के पास 58 प्वाइंट पर ट्रैफिक पुलिस पदाधिकारी तैनात रहेंगे. गांधी मैदान में 22 से 24 मार्च तक अलग-अलग विभागों के द्वारा भी कार्यक्रम किए जाएंगे.
किनकी गाड़ी कहां लगेगी?
गांधी मैदान में अलग-अलग गेटों से पार्किंग की व्यवस्था की गयी है. एक नंबर गेट के अंदर वीवीआईपी के वाहनों की एंट्री होगी. गेट नंबर चार के अंदर वीआइपी पार्किंग, गेट नंबर 6 और 10 के बीच सामान्य पार्किंग और मीडियाकर्मियों के लिए गेट नंबर 12 के अंदर पार्किंग की व्यवस्था की गयी है. वहीं गांधी मैदान के कुल 58 ट्रैफिक प्वाइंट बनाये गए हैं. इन जगहों पर 125 ट्रैफिक पुलिस पदाधिकारी और 300 ट्रैफिक सिपाहियों को तैनात किया गया है.
आम लोगों के लिए भी खुला रहेगा मैदान
बिहार दिवस (22-24 मार्च) समारोह के मद्देनजर सुरक्षा, विधि-व्यवस्था एवं अन्य तैयारी के लिए पटना के गांधी मैदान में मॉर्निंग और इवनिंग वॉक की रोक लगी है. अभी अन्य प्रयोजनों के लिए भी मनाही है. 24 मार्च तक यह प्रतिबंधित लागू रहेगा. वहीं 22 से 24 मार्च तक बिहार दिवस के कार्यक्रमों में आमजनों को प्रवेश की मनाही नहीं रहेगी. आम लोगों के लिए भी इन दिनों गांधी मैदान खुला रहेगा.
22 मार्च को अभिजीत भट्टाचार्य की होगी प्रस्तुति
उद्घाटन समारोह के बाद लोकप्रिय गायक अभिजीत भट्टाचार्य गांधी मैदान में संगीत का जादू बिखेरेंगे. उन्होंने एक वीडियो संदेश के जरिए बिहार से अपने गहरे जुड़ाव को जाहिर करते हुए कहा, “अरे वाह, बिहार तो मेरा ननिहाल है! आई लव यू बिहार…” अभिजीत अपने लोकप्रिय गीतों से पटना की शाम को सुरमयी बनाएंगे.
23 मार्च को शास्त्रीय, गजल, सूफी और नृत्य का संगम
23 मार्च को गांधी मैदान में प्रतिभा सिंह बघेल और ऋतिक राज अपनी प्रस्तुतियां देंगे. प्रतिभा सिंह अपनी गजल और शास्त्रीय संगीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगी. वहीं श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आलोक राज और अशोक कुमार प्रसाद सुगम संगीत की प्रस्तुति देंगे. नीलम चौधरी कथक नृत्य करेंगी और ज्योति नूरां सूफी गायन होगा. रवींद्र भवन में मुशायरा और कवि सम्मेलन आयोजित होंगे. जिसमें देशभर के नामचीन कवि और शायर शिरकत करेंगे.
24 मार्च को सलमान अली के सुरों से होगा समापन
बिहार दिवस के अंतिम दिन यानी 24 मार्च को समापन समारोह भी यादगार रहेगा. ‘इंडियन आइडल’ फेम सलमान अली अपनी बेहतरीन गायकी से दर्शकों को झूमने पर मजबूर करेंगे. वहीं रवींद्र भवन में हास्य कवि सम्मेलन का भी आयोजन होगा. जिसमें पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा और उनकी टीम अपनी शानदार कविताओं से दर्शकों को हंसने पर मजबूर कर देगी. बिहार दिवस 2025 के ये तीन दिन संगीत, नृत्य, हास्य और कविताओं का अनूठा संगम होंगे. पटना शहर इस भव्य आयोजन का गवाह बनेगा.
गांधी मैदान में हो रहा 50 फूड स्टॉल का निर्माण
बिहार दिवस के मौके पर पटना के गांधी मैदान में बिहारी व्यंजनों का मेला लग रहा है. यह व्यंजन मेला बिहार दिवस 2025 के अवसर पर गांधी मैदान पटना में पर्यटन विभाग द्वारा लगाया जाएगा. यह व्यंजन मेला बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम लि. द्वारा संचालित किया जाएगा, जहां आगंतुक बिहार के पारंपरिक स्वाद का आनंद ले सकेंगे. इसमें लोगों को लिट्टी चोखा से लेकर खुरमा का स्वाद चखने का मौका मिलेगा.
गांधी मैदान में व्यंजन मेला लगाने हेतु 220 फीट लम्बाई x 450 फीट चौड़ाई के कुल क्षेत्रफल में लगभग 50 फूड स्टॉल का निर्माण कराया जा रहा है. इस व्यंजन मेले में पुआ-खीर, बिहारी लिट्टी-चोखा से लेकर खुरमा-बेलग्रामी के साथ अन्य व्यंजनों के स्टॉल लगाए जाएंगे. जहां बिहारी व्यंजन लगाने हेतु इच्छुक उद्यमियों को मात्र 1000/- रु में एक स्टॉल उपलब्ध कराया जाएगा. व्यंजन मेला में फूड स्टॉल का साईज 15′ x 10′ एवं किचेन एरिया की साईज 15′ x 8′ निर्धारित की गयी है. इस मेले में खाद्य सुरक्षा के सभी मानकों का पालन करते हुए पाकशाला व स्टॉल का संचालन और पूरे मेला परिसर में बेहतर कचरा प्रबंधन की भी व्यवस्था रहेगी.
चखने को मिलेंगे बिहार के व्यंजन
इस व्यंजन मेला में चूड़ा-घुघनी, सिलाव व सुपौल का खाजा, बाढ़ व धनरूआ की लाई, पुआ, खगड़िया का पेड़ा, सीतामढ़ी का खीर मोहन, मसालेदार सत्तू जूस, जलेबी, आरा की बेलग्रामी, खीर, पीठा, मूँग कचौरी, खोवे का बारा, बालूशाही, मक्के की रोटी-सरसों का साग, चाट, चॉमिन, लीची जूस, आंवला कैन्डी-पाचक, डोसा-इडली, कुल्हड़ चाय, गोलगप्पा, केसरिया कुल्फी, मुरब्बा, फलूदा ठंडई, नॉन भेज में आहूना मटन, बिहारी कवाब, चिकेन ताश इत्यादि व्यंजन स्टॉल आकर्षण के केंद्र होंगे.