नरेंद्र मोदी संविधान को बदलने और आरक्षण को समाप्त करने के लिए 400 सीट की मांग कर रहे हैं। सरकार बनाने के लिए तो 273 सीट ही काफी है। ये चुनाव संविधान और देश बचाने का चुनाव है –राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव समेत I.N.D.I.A. गठबंधन के सभी बड़े नेता पीएम नरेंद्र मोदी को इस बयान के माध्यम से घेरने की कोशिश कर रहे थे। पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष का ये दांव कुछ हद तक कामयाब होता भी दिख रहा था।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के सीमांचल से हिंदू ध्रुवीकरण का नया दांव खेलकर विपक्ष को उन्हीं के अंदाज में जवाब दिया है। शुक्रवार को बिहार के अररिया में चुनावी सभा करने आए पीएम मोदी ने कहा कि I.N.D.I.A गठबंधन के नेता खासकर राहुल गांधी बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के संविधान के खिलाफ काम करना चाहते हैं।
पीएम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस धर्म के आधार पर देश में आरक्षण की व्यवस्था करना चाहती है, जिसका संविधान में कहीं कोई प्रावधान नहीं है। पीएम ने कहा कि कांग्रेस इसकी शुरुआत कर्नाटक से कर चुकी है। अब वे कर्नाटक मॉडल को पूरे देश में लागू करना चाहती है। जिसे वे लागू नहीं होने देंगे।

अब पहले समझिए क्या है कांग्रेस का कर्नाटक मॉडल
पीएम मोदी शुक्रवार के अररिया के फारबिसगंज में आयोजित अपनी चुनावी सभा में लगभग 10 मिनट तक कांग्रेस के कर्नाटक मॉडल को समझाते रहे। पीएम ने कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस ने मुसलमानों को रातों-रात ओबीसी का दर्जा दे दिया।
चाहे वे किस भी तरह के मुस्लिम हो, सभी को ओबीसी बना दिया गया। इसके बाद ओबीसी के हिस्से का 27 प्रतिशत आरक्षण कांग्रेस की तरफ से मुस्लिमों को भी बांट दिया गया। पीएम ने कहा कि कांग्रेस और राजद मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं।
बिहार की 31 सीटों पर पड़ सकता है असर
पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि कांग्रेस के जिस कर्नाटक मॉडल को उन्होंने अररिया के मंच से समझाया है, उसे भाजपा कार्यकर्ता घर-घर में पहुंचाए। साफ है पीएम राज्य की सभी सीटों पर ध्रुवीकरण का कार्ड खेलना चाहते हैं। दो फेज में बिहार में फिलहाल 9 सीटों पर वोटिंग हुई है, 31 सीटों पर फिलहाल बाकी है। ऐसे में पीएम को ध्रुवीकरण के इस कार्ड का लाभ उन्हें बिहार की 31 लोकसभा सीटों पर मिल सकता है।
विपक्ष के नैरेटिव को उन्हीं के स्टाइल में पीएम ने बदला है
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि पहले विपक्ष ने जिस तरीके से विकास के मुद्दे को डायवर्ट कर संविधान और आरक्षण के खतरे की बात को दोहरा कर मुस्लिम वोटों को गोलबंद करने की कोशिश की। अब पीएम नरेंद्र मोदी ने उसका जवाब उन्हीं के स्टाइल में दिया है। विपक्ष के तर्क को उन्हीं के अंदाज में काटना शुरू किया है और पीएम को इसमें महारत हासिल है। चुनाव में भावनात्मक मुद्दा लोगों को ज्यादा अपील करती है। ये पीएम की मजबूरी थी कि इस मुद्दे को प्रभावशाली तरीके से काट करें।

पीएम के हिंदू ध्रुवीकरण का 30 सीटों पर लाभ मिल सकता है
प्रवीण बागी कहते हैं कि पीएम का ये स्टेमेंट साफ तौर पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश है। सीमांचल एक मुस्लिम बहुल इलाका है। अगर केवल सीमांचल की बात करें तो यहां के 4 जिलों में तकरीबन 47 फीसदी मुस्लिम आबादी है। किशनगंज में तो हिंदू अल्पसंख्यक हैं और 68 फीसदी मुस्लिम आबादी है।
इसके बाद अररिया जहां पीएम ने सभा की, वहां लगभग 43 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इसके अलावा कटिहार में 44.5 और पूर्णिया में 39 फीसदी मुस्लिम आबादी है। यही कारण है कि पीएम इसी इलाके से ध्रुवीकरण का कार्ड खेलते हैं।
पीएम हर बार फारबिसगंज से ध्रुवीकरण का कार्ड चलते हैं
अररिया के वरिष्ठ पत्रकार फुलेंद्र मल्लिक कहते हैं कि सीमांचल के चार लोकसभा क्षेत्र में एकमात्र अररिया ही ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां बीजेपी के कैंडिडेट मैदान में हैं। ये पूरा इलाका मुस्लिम बहुल इलाका है। ऐसे में हिंदू ध्रुवीकरण के लिहाज से ये सबसे मुफीद इलाका हो जाता है।
पीएम अक्सर यहां से ध्रुवीकरण का कार्ड खेल कर हिंदू वोटरों को गोलबंद करने की कोशिश करते हैं। इस बार उन्होंने हिंदू-मुस्लिम करके हिंदू वोटों को गोलबंद करने की कोशिश की। पिछली सभा में उन्होंने यहां यदुवंशी कार्ड चलकर यादव वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की थी। पीएम मोदी ऐसा करने में सफल भी हो जाते हैं। अभी तक जब-जब पीएम मोदी ने फारबिसगंज में सभा की है, उनके कैंडिडेट जीतने में सफल रहे हैं।
10 साल में फारबिसगंज में 5 सभा कर चुके हैं पीएम
अररिया के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र मणि सिंह कहते हैं कि पिछले 10 साल में पीएम फारविसगंज में 5 सभा कर चुके हैं। इससे पहले पीएम दो विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए यहां आ चुके हैं। पीएम की अभी तक जितनी दफा यहां सभा हुई है उनके प्रत्याशी जीतते रहे हैं।
अररिया के साथ सुपौल को भी साध गए पीएम
मृगेंद्र मणि सिंह कहते हैं कि फारबिसगंज में पीएम की सभा का असर सीमांचल की सभी सीटों के साथ कोसी के क्षेत्रों पर भी पड़ता है। हालांकि जब पीएम की सभा हो रही थी तो सीमांचल की तीन सीटों कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया में वोटिंग चल रही थी। वहीं मंच पर अररिया के प्रत्याशी प्रदीप सिंह और सुपौल के जदयू प्रत्याशी दिलेश्वर कमैत भी थे।
दोनों सीटों पर 7 मई को चौथे चरण में वोटिंग होनी है। ऐसे में पीएम ने एक साथ अररिया और सुपौल को साधने की कोशिश की है। दोनों ही सांसदों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी देखने को मिल रहा है लेकिन पीएम की इस सभा के बाद बहुत तक नाराजगी दूर करने में मदद मिलेगी। प्रदीप सिंह की छवि अररिया में साफ और सहज नेता की।
सीमांचल की एकमात्र सीट बचा पाना बीजेपी की चुनौती
सीमांचल की चार सीटों में तीन पर गठबंधन के तहत जदयू के उम्मीदवार हैं। एकमात्र सीट अररिया लोकसभा में फिलहाल बीजेपी के प्रदीप सिंह सांसद हैं। पार्टी की तरफ से उन्हें ही एक बार फिर से रिपीट किया गया है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि अररिया का एक ट्रेंड रहा है, जो 2009 के बाद ज्यादा प्रभावी हो रहा है। यहां हर चुनाव में सांसद बदल जा रहे हैं। 2009 में जहां बीजेपी के प्रदीप सिंह सांसद थे तो 2014 में राजद के तस्लीमुद्दीन जीत गए । हालांकि 2017 में उनके निधन के बाद उपचुनाव में उनके बड़े बेटे सरफराज आलम जीते तो 2019 में एक बार फिर से बीजेपी के प्रदीप सिंह जीतने में सफल रहे।
इस बार राजद ने तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे और जोकिहाट से विधायक शहनबाज आलम को अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में अब बीजेपी के सामने इस परंपरा को तोड़कर इस सीट को बचाने की चुनौती है कि। अररिया सीमांचल की एकमात्र सीट हां जहां से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार उतारा है। कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया में जदयू के उम्मीदवार हैं।