बिहार के सीएम नीतीश कुमार पहली बार गुस्से में ऊटपटांग बोल कर नहीं फंसे हैं, बल्कि तीन साल पहले से यह स्थिति बनी हुई है। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पहली बार लोजपा नेता चिराग पासवान ने उन्हें तब बिदकाया था, जब जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। लोजपा के साथ ही भाजपा के प्रति भी उनके मन में संदेह का बीजोरापण उसी वक्त हो गया था, जब चिराग ने भाजपा के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं दिए। इसे भाजपा की नीतीश को तबाह करने की रणनीति के तौर पर देखा गया। हालांकि भाजपा ने नीतीश की नाराजगी देखते हुए चिराग पासवान की लोजपा को एनडीए से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। चिराग के इस खेल से असेंबली चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू की भद्द पिट गई। जेडीयू के सिर्फ 43 विधायक ही चुनाव जीत कर आए।
पहले इतने गुस्से में नहीं दिखते थे नीतीश
नीतीश कुमार की यह खूबी मानी जाती रही है कि किसी के गिला-शिकवा पर वे कभी भन्नाते नहीं थे। अपने खिलाफ आरोपों पर भी वे रिएक्ट नहीं करते थे। चुपचाप अपने काम में मगन रहते। अब पहले जैसे नीतीश नहीं रहे। पिछले तीन साल में उनके स्वभाव में बड़ा बदलाव आया है। कम से कम दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्हें लेकर नीतीश के खिलाफ लोगों में भारी गुस्सा था, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से नीतीश ने चुप्पी साध ली। उनकी जुबान तब भी नहीं खुली, जब मामला निर्णायक दौर में पहुंच गया। इसलिए कि तब नीतीश काम में विश्वास करते थे। बयानबाजी से परहेज करते थे।
गया में रोड रेज की घटना पर चुप रहे सीएम
गया में सात साल पहले जेडीयू की पूर्व पार्षद मनोरमा देवी के बेटे राकी ने रोड रेज में एक युवक की हत्या कर दी थी। नीतीश कुमार पर तब भी सवाल उठे थे। 10 साल पहले सारण जिले में जहरीला मिड डे मील कांड हुआ था। सारण के मशरक ब्लाक के धर्मासती गंडामन नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में 16 जुलाई 2013 को मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की मौत हो गई थी। स्कूल के 50 से अधिक बच्चे बीमार हो गए थे। राज्य सरकार ने घटना की उच्चस्तरीय जांच कराई। मृत बच्चों के परिवारों को दो-दो लाख मुआवजा दिया गया। सारण के मुख्यालय छपरा में भारी बवाल हुआ। तोड़फोड़, आगजनी भी हुई थी। तब भी नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली थी। उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन जांच को उन्होंने मुकाम तक पहुंचाया।
बदल गया है अब नीतीश कुमार का स्वभाव
नीतीश कुमार अब पहले जैसे नहीं रहे। वे बात-बात पर झुंझला जाते हैं। गुस्से में लाल-पीला होने लगते हैं। उनकी झुंझलाहट तो कई बार गुस्से की हद तक पहुंच जाती है। बीते हफ्ते बिहार असेंबली में उनका जो रौद्र रूप जीतन राम मांझी को लेकर दिखा, वैसे कई बार पहले भी हो चुका है। ‘तुम-ताम’ से लेकर ‘देख लेंगे’, ‘ठोक देंगे’ या ‘ठंडा कर देंगे’ जैसे शब्द अब उनके श्रीमुख से निकलना सामान्य बात है। महिलाओं को लेकर की गई उनकी टिप्पणी पर बवाल अभी थमा भी नहीं था कि नीतीश ने मांझी के लिए तुम-ताम जैसी भाषा का प्रयोग किया। विपक्ष के साथ महागठबंधन में शामिल कई दलों ने भी इसकी निंदा की।
सीएम नीतीश की बात-बात में गुस्से की वजह
आमतौर पर गुस्से की वजह आदमी की व्यक्तिगत या सामाजिक उपेक्षा-अवमानना है। उपेक्षित, तिरस्कृत और हेय समझे जाने वाले लोगों में गुस्सा स्वाभाविक है। गुस्से की वजह किसी व्यक्ति विशेष या समाज से अपनापन की अपेक्षा होती है। अपेक्षाएं जब पूरी नहीं होती हैं, तब गुस्से का प्रस्फुटन होता है। गुस्से की सबसे खराब बात यह होती है कि इसमें आदमी की बुद्धि काम नहीं करती। बुद्धि काम नहीं करे तो विवेक नहीं रह जाता। नीतीश कुमार कई ऐसे हालात से जूझ रहे हैं, जिसमें उनका झुंझलाना या गुस्सा होना स्वाभाविक है।
तीन साल से आता रहा है नीतीश को गुस्सा
पिछले बिहार विधानसभा के चुनाव में तत्कालीन लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे। बागी तेवर अपना कर लोजपा ने 243 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव में अपने 137 उम्मीदवार उतारे थे। ज्यादातर उम्मीदवार वहीं थे, जहां जेडीयू को एनडीए ने सीटें दी थीं। भाजपा के खिलाफ चिराग ने उम्मीदवार नहीं उतारे। लोजपा भले एक सीट मटिहानी की 333 मतों के अंतर से जीती, लेकिन नीतीश कुमार की जेडीयू का खेल बिगाड़ दिया। पांच साल में ही जेडीयू विधायकों की संख्या वर्ष 2015 के की 71 सीटों से घट कर 43 पर सिमट गई। जेडीयू के नेता आरोप लगाते रहे कि चिराग की वजह से तकरीबन तीन दर्जन सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
नीतीश ने जब विजय सिन्हा को दी थी चुनौती
वैसे तो नीतीश का गुस्सा पिछले असेंबली इलेक्शन के दौरान ही दिखने लगा था, लेकिन बाद में यह और बढ़ गया। चुनावी सभाओं में पहली बार उनका गुस्सा दिखा था, जब सभा में आए कुछ लोगों ने ‘लालू जिंदाबाद‘का नारा लगाया। तब नीतीश ने तल्ख तेवर में कहा था- क्या बोल रहे हो..बोल क्या रहे हो..काहे को अनापशनाप बोल रहे हो…यहां पर हल्ला मत करो, वोट नहीं देना है तो मत दो। एक बार तो वे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा पर सदन में ही गरज पड़े थे। उन्हें नीतीश ने संविधान के मुताबिक सदन चलाने की नसीहत दी और कहा- क्या आप सदन को ऐसे चलाएंगे, हम ऐसा नहीं होने देंगे। सदन में इस तरह से चर्चा नहीं होती है।
बीजेपी से अनबन ही नीतीश के गुस्से की वजह
नीतीश को तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद भाजपा ने सीएम बनाया था। भाजपा नता उन्हें इसका एहसास भी कराते रहे। भाजपा पार्षद टुन्ना पांडेय ने तो यहां तक कह दिया था नीतीश परिस्थितिवश मुख्यमंत्री बने हैं। उन्हें जेल भेजवा कर छोड़ेंगे। भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और गोपालगंज के सांसद समेत पार्टी के कई नेता शराब से होने वाली मौतों, बढ़ते अपराध और मुस्लिम तुष्टीकरण को लेकर अक्सर नीतीश को केसते रहते थे। यही वजह रही कि नीतीश ने भाजपा से रिश्ता तोड़ने का फैसला किया। वे उस आरजेडी के साथ जा मिले, जिसका विरोध कर वे सीएम की कुर्सी तक पहुंचे थे।
तेजस्वी यादव को दी थी मां-बाप की उलाहना
नीतीश का गुस्सा भले भाजपा के प्रति था, लेकिन इसकी जद में आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव भी एक बार आ गए थे। जब नीतीश एनडीए में थे तो वे विधानसभा में तेजस्वी पर बरस पड़े थे। नीतीश ने तेजस्वी के बाप-माई के कारनामे गिना दिए। बहनों को भी नहीं बख्शा। ऐसे मौके कई बार आए। तब नेता प्रतिपक्ष रहे तेजस्वी को ‘तुम. और ‘बच्चा’ कहने में भी उन्हें संकोच नहीं हुआ। हालांकि आज भी वे तेजस्वी को तुम ही कहते हैं। ऐसा कहते वक्त नीतीश यह भूल जाते हैं कि तेजस्वी अब उनके डेप्युटी सीएम हैं।