विपक्षी गठबंधन ने कई चैनलों के चौदह एंकरों का बॉयकाट करने का फैसला किया है। विपक्ष का कहना है कि वे इनके नफरत के बाजार के ग्राहक नहीं बनना चाहते.जिनका बॉयकाट किया गया है‚ उनमें से कुछ एंकरों ने साफ कहा है कि यह सब इमरजेंसी की याद दिलाता है‚ और कि ये एंकरों को टारगेट करके उनको डराना चाहते हैं। एंकर क्या करें क्या न करें–ये यह भी तय करना चाहते हैं।
यों एकाध चैनल का बॉयकाट तो एक बडा विपक्षी दल अरसे से करता आ रहा है‚ लेकिन बॉयकाट के नये ऐलान में चैनलों के बॉयकाट पर उतना जोर नहीं दिखता जितना कुछ चुनिंदा एंकरों के बॉयकाट पर है। वे समझते हैं कि ये एंकर सत्ता की ओर झुके हुए हैं। लेकिन इस बॉयकाट में भी एक झोल हैः ये कुछ एंकरों का तो बॉयकाट करना चाहते हैं लेकिन एकाध को छोड उनके चैनलों का बॉयकाट नहीं कर रहे। जबकि दुनिया जानती है कि एंकर वही करता है‚ जो चैनल चाहता है। अगर कुछ एंकर सत्ता की ओर झुके दिखते हैं तो इसलिए कि उनके चैनल भी झुके हुए हैं। कल को किसी और की सत्ता आ जाएगी तो वे उस ओर झुक जाएंगे। इसलिए टारगेट करना था तो चैनल का करना था। एंकरों का क्योंॽ
खबर चैनलों की अरसे से जांच–परख करता आ रहा यह टिप्पणीकार अच्छी तरह से जानता है कि किस एंकर का किधर झुकाव है‚ लेकिन मानना कि कोई एंकर किसी एक विचार का या दल का शुद्ध भौंपू है‚ यह एक बडी भूल है। वक्त बदलते ही न केवल चैनल बदल जाते है‚ बल्कि एंकर भी बदल जाते हैं लेकिन धमकी से कोई नहीं बदलता। सभी जानते हैं कि बहसों के मुद्दे पहले कार्यक्रम संपादक तय करते हैं। एंकर तो उनको सिर्फ पेश करते हैं। अच्छा एंकर सभी वक्ता–प्रवक्ताओं को समान समय देता है और जब कोई इधर–उधर करता है‚ तो टोकता भी है कि कृपया टॉपिक पर रहें लेकिन कई वक्ता–प्रवक्ता टॉपिक पर नहीं रहते। बहुत से प्रवक्ता तो दूसरे प्रवक्ता को बीच में रोकते–टोकते नजर आते हैं। कुछ तो इतना ज्यादा बोलते हैं कि बहस का टाइम ही खत्म हो जाता है। ऐसे में अगर एंकर टोकता है तो कुछ विपक्षी प्रवक्ताओं द्वारा उसे ‘सत्ता का दलाल/चमचा’ कह कर शमिदा किया जाने लगता है। यह उन पर दबाव बनाने जैसा है। पॉपूलर चैनलों के ‘बहस कार्यक्रमों’ के लिए जरूरी है कि उनमें एकदम ताजा और तीखे विवाद योग्य मुद्दों पर सभी वैचारिक कोणों से वाद–विवाद–संवाद कराया जाए ताकि दर्शक अपनी–अपनी राय बना सकें। इसके लिए वे पक्ष और विपक्ष के प्रवक्ताओं के अलावा स्वतंत्र पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों को भी बुलाते हैं। लेकिन आज की तीखी ध्रुवीकृत राजनीति में न तो कोई चैनल तटस्थ है‚ न एंकर और न पत्रकार/विश्लेषक ही। तो भी ज्यादातर चैनलों की बहसों में एक प्रकार का खुलापन और वैचारिक विविधता होती ही है।
रोज की बहसों में कभी पक्ष हावी रहता है‚ तो कभी विपक्ष हावी रहता है। उदाहरण के लिए अगर किसी दिन किसी विपक्षी नेता ने कोई तीखी ‘हेट स्पीच’ दी है‚ तो उसके विरोधी प्रवक्ता हावी होते नजर आएंगे और अगर इसका उल्टा हुआ तो उसके विरोधी प्रवक्ता हावी होते दिखेंगे। जैसे–जैसे यह राजनीतिक ध्रुवीकरण तीखा हुआ है‚ वैसे–वैसे चैनलों की बहसों में एक खास किस्म की कडवाहट और तुर्शी बढती दिखाई देती है। ‘एकजुट’ होने के बाद जब से विपक्ष मान कर चलने लगा है कि वो सत्ता में अब आया कि अब आया तब से वह बहसों में और आकामक होता दिखा है। और जब से विपक्ष के कुछ नेता ‘हिन्दू’ और ‘सनातन’ के प्रति एक से एक जहरीली ‘हेटस्पीच’ देने लगे हैं‚ और इस मामले में विपक्ष से सत्ता पक्ष कुछ ‘कठिन सवाल’ पूछने लगा है‚ तब से विपक्ष कुछ रक्षात्मक–सा हुआ दिखता है। वह दुविधा में हैः अगर हेटस्पीच को कंडम करता है तो एकता को चोट पहंुच सकती है‚ और नहीं करता है तो वह सनातन के विरोध में नजर आता है‚ जिसका असर चुनाव पर पड सकता है। इस बॉयकाट का एक कारण यह भी हो सकता है क्योंकि कई ‘बॉयकाटित एंकर’ ऐसे मुद्दों पर बार– बार बहसें कराते रहे हैं। लेकिन चैनल और एंकर भी क्या करेंॽ जब विपक्ष का कोई न कोई नेता आए दिन हिन्दू/सनातन विरोधी हेटस्पीच देगा तो वो विवाद का विषय तो बनेगी ही। और चूंकि विपक्ष को लगता है कि २०२४ में वही सत्ता में आ रहा है‚ तब उसके ऐसे तेवर और भी दिखेंगे जबकि बॉयकाट करने में उसी का नुकसान है। हमारी नजर में यह बॉयकाट एंकरों को ही नहीं‚ उनके चैनलों को भी एक संकेत है।
चैनल और एंकर भी क्या करेंॽ जब विपक्ष का कोई न कोई नेता आए दिन हिन्दू/सनातन विरोधी हेटस्पीच देगा तो वो विवाद का विषय तो बनेगी ही। चूंकि विपक्ष को लगता है कि २०२४ में वह सत्ता में आ रहा है‚ तब उसके ऐसे तेवर और भी दिखेंगे जबकि बॉयकाट करने में उसी का नुकसान है। हमारी नजर में बॉयकाट एंकरों को ही नहीं‚ उनके चैनलों को भी संकेत है