मध्य प्रदेश एक बार फिर ‘बाघ राज्य’ यानी टाइगर स्टेट के नाम से जाना जाएगा। यहां बाघों की आबादी ५२६ से बढ़कर ७८५ पहुंच गई है‚ जो सभी प्रांतों में सबसे ज्यादा है। देश में अब बाघों की कुल संख्या ३६८२ हो गई है। बीती सदी में जब बाघों की संख्या कम हो गई तब मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में पैरों के निशान के आधार पर बाघ गणना प्रणाली को शुरुआती मान्यता दी गई थी। ऐसा माना जाता है कि हर बाघ के पंजे का निशान अलग होता है और इन निशानों को एकत्र कर बाघों की संख्या का आकलन किया जा सकता है। कान्हा के पूर्व निदेशक एचएस पवार ने इसे एक वैज्ञानिक तकनीक माना था‚ लेकिन यह तकनीक उस समय मुश्किल में आ गई‚ जब ‘साइंस इन एशिया’ के मौजूदा निदेशक के उल्लास कारंत ने बेंगलुरु की वन्य जीव सरंक्षण संस्था के लिए विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में बंधक बनाए गए बाघों के पंजों के निशान लिए और विषेशज्ञों से इनमें अंतर करने के लिए कहा। इसके बाद पंजों के निशान की तकनीक की कमजोरी उजागर हो गई और इसे नकार दिया गया। इसके बाद ‘कैमरा ट्रैपिंग’ का एक नया तरीका पेश आया। इसमें जंगली बाघों की तस्वीरें लेकर उनकी गणना की जाती थी। ऐसा माना गया कि प्रत्येक बाघ के शरीर पर धारियों का प्रारूप उसी तरह अलग–अलग है‚ जैसे इंसान की अंगुलियों के निशान अलग–अलग होते हैं। इस तकनीक द्वारा गिनती सामने आने पर बाघों की संख्या नाटकीय ढंग से घट गई थी‚ जो अब बढ़ रही है। बाघों की संख्या इसलिए बढ़ पाई क्योंकि इनकी बसाहट की बाधाएं दूर करने युद्ध स्तर पर प्रयास किए गए। मध्य प्रदेश में २०१० से २०२२ के बीच बाघ संरक्षण क्षेत्र में आने वाले करब २०० ग्रामों का विस्थापन किया गया। सबसे अधिक ७५ सतपुड़ा बाघ संरक्षण क्षेत्र से हटाए गए। वनों से गांव हटे तो ग्रामों और खेतों की जमीन में घास के मैदान और तालाब विकसित किए गए‚ इससे हिरण शाकाहारी प्राणियों को अनुकूल वातावरण के साथ पर्याप्त आहार की आसान सुविधा भी मिल गई। नतीजतन शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या बढ़ती चली गई। लिहाजा शिकार का बढ़ा क्षेत्र बाघों को मिल गया।
आप को धमकी की भाषा शोभा नहीं देती………….
एक बहस में एक प्रवक्ता एंकर से शिकायत करता है कि वह उसे बोलने से रोक रहा है क्योंकि वह...