संसद के मानसून सत्र का आज (31 जुलाई) 8वां दिन है। लोकसभा में विपक्ष के हंगामे के चलते स्पीकर ने सदन की कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी है। लोकसभा की कार्यवाही शुरू हो चुकी है। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने हंगामा और नारेबाजी शुरू कर दी। सदन के भीतर विपक्ष के सांसद ‘प्रधानमंत्री सदन में आओ’ के नारे लगा रहे हैं।
मणिपुर में आज ही हो शुरू हो चर्चा- हंगामा के बीच बोले पीयूष गोयल
मणिपुर के हालात का जायजा लेने गए इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A) के सांसद 30 जुलाई (रविवार) को दिल्ली लौट आए।
विपक्षी दल लगातार मणिपुर हिंसा पर सदन में चर्चा की मांग कर रहे हैं। लिहाजा आज भी संसद की कार्यवाही हंगामेदार रहने के आसार हैं।
वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में आज दिल्ली अध्यादेश बिल पेश कर सकते हैं। इसे 25 जुलाई को मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी।
इसे लेकर राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के चीफ व्हिप सुशील कुमार गुप्ता ने व्हिप जारी किया है। इसमें आप के सभी राज्यसभा सांसदों को 4 अगस्त तक सदन में मौजूद रहने को कहा गया है।
केंद्र ने 19 मई को अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर अध्यादेश जारी किया था। अध्यादेश में उसने सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को मिला था।
कांग्रेस सांसद बोलीं- सदन में हालात की रिपोर्ट पेश करेंगे
कांग्रेस सांसद फूलो देवी नेताम ने 30 जुलाई को कहा कि मणिपुर के हालात की भरोसेमंद रिपोर्ट सदन में पेश की जाएगी। मणिपुर गए I.N.D.I.A के सांसदों में फूलो देवी भी थीं। फूलो देवी ने बताया कि पीड़ित कह रहे हैं कि पुलिस मौजूद है, लेकिन वो कुछ कर नहीं रही। सरकार भी कोई एक्शन नहीं ले रही। हम मांग करेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में आकर मणिपुर पर चर्चा करें।
विपक्षी सांसदों ने राज्यपाल को चिट्ठी दी, लिखा- सरकारी मशीनरी हिंसा रोकने में नाकाम रही
- हम I.N.D.I.A के सदस्यों ने चुराचांदपुर, मोइरांग और इंफाल के रिलीफ कैंप का दौरा किया। वहां हम हिंसा पीड़ितों से मिले। उनके दुख, कहानियां, आपबीती सुनकर हम हैरान और दुखी हैं। उनमें खुद को दूसरे समुदायों से अलग किए जाने का गुस्सा है। इस पर बिना देर किए एक्शन लेने की जरूरत है।
- राज्य और केंद्र सरकार इन दो समुदाय के लोगों के जीवन और संपत्ति को सुरक्षा देने में फेल रही हैं क्योंकि अब तक 140 मौतें, 500 से ज्यादा कैजुअलिटी और 5 हजार से ज्यादा घरों में आग लगाने की घटनाएं हो चुकी हैं। 60 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित किए गए हैं।
- पिछले कुछ दिनों में फायरिंग और आगजनी की घटनाओं से ये साबित हो गया है कि सरकारी मशीनरी तीन महीने से चल रही हिंसा को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही है। रिलीफ कैंपों में हालात बदतर हैं। बच्चों को विशेष देखभाल की बेहद जरूरत है। सभी विषयों के स्टूडेंट्स भी भविष्य की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। जिसे देखना सरकार की सबसे पहली जिम्मेदारी है।
- तीन महीने से इंटरनेट पर लगा बैन निराधार अफवाहों को बढ़ा रहा है। इससे अविश्वास और बढ़ा है। प्रधानमंत्री की चुप्पी ये दिखाती है कि वे मणिपुर हिंसा को लेकर उदासीन हैं। हम आपसे अपील करते हैं कि राज्य में शांति को दोबारा बहाल करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं, ताकि न्याय की नींव बनी रहे, क्योंकि ये सबसे जरूरी है।
- आपसे ये भी अनुरोध करते हैं कि सरकार को इस बात से अवगत कराएं कि राज्य में 89 दिनों से कानून-व्यवस्था चरमराई हुई है और यहां शांति और जन-जीवन सामान्य करने के लिए उसका हस्तक्षेप करना जरूरी है।
मनीष तिवारी बोले- अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद हर बिल पास हुआ
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने 30 जुलाई को न्यूज एजेंसी PTI से बातचीत में कहा- लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद हर बिल पास हुआ। जबकि नो कॉन्फिडेंस मोशन पर चर्चा के लिए 10 दिन का समय दिया जाता है। इस दौरान लोकसभा का इस्तेमाल बिलों को पास कराने के लिए नहीं किया जा सकता।
तिवारी ने ये भी कहा कि जब सदन के पटल पर अविश्वास प्रस्ताव रख दिया जाता है, उस स्थिति में सदन में कोई विधेयक या बिजनेस नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता है तो ये नैतिकता और संसदीय नियमों का उल्लंघन है।
मणिपुर हिंसा में अब तक 150 से ज्यादा मौतें
मणिपुर हिंसा में अब तक 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें 3-5 मई के बीच 59 लोग, 27 से 29 मई के बीच 28 लोग और 13 जून को 9 लोगों की हत्या हुई थी। 16 जुलाई से लेकर 27 जुलाई तक हिंसा नहीं हुई थी, लेकिन पिछले दो दिनों से हिंसक झड़प की घटनाएं बढ़ गई हैं।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं और ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी को युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नगा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।