पिछले कुछ समय से देश भर की कई अदालतों में याचिका दायर कर समलैंगिक विवाह को वैधानिक मान्यता देने की मांग हो रही है। केंद्र ने इसका विरोध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया है। केंद्र के रुख की सराहना करते हुए केरल के सिरों मालाबार चर्च ने एक साकारात्मक टिप्पणी देते हुए कहा है कि ऐसे रिश्तों को कानूनी मान्यता देना न केवल अप्राकृतिक है बल्कि देश में मौजूद परिवार व्यवस्था के साथ अन्याय भी है। इससे बच्चों और जानवरों आदि के प्रति आकर्षण जैसे यौन विकारों को वैध बनाने की मांग भी शुरू हो सकती है।
कहते हैं कबीर ने प्रतीकों को उद्देश्य मान कौतुक–कौतूहल को समझने के लिए उलटबांसियों की रचना की थी। इसका उद्देश्य रहस्यवाद को जानने समझने की जिज्ञासा भी थी। हालांकि इस उत्तम उद्देश्य के बावजूद इसे समझने में जितनी माथापच्ची करनी पड़ती है वो कष्टकारी है। सुर्ख़ियों में बनी हाल की यह घटना संभवतः इसी उलटबांसी का एक ताजा नमूना है। ये धारा से विपरीत उल्टा बहने की कवायद है। अगर विवाह कानून की बात करें तो भारत में अधिकतर लोग अपने धार्मिक रीति–रिवाजों के अनुसार ही शादियां करते हैं। अलग–अलग धर्म के मैरिज एक्ट भी हैं। मसलन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत हिंदू‚ बौद्ध‚ सिख‚ लिंगायत और जैन धर्म के जोड़े आपस में शादी कर सकते हैं। मुस्लिम मैरिज एक्ट में मुसलमानों के निकाह का प्रावधान है। इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट के तहत ईसाई जोड़े शादी कर सकते हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट में अलग–अलग धर्म के लड़के और लड़कियां शादी कर सकते हैं। इसके अलावा फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत विदेश में रहने वाले भारतीय शादी करते हैं‚ लेकिन इन कानूनों में समलैंगिक विवाह का कहीं भी कोई जिक्र नहीं है। अगर समलैंगिक जोड़े शादी कर भी लेते हैं‚ तो उसे संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाती है। विशेषज्ञों की माने तो इस तरह का फैसला मानसिक फितूर से ज्यादा कुछ भी नहीं। ऐसे अजीबोगरीब मांग के लिए भारत में कोई जगह नहीं। यहां शादियां दो अंजान जोड़ों को पवित्र बंधन में बांध कर उन्हें नव सृजन का आधार देती है। संतति के विस्तार के लिए दो विपरीत लिंगी लोगों का होना आवश्यक है।
ऐसे में समलैंगिक विवाह की अवधारणा निराधार ही लगती है। भारत जैसे विशुद्ध पारंपरिक देश में जहां शादी और सृजन एक सात्विक अनुष्ठान है ऐसी परिकल्पनाओं को कदापि कोई प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए। वैसे तो दुनिया के तैंतीस देशों में अदालती फैसले के बाद समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली गई है‚ जिसमें नीदरलैंड (हालैंड़) ऐसा करने वाला सबसे पहला देश बना। इसके अलावा ऑ्ट्रिरया‚ ताइवान‚ कोलंबिया‚ अमेरिका‚ ब्राजील‚ फ़्रांस‚ जर्मनी‚ ऑस्ट्रेलिया‚ कनाडा‚ क्यूबा‚ डेनमार्क‚ स्वीडन‚ दक्षिण अमेरिका‚ माल्टा‚ फिनलैंड‚ ब्रिटेन जैसे देशों में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है‚ लेकिन भारत की सांस्कृतिक और वैवाहिक शुचिता को ध्यान में रखते हुए इसे बेजा ही माना जाएगा। हमारी संस्कृति‚ प्रणय संबंधों को पूजती रही है। समय के साथ बदलते परिवेश में भले ही परमपराएं टूट रही हों‚ लेकिन इस टूटन के दुष्परिणाम भी हैं। निश्चित ही समलैंगिक विवाह भारतीय संस्कृति‚ भारतीय शास्त्रों और परंपराओं के खिलाफ है और महिला के बीच संबंधों की उपेक्षा है। इसे सिरे से खारिज किया जाने में ही बेहतरी है।