परीक्षा से ऐन पहले प्रश्न पत्र लीक होना निश्चित तौर पर सरकार के इकबाल पर बड़़ा सवालिया निशान पैदा करता है। हजारों–लाखों छात्रों की आकांक्षा–अपेक्षाएं क्षण भर में जमींदोज हो जाती हैं। विडंबना है कि तमाम प्रयासों और सख्ती के बावजूद ऐसे प्रकरण रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। इस रोग से पहले बिहार ही ग्रसित था‚ मगर अब यह सीमा फांदकर राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को भी अपनी गिरफ्त में ले चुका है। प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न–पत्र लीक होने की पुनरावृत्ति निश्चित रूप से गंभीर मसला है‚ जो परीक्षा संचालित करने वाली एजेंसी सहित उस राज्य की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। आखिर‚ साधन–संपन्न और आधुनिक तकनीक से सुसज्जित व्यवस्था में बार–बार सेंधमारी कैसे मुमकिन हो रही हैॽ क्या संबंधित एजेंसी पूर्ण सुरक्षित नहीं हैॽ क्या सरकार के तंत्र चरमराए हुए हैंॽ क्या सरकारें युवा पीढ़ी का बहुमूल्य समय‚ संसाधन और राष्ट्र निर्माण के अपने घटकों की क्षति होते देखते रहने की अभ्यस्त हो चुकी हैं।
बिहार में लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित परीक्षा के प्रश्न पत्र मई‚ २०२२ में लीक हुए थे। २३ दिसम्बर‚ २०२२ को कर्मचारी चयन आयोग द्वारा संचालित परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक हो गए। आठ साल बाद २१८७ पदों के लिए आयोजित इस परीक्षा के लिए करीब नौ लाख प्रतिभागियों ने आवेदन किया था। तीन पाली में विभाजित इस परीक्षा का प्रथम पाली का प्रश्न पत्र लीक हुआ जिसमें करीब दो लाख से अधिक युवा शामिल हुए। इनके लिए ३८ जिलों में ५२८ केंद्र बनाए गए थे। चार जनवरी‚ २०२२ को पटना में हजारोंे प्रतिभागियों ने प्रदर्शन कर सभी पालियों की परीक्षा रद्द करने की मांग की। हालांकि दोनों मामलों में गिरफ्तारियां हुइ लेकिन समय‚ संसाधन और धूमिल छवि की भरपाई संभव नहीं। इसी दरम्यान राजस्थान शिक्षक योग्यता परीक्षा (आरईईटी) का प्रश्न पत्र लीक हुआ। इससे करीब तीन लाख युवा जुड़े थे। इसके पूर्व भी वहां एक प्रतियोगी परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हुआ था।
हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग (एचपीएसएससी) द्वारा आयोजित परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक हुए जिसमें १‚०३‚०४४ अभियर्थियों ने आवेदन भरे थे। वहां अगस्त‚ २०१९ में पुलिस भर्ती के प्रश्न पत्र लीक हुए थे। अप्रैल‚ २०२२ में भी परीक्षा के प्रश्न पत्र आउट हुए थे। सुनियोजित ढंग से पेपर लीक कराना अब किसी राज्य विशेष की घटना नहीं रह गई है‚ बल्कि इस मामले में अंतरराज्यीय गिरोह सक्रिय हो चुके हैं। पटना‚ इलाहाबाद व जयपुर आदि बड़े–बड़े स्टडी सेंटर पर लाखों विद्यार्थी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। पेपर लीक कराने वाले नेटवर्क के लोग वहां सक्रिय रहते हैं। ये ऊपर (परीक्षा संचालक एजेंसी) से लेकर नीचे (पुलिस‚ वकील और केंद्राधीक्षक) तक सबको सेट कर लेते हैं। कोचिंग इंस्टीट्यूट की भी इसमें भागीदारी होती है। पेपर लीक कराने के लिए परीक्षा संचालित करने वाली एजेंसी व प्रिंटिंग करने वाली एजेंसी के लालची लोगों को भी निशाना बनाया जाता है। निजी परीक्षा केंद्रों से अधिक मामले आ रहे हैं। आखिर‚ ऐसे केंद्रों की अर्हताएं कैसे पूरी होती हैंॽ इस पर गंभीरता से मंथन की जरूरत है। पैसा खर्च करने की स्थिति वाले प्रतिभागी के जरिए पैसे की उगाही कर सरगना तक पहुंचा दिया जाता है। इनका दावा होता है कि पेपर आउट करा सकते हैं तो बाद में पैसे की उगाही भी। लेकिन अधिकांश मामलों में बात तब बिगड़ती है‚ जब कुछ प्रतिभागी बड़ी रकम की वसूली में को–शेयरर चेन बनाने लगते हैं। स्नातक कर चुकी युवा पीढ़ी को स्किल्ड़ और सेमीस्किल्ड़ की श्रेणी में रखकर विचार किया जाए तो हिमाचल‚ राजस्थान और बिहार के करीब १४ लाख युवा प्रभावित हुए। दूसरे शब्दों में स्किल्ड़/सेमीस्किल्ड़ माइंड सात माह (मई २०२२ में आवेदन भरे गए थे) तक औसतन छह से सात घंटे मानसिक व शारीरिक प्रयास किए यानी २९ करोड़ ४० लाख मानव दिवस और २ अरब‚ ०५ करोड़ ८० लाख घंटे की अवधि बर्बाद हुई। यदि इस मानव दिवस को मानव जीवन से तुलना करें तो औसतन ६५ साल (५‚६९‚४०० घंटे) जीने वाले ३६१४ लोगों का जीवन समाहित हो जाएगा।
गौर करें‚ यह वह दौर है जब जापान जैसे विकसित देशों में युवा पीढ़ी की बेहद कमी हो गई है। १३ करोड़ की आबादी वाले इस देश में बड़ी फैक्टरियों के संचालन और सेना में भर्ती के लिए युवाओं को ढूंढ़ा जा रहा है। ऐसे में युवाओं का स्वर्ण काल बर्बाद करना राष्ट्रहित की भारी क्षति नहीं तो और क्या हैॽ वक्त आ गया है कि देश की सभी परीक्षा एजेंसियां‚ केंद्रीय एजेंसियों से तालमेल कर चाक–चौबंद व्यवस्था करें ताकि पेपर प्रिंटिंग‚ रखरखाव व परीक्षा केंद्र तक सेंधमारी न हो। परीक्षा के दौरान केंद्र पर सीसीटीवी‚ जैमर सहित अन्य उपकरणों का सहयोग लिया जाए। नीतीश मॉडल की दुहाई देने वाले बिहार को इसका अगवा बनना होगा ताकि उनके फूलप्रूफ परीक्षा संचालन का बाकी राज्य भी अनुसरण करें।