नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को केवल पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ही नहीं बनाया है, बल्कि वारिस घोषित कर दिया है। पार्टी में अभी तक कोई राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नहीं बना था। ऐसे में वो नंबर दो के नेता हैं। इससे सबसे ज्यादा दिक्कत नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह को होगी, जो पार्टी अपने हिसाब से चला रहे थे। जिस पिछड़े समाज को लेकर नीतीश कुमार राजनीति करते हैं, क्या उस समाज को एक अगड़ा भाएगा, ये तो वक्त ही बताएगा? बिहार की राजनीति का एक सामान्य दिन। स्थान-राजधानी पटना, दिन-मंगलवार, तारीख 16 अक्टूबर 2018। उपरोक्त बयान राजद के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का है। इस बयान के अंत में शिवानंद तिवारी ने एक सवाल छोड़ रखा है-‘क्या उस समाज को एक अगड़ा भाएगा’। ठीक चार साल पहले 16 सितंबर 2018 को राजनीतिक रणनीतिकार और वर्तमान में जन सुराज यात्रा के प्रमुख प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने जेडीयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में शामिल किया। उसके ठीक एक महीने बाद उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद दे दिया गया। पीके ने चेहरे पर 440 वोल्ट लेकर नीतीश कुमार के साथ तस्वीरें खिंचवाई।
तेजस्वी में का बा…?
तेजस्वी में का बा? इसे समझने से पहले, हम आपको थोड़ा सा पीछे ले चलते हैं। नीतीश कुमार पीके को जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने से पहले मीडिया को कह चुके थे कि उनका कद पार्टी में दूसरे नंबर का होगा। इस बयान के बाद जेडीयू के बाकी नेता अभी कुछ सोचते, तब तक नीतीश कुमार ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से नवाज दिया। सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई कि इसे कहते सियासत में डायरेक्ट एंट्री। पीके अपनी इस उपलब्धि पर फूले नहीं समा रहे थे। वे शायद शिवानंद तिवारी के बयान से अंदर ही अंदर काफी खुश थे, जिसमें उन्होंने पीके को नीतीश का वारिस करार दे दिया था। जेडीयू में आते ही पीके ने रणनीति तय करनी शुरू कर दी। नीतीश के इस फैसले से पार्टी के बाकी नेताओं में संदेश गया कि अपने बाद नीतीश कुमार यदि किसी को अहम भूमिका में रखना चाहते हैं, तो वो पीके हैं। प्रशांत किशोर के पार्टी में पद और कद की घोषणा बकायदा तत्कालीन पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने की। त्यागी की ओर से पार्टी के बाकी नेताओं को कहा गया कि पीके को ये कमान राष्ट्रीय नेतृत्व ने सौंपी है, हालांकि ये सब जानते थे कि नीतीश कुमार ने पीके को पार्टी में नंबर दो की हैसियत दी है।
महात्वाकांक्षा ने भी दिया दर्द !
सियासी जानकारों की मानें, तो पीके काफी खुश थे। उनकी महात्वाकांक्षा को पंख लग गए थे। उन्हें ये साफ लग रहा था कि अब वे नीतीश की सियासी विरासत को आगे बढ़ाएंगे और सुशासन के चेहरे को अपनी स्ट्रेटजी से चमका कर व्यवस्थित कर देंगे! नीतीश के बाद बिहार की गद्दी उनके नाम ही होगी!जानकारों की मानें, तो ऐसा पीके ही नहीं, जेडीयू के वो नेता भी समझने लगे थे जिन्होंने पीके और नीतीश के संबंधों को नजदीक से देखा था। जानकार बताते हैं कि पीके को ये विश्वास हो गया कि अब जेडीयू में कोई भी कदम बिना उनकी राय के नहीं उठाया जाएगा और नीतीश कुमार उनसे ज्यादा किसी पर विश्वास नहीं करते हैं! जेडीयू में पीके के आने के बाद वैसे भी पार्टी नेता खुद को साइडलाइन महसूस करने लगे थे। सियासी गलियारों से लेकर पार्टी के फैसलों तक में बस पीके और पीके की गूंज सुनाई दे रही थी। पीके पार्टी नेताओं की क्लास लेने लगे। सीएम हाउस के अतिरिक्त 7 सर्कुलर रोड पर पीके बैठने लगे। जेडीयू नेताओं के साथ मिलकर जनाधार बढ़ाने की दिशा में काम करने लगे। उसके बाद एक दिन ऐसा हुआ कि पीके के मुंह से कुछ ऐसा निकल गया, ऐसा लगा जैसा पार्टी के सिंबल वाला तीर सीधे नीतीश के सीने में घुस गया।
सियासी दर्द पुराना है !
पीके के पावर में आने के बाद आरसीपी सिंह और ललन सिंह जैसे नेता खुद को साइडलाइन महसूस कर रहे थे। तभी पीके के उस बयान ने इन दोनों नेताओं को सियासी संजीवनी दे दी। दोनों नेताओं में ऐसी बिसात बिछाई, जिस पर पीके फिसल गए। पीके ने बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद कहा था कि नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था, न कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी। नीतीश कुमार अंदर ही अंदर नाराज हो गए। दूरियां बढ़ती चली गईं और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार की कमान पीके की जगह आरसीपी सिंह को मिल गई। पीके ने अपने आपको जेडीयू से किनारे कर लिया। फिर से वे अपने पुराने काम में जुट गए। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के चुनाव का काम ले लिया। नीतीश और पीके में तल्खी बढ़ने लगी। पीके नीतीश के खिलाफ बयान देने लगे। लगे हाथों नीतीश ने भी कह दिया कि वे पार्टी से बाहर जाना चाहते हैं, तो चले जाएं। मुख्यधारा की राजनीति में पीके के सफर का अंत हो गया। उसके कुछ दिन बाद पीके जन सुराज यात्रा के माध्यम से खुद के सियासी सफर पर निकल पड़े, लेकिन अंदर का सियासी दर्द अभी भी छलक पड़ता है।
नीतीश की सियासी विरासत
सियासी जानकारों की मानें, तो जब से नीतीश कुमार ने तेजस्वी को कमान सौंपने का सार्वजनिक ऐलान किया है। सबसे ज्यादा तल्ख टिप्पणी प्रशांत किशोर की आ रही है। पीके नीतीश को चैलेंज दे रहे हैं। पीके ये भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार का राजतंत्र है क्या, जो 2025 में तेजस्वी को मुख्यमंत्री बना देंगे?पीके ने नीतीश कुमार के तेजस्वी को लेकर की जा रही घोषणाओं पर अपनी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि नीतीश कुमार का राजतंत्र है क्या? जो वह कहेंगे उनके अनुसार सब हो जाएगा। प्रशांत ने कहा कि 2025 में नहीं, बल्कि नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव को अभी कमान सौंप देनी चाहिए। ताकि जनता तीन साल में तेजस्वी यादव की ओर से चलाई गई सरकार का बेहतर ढंग से आंकलन कर सके और जब 2025 के चुनावों में हो तो जनता इस आधार पर वोट करें तेजस्वी यादव ने बेहतर काम किया है कि नहीं। प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को चैलेंज देते हुए कहा कि अभी तेजस्वी यादव जिन विभागों को चला रहे हैं उनकी हालातों से सभी रूबरू है। पथ निर्माण, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य विभाग जैसे विभागों के जमीनी हालत तो आपा देख रहें हैं। हमारा नीतीश कुमार से हाथ जोड़कर आग्रह है कि आप अपना पद छोड़ दीजिए और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना दीजिए।
छलक रहा पुराना सियासी दर्द !
जानकारों की मानें, तो पीके पूर्व में नीतीश कुमार के साथ रहते हुए बिहार को चलाने का पूरा सपना देख चुके थे। पीके खुद को मन ही मन नीतीश कुमार की सियासी विरासत का उत्तराधिकारी मान चुके थे। लेकिन, वे जेडीयू के अंदर की राजनीति के शिकार हो गए। पीके से आज भी नीतीश कुमार का व्यक्तिगत रिश्ता बना हुआ है। जानकार तो यहां तक मानते हैं कि नीतीश कुमार काफी सोच-समझकर तेजस्वी को 2025 में कमान सौंपने की बात कह रहे हैं। जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार ने हाल के दिनों में पीके से मुलाकात की है। नीतीश पीके की जन सुराज यात्रा से भी प्रभावित हैं। नीतीश को पीके की काबिलियत पर पूरा भरोसा है। जानकारों की मानें, तो राजनीति में सबकुछ संभव है। कभी भी नीतीश कुमार पीके को अपने पाले में बुला सकते हैं। नीतीश कुमार 2025 से पहले तेजस्वी के कार्यकलाप को नजदीक से देखना चाहते हैं। जानकारों की मानें, तो प्रशांत किशोर का दर्द छलकना जायज है। वे अपने बयानों में तेजस्वी को नन मैट्रिक और अयोग्य करार दे चुके हैं। कुछ दिन पहले ही पीके ने कहा था कि तेजस्वी ने पहले हस्ताक्षर से 10 लाख लोगों को नौकरी देने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि पत्रकारों ने कभी नहीं पूछा कि कलम टूट गई है या स्याही सुख गई है। कैबिनेट मीटिंग भी इसपर नहीं हो रही है। वहीं, नीतीश कुमार आखिरी बार प्रेस वार्ता कब किए हैं ? यह किसी को याद भी नहीं है. नीतीश कुमार से भी कोई पत्रकार सवाल नहीं पूछता?