हे देश की जनता! अब तक तू संसद को लाइव देखती आई है। अब तू बडी अदालतों की कार्रवाई को भी लाइव देख सकती है। है न मजे की बात। अब चाहे जब तू अपने मोबाइल पर जज महोदयों व वकीलों के दर्शन कर सकती है‚ और अदालती बहसों का आनंद ले सकती है क्योंकि अब अदालतें भी अपने को यूट्यूब पर ‘लाइव स्ट्रीम’ करने जा रही हैं। है न यह ‘मीडिया जिंदाबाद’ कहने का क्षण।
यों भी बडी अदालत अरसे से सोचती आ रही थी कि जब संसद लाइव प्रसारित हो सकती है‚ तो अदालतें क्यों नहींॽ अब तक वे ‘मीडिया शाई’ थीं। जब भी किसी बडे काूननी फैसले की टीवी में खबर आती तो एकदम ‘डाई’ आती। बहुत हुआ तो टीवी चैनल अदालत के भीतर का एक स्टिल रेखाचित्र बनवा कर दिखा देते। बाकी एंकर बताते। यह अदालतों की गोपनीयता की कल्चर थी जिसे अंग्रेजों ने यहां की जनता से बचने के लिए बनाया था। नई सूचना क्रांति उसे विदा कर रही है। अब तक आप अदालतों में ‘पास’ लेकर ही अदालतों की कार्रवाई में जा सकते थे। वहां बैठकर कार्यवाही देख सकते थे। रिपोर्टर अपने मोबाइल पर कार्यवाही को लिखकर बाहर भेेज सकते थे जिसे बाहर खडे रिपोर्टर पढकर सुना देते थे‚ लेकिन वकीलों ने क्या बोलाॽ किस तरह से बोलाॽ जजों ने जरूरत पडने पर किससे क्या कहाॽ कैसे कहाॽ क्या ऑब्जर्वेशन दियाॽ यह सब अनसुना और अनदेखा रह जाता था। हमें सिर्फ उतना ही मालूम होता था जितना चैनलों के रिपोर्टर बताते। एंकर बताते।
अब सारी कार्यवाही लाइव स्ट्रीम होगी। सब यूटयूब की मेहरबानी कि आप यह सब यूटयूब पर देख सकेंगे। सर्वोच्च न्यायालय की तीन बेंचों ने एक दिन अपनी सुनवाइयों को यूट्यूब पर लाइव दिखाया भी है। इस प्रसारण के बारे में जैसी खबरें आई हैं‚ वे बताती हैं कि कुछ बडी अदालतों की कार्यवाही के ये लाइव प्रसारण शुरुआती झांकी भर हैं। असली सीन तो अभी आने हैं‚ और जब असली सीन आएंगे तो वे कैसे होंगेॽ यही बात हमारे दो टीवी एंकरों के लिए चिंता का विषय रही और इसीलिए उन्होंने कई बडे वकीलों से पूछा कि जिस तरह से संसद के कई नेता संसद के लाइव प्रसारण को अपनी ‘कंस्टीट्वेंसी’ को बनाने–बचाने के लिए इस्तेमाल करते दिखते हैं‚ जिसके लिए कई धरना देने लगते हैं। कई पोस्टर दिखाने लगते हैं। कई परचे फेंकने लगते हैं‚ कहीं वकील भी तो वैसे ही सीन न बनाने लगेंगेॽ कहीं वकील भी अपना ‘ब्रांड’ बनाने और अपने को ‘शोमैन’ बनाने के लिए उसी तरह के टंट–घंट तो नहीं करने लगेंगे जैसे कि ‘स्टेट बरक्स जॉली एलएलबी’ नामक फिल्म में दिखता है।
फिल्म के एक सीन के अनुसार एक राज्य अदालत में देर रात तक होती एक सुनवाई के दौरान एक वकील जब जज महोदय से अपनी बात नहीं मनवा पाते तो प्रोटेस्ट में वहीं अदालत के फर्श पर धरना देकर बैठ जाते हैं‚ और उधर होडा होडी में जज महोदय भी वहीं धरने पर बैठ जाते हैं। फिर इनकी देखा देखी अदालत में मौजूद पब्लिक भी धरने पर बैठ जाती है। इसे देख खबर चैनल वाले बाहर खबर देते हैं कि आज वो हुआ जो कभी न हुआ। आज देर रात तक एक सुनवाई के दौरान एक वकील अदालत के फर्श पर धरना देकर बैठ गए तो जज भी बैठ गए.हम याद कर सकते हैंः संसद के शुरुआती लाइव प्रसारणों में हंगामे कम दिखते थे‚ बहसें अधिक दिखती थीं लेकिन धीरे–धीरे कई नेताओं ने लाइव कैमरों के जादू को समझ लिया और संसद में अपनी परफॉरमेंस सी देने लगे। परफॉरमेंस में होता है हंगामा‚ नारेबाजी‚ धरना.परचे फेंकना। कई बार कई नेता ऐसा हंगामा करके अपनी कंस्टीट्वेंसी को जताता लगता जैसे कहता हो देखा हमारा पव्वा। तुम्हारी खातिर हमने संसद ही नहीं चलने दी। हमारी नहीं चलेगी तो किसी की नहीं चलने देंगे।
इस तरह की स्थिति को देख कुछ वकीलों का कहना रहा कि अदालत में ऐसा होता है‚ तो वहां जज कंट्रोल कर सकते हैं.लेकिन आज का दौर तो ‘खलत्व’ की ‘हीरोइक्स’ का दौर है‚ जो जितना ही अवज्ञाकारी उतना ही हीरो है। फिर इन दिनों के नफरतवादी वातावरण में कुछ ऐसे फैसले भी किए जा सकते हैं‚ जो किसी समूह को नाराज कर सकते हों। जब आज ऐसे ही नाराज समूह कुछ जजों को धमकी दे सकते हैं‚ तो जब लाइव होगा तब क्या होगाॽ अदालत लाइव दिखे यह अच्छा है‚ लेकिन संसद की तरह से अदालत की कार्यवाही भी आए दिन स्थगित होने लगे तो क्या अच्छा होगाॽ क्या अदालत का ऐसे विवाद में रहना अच्छा होगाॽ लेकिन ऐसे सवालों का जवाब तो अदालत ही दे सकती है।