यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि आजादी के बाद भले ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला हो किंतु आजादी से पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाता था। सोहन लाल द्विवेदी अपने संपादकीय में लिखते हैं कि हमें यह लिखते हुए गर्व होता है कि संसार की किसी भी भाषा में ऐसा ग्रंथ आज तक प्रकाशित नहीं हुआ‚ जिसमें संसार के सर्वश्रेष्ठ पुरु ष के संबंध में इतनी भाषाओं के कवियों की कविताएं एक स्थान पर संग्रहित की गई हों। यह सौभाग्य राष्ट्र भाषा हिंदी को प्राप्त हुआ है‚ अतः यह प्रत्येक राष्ट्र भाषा प्रेमी के लिए गर्व का विषय है। सुब्रह्मण्यम भारती कहते हैं कि धन्य गांधी जी‚ आपने भारतवर्ष के उद्धार के लिए अवतार ग्रहण किया है‚ जहां दरिद्रता क्या आज भी तांडव हो रहा है। जो अपनी स्वतंत्रता से वंचित है‚ जो पतन के गर्त में समा गया है। मूर्छित लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करने वाले महावीर के समान आप हैं यह कहें‚ या इंद्र के कोप से उंगली पर गोवर्धन धारण करने वाले गोपाल कहकर आपकी प्रशंसा करें
धी जीवे वर्ष शत‚ देश होय स्वाधीन।
शांति स्थापन होय जग‚ मारग चलय नवीन
उपरोक्त पंक्तियां महामना पं. मदन मोहन मालवीय की हैं‚ जब महात्मा गांधी १९४४ में ७५ वर्ष के हुए थे। उस समय गुलाम देश ने गांधी जी के जन्मदिवस पर अमृत महोत्सव मनाया था। आज देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में उत्सुकता जागृत होना स्वाभाविक है कि आजादी से पहले महात्मा गांधी का अमृत महोत्सव कैसे मनाया गया था‚ और देश में क्या भावना थी।
देश में आजादी को लेकर चारों ओर अंग्रेजों के विरु द्ध वातावरण बना हुआ था‚ देश के कोने–कोने में गांधी जी की अहिंसा के सिद्धांत के कारण आम आदमी भी देश की आजादी में अपनी आहुति देने के लिए तत्पर था। ऐसे में देश के कोने–कोने में गांधी जी के ७५वें जन्मदिन पर अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए और उनकी लंबी आयु की कामना की गई। इन तमाम अभिनंदन कार्यक्रमों के बीच में एक महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य सोहन लाल द्विवेदी ने किया कि गांधी जी पर एक अभिनंदन ग्रंथ सम्पादित किया। इस अभिनंदन ग्रंथ की भूमिका सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखी थी। उन्होंने अपने भावों को इस प्रकार व्यक्त किया था कि जब तक सभ्यता का चिह्न संसार में रहेगा‚ गांधी जी का नाम आदर के साथ स्मरण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जो उद्देश्य हम युद्ध के द्वारा प्राप्त करना चाहते हैं‚ वे तो शांतिमय साधनों से भी प्राप्त हो सकते हैं। बर्बरतापूर्ण संसार में गांधी जी ही सच्चे प्रेम के तत्व को ग्रहण करने में अग्रगण्य हैं। उस समय इस अभिनंदन ग्रंथ के प्रकाशन में घनश्याम दास बिरला ने १००० रुपये का सहयोग प्रदान किया था। वे कहते हैं कि गांधी जी की ७५वीं जन्मतिथि के उपलIय में तरह–तरह के आयोजन हो रहे हैं।
महापुरु षों के तनिक संपर्क से भी पुण्य की वृद्धि होती है। इसलिए गांधी जी के संपर्क से इस ग्रंथ के द्वारा जो कुछ पुण्य लाभ हो उससे हम सबका कल्याण हो‚ ऐसी हमारी प्रार्थना है। पुरु षोत्तम दास टंडन ने कहा था कि महात्मा गांधी हमारे देश की अनुपम विभूति हैं। उनको पाकर हम अपनी दरिद्रता में भी भाग्यवान हैं। साधारण रीति से ७५ वर्ष की आयु में मनुष्य क्षीण शक्ति हो जाता है‚ किंतु अपने बापू की कल्पना हम सशक्त महारथी के रूप में करते हैं। उनकी बहुत आवश्यकता है। हमें इस आयु से संतोष नहीं। उनके १०० वर्ष पूर्ण होने की लालसा हमारे हृदय में भरी है। गोपीनाथ बारदोलाई ने अपनी भावना को इस प्रकार व्यक्त किया‚ ‘मेरे लिए तो कोई भी कविता इतनी ऊँची नहीं हो सकती‚ जो महात्मा जी के अंतर की सहृदयता को व्यक्त कर सके‚ न ही कोई ऐसी भाषा ही समृद्ध जान पड़ती है‚ जो गांधी जी के जीवन की गरिमा को लिख सके।’ इस प्रकार तमाम महापुरु षों ने गांधी जी को ७५वें जन्मदिन पर बधाई दी और अपने भावों को व्यक्त किया। यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि आजादी के बाद भले ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला हो किंतु आजादी से पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाता था। सोहन लाल द्विवेदी अपने संपादकीय में लिखते हैं कि हमें यह लिखते हुए गर्व होता है कि संसार की किसी भी भाषा में ऐसा ग्रंथ आज तक प्रकाशित नहीं हुआ‚ जिसमें संसार के सर्वश्रेष्ठ पुरु ष के संबंध में इतनी भाषाओं के कवियों की कविताएं एक स्थान पर संग्रहित की गई हों। यह सौभाग्य राष्ट्र भाषा हिंदी को प्राप्त हुआ है‚ अतः यह प्रत्येक राष्ट्र भाषा प्रेमी के लिए गर्व का विषय है।
सुब्रह्मण्यम भारती कहते हैं कि धन्य गांधी जी‚ आपने भारतवर्ष के उद्धार के लिए अवतार ग्रहण किया है‚ जहां दरिद्रता क्या आज भी तांडव हो रहा है। जो अपनी स्वतंत्रता से वंचित है‚ जो पतन के गर्त में समा गया है। मूर्छित लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करने वाले महावीर के समान आप हैं यह कहें‚ या इंद्र के कोप से उंगली पर गोवर्धन धारण करने वाले गोपाल कहकर आपकी प्रशंसा करेंॽ असीम दुख देने वाली परतंत्रता की व्यथा को दूर करने के लिए आपने ऐसी औषधि का आविष्कार किया है जो संसार के लिए अभिनव ही नहीं‚ अपितु सुलभ भी है। रामलिंगम पिल्ले ने कहा कि आज गांधी जी के तप की शक्ति ने संसार को आक्रांत किया है। छल और कपट राख हो गए हैं। वाद–विवाद ठंडा पड़ गया है। सारी दिशाएं स्तंभित रह गई हैं। दीन–दुखियों के बंधु गांधी जी की जितनी भी प्रशंसा करें कम ही है।
सरोजिनी नायडू ने लिखा था कि तुम्हारी परिवर्तनहीन आंखों ने युगांतों के दृश्य‚ उत्थान और पतन देखा है। तुम्हारी ये गंभीर भविष्यदर्शी आंखें भविष्य का क्या रूप देख रही हैंॽ इसमें संहार की स्थिति और लय इतनी तीव्र और कितनी अभूतपूर्व है। मेरी सिग्रिस्ट ने लिखा है कि यह कौन है‚ जो जगत के बीच से उस ओर चला जा रहा है‚ ईसा या बुद्धॽ इस साधारण मार्ग पर शांति का यह अवतार जिसके माध्यम से विश्रामहीन भारत चरम चेतन की ओर आकर्षित है। इस प्रकार उपरोक्त चंद भाव तत्कालीन विद्वानों के हैं।
कवि सुमित्रानंदन पंत ने लिखा था–
तुम मांसहीन‚ तुम रक्तहीन‚ हे अस्थि–शेष‚ तुम अस्थिहीन।
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल‚ चिर पुराण‚ हे चिर नवीन
वीर रस की कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत को अपनी कविता में इस प्रकार वर्णित किया था–
बह चली तोप‚ गल चले टैंक‚ बंदूकें पिघली जाती हैं।
सुनते ही मंत्र अहिंसा का अपने में आप समाती हैं पाषाण हृदय जो थे देखो वे आज पिघल कर मोम हुए‚
मैं ‘राम’ बनू इस आशय से‚ ‘रावण’ के घर में होम हुए
इस प्रकार गांधी जी के सम्मान में तमाम देश के तत्कालीन वरिष्ठ कवियों और महत्वपूर्ण लोगो ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। जब सोहन लाल द्विवेदी ने बापू को यह ग्रंथ भेंट किया तो उन्होंने सेवाग्राम से एक पत्र लिखा।
भाई सोहन लाल जी‚ आपकी कृति के गुण दोष बारे में मैं क्या कहूंॽ काव्यों की परीक्षा करने की मेरे में कोई योग्यता नहीं पाता। मेरी स्तुति में जो काव्य लिखे गए हैं‚ उस बारे में मैं क्या कह सकता हूंॽ हां‚ इतना मैं कह सकता हूं‚ आपने परिश्रम काफी उठाया है। कोई भी शुभ परिश्रम व्यर्थ नहीं जाता है।