विपक्षी सचमुच आंखों वाले अंधे हैं। बताइए‚ अब भी वही रट लगाए हुए हैं कि विकास कहां है‚ विकास कहां है! पहले ऐसे ही अच्छे दिन की रट लगाए रहते थे। जैसे–तैसे कर के उसका पीछा छुड़ाया तो अब विकास के पीछे पड़े हैं। पर पीछे ही पड़े हैं‚ मजाल है जो इन्हें विकास जरा भी सुझाता हो। बताइए‚ अडानी जी के दुनिया का अमीर नंबर–२ बनने में विकास नहीं देखा तो नहीं देखा। पर यहां तो भागवत जी दिल्ली में मस्जिद में जाकर एक मौलाना से मिल आए और उनसे राष्ट्रपिता का खिताब भी ले आए‚ पर इन्हें अब भी विकास दिखाई नहीं दे रहा है। अब इन्हें विकास दिखाने के लिए क्या मोदी जी को दोबारा दस लाख वाला अपना नाम बुना सूट पहन कर दिखाना होगा!
हमें पता है‚ ये विपक्ष वाले भागवती जी को इतनी आसानी से राष्ट्रपिता नहीं बन जाने देंगे! इन्होंने आसानी से तो श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपिता भी नहीं बनने दिया था; भागवत जी को यूं ही राष्ट्रपिता थोड़े की बन जाने देंगे। पहले तो इसी का झगड़ा करेंगे कि राष्ट्रपिता का पद तो खाली ही नहीं है। उस पर तो बापू बैठे हुए हैं। बापू को हटाकर किसी और राष्ट्रपिताके पद पर कैसे बैठाया जा सकता है‚ वगैरह! खैर! मोदी जी अच्छा करते हैं कि न विपक्ष न पक्ष‚ किसी से बहस में पड़ते ही नहीं हैं। मन की करते हैं और दूसरों को अपने मन की ही बात सुनाते हैं। और मन की बात ये है कि अमृतकाल में जब सब का विकास हो रहा है‚ सब की तरक्की हो रही है‚ तो भागवत जी का भी प्रमोशन क्यों नहींॽ
कब तक कोरे संघ–प्रमुख ही बने रहेंगे‚ अब तो राष्ट्रपिता कहलाना बनता है। रही बापू की बात तो भगत सिंह के शहीद के दर्जे की तरह‚ उनका राष्ट्रपिता होना भी बस कही–सुनी का मामला लगता है। वर्ना उनके राष्ट्रपिता एपाइंट होने का सरकार के पास तो कोई रिकार्ड है नहीं। और बहुत साल रह लिए वह भी राष्ट्रपिता‚ अब किसी और को भी मौका मिलना चाहिए। डेमोक्रेसी में किसी ओहदे पर कोई परमानेंटली कैसे रह सकता है!
बस एक चीज में जरा कन्फ्यूजन है। डालर अस्सी के पार निकल गया––यह रु पये का विकास है या डालर का पतनॽ