बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विदेह भाव से प्रधानमंत्री बनने या बनाने संबंधी अपना पर्यटन कार्य पिछले दिनों पूरा किया है। इस पर्यटन के पूरा होते ही ‘भारत जोड़ो’ के नाम पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी चलते–फिरते कंटेनर हॉउस के साथ कन्याकुमारी से कश्मीर के मध्य पर्यटन पर चल पड़े हैं। हालांकि‚ परोक्ष भाव में दोनों का यह पर्यटन आगामी आम चुनाव २०२४ में अपनी सफलता के संबंध में आकलन करना है। दोनों की तमन्ना प्रधानमंत्री बनने की है। दोनों नेता आगामी चुनाव में पहले पद को तय करा लेना चाहते हैं‚ जबकि पहले बहुमत जुटाने के मसले पर कसरत करनी चाहिए।
भारतीय लोकतंत्र में इस तरह का प्रयोग करते रहने का अवसर नेता लोग खुद तय कर लेते हैं। अपनी चाहत को जनता की चाहत बताकर जनता के ऊपर थोप देना इनके बाएं हाथ का खेल होता है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो’ देशव्यापी यात्रा उक्त कथन का जीता–जागता नमूना है। संसद में कांग्रेस के नेतृत्व में गठित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग या यूपीए) में करीब १० दल शामिल हैं। इनमें से किसी को भी ‘भारत जोड़ो अभियान’ में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है। इसी से स्पष्ट है कि कांग्रेस नेतृत्व के मन में क्या है। इस अभियान के जरिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व राहुल गांधी को राजनीति में नये सिरे से स्थापित करने के जुगाड़ में है। इस आशय का संकेत देते हुए कंग्रेस पर लग रहे आरोप सत्य प्रतीत हो रहे हैं। विसंगति यह है कि कांग्रेस का मौजूदा शीर्ष नेतृत्व शेष बची कांग्रेस को बचाए रखने के लिए उत्सुक नजर नहीं आ रहा है।
देश भर में कांग्रेस क्षत–विक्षत हो रही है‚ टूट रही है। पार्टी के नेता–पदाधिकारी आए दिन अपना डेरा–झंडा बदल रहे हैं। आहिस्ता–आहिस्ता कांग्रेस का जनाधार कमजोर हो रहा है। राहुल गांधी अपने कार्य में निरंतरता नहीं ला पा रहे हैं। फिर भी पार्टी के लोग फटी ढोलक रूपी राहुल गांधी पर ही भविष्य का दाव लगाने के लिए जुटे हुए हैं। शायद इन्हें यह पता नहीं है कि फटी ढोलक से अपेक्षित आवाज नहीं निकलती। इसी लिए कांग्रेस ने बड़ी गहन तैयारी कर राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू करा दी है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के प्रारंभिक दौर में कांग्रेस बैकफुट पर ही नजर आई है। यात्रा के दौरान सामाजिक समरसता से दूर रहकर हिन्दुओं को और हिन्दुओं के देवी–देवताओं को सार्वजनिक स्थानों पर भी अपशब्द कहने वाले जार्ज पुन्नैया से गुटरगूं करने पर राहुल गांधी भी और बैकफुट पर चले गए हैं। उधर तय कार्यक्रम के अनुसार ‘भारत जोड़ो यात्रा’ १५० दिनों में १२ राज्यों और दो केंद्र शासित राज्यों से होकर ३५७० किलोमीटर की दूरी तय कर जम्मू–कश्मीर के श्रीनगर में समाप्त होगी। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राहुल गांधी की यह पैदल यात्रा खंडित होगी। या यह भी हो सकता है कि यात्रा पूरी न करते हुए इसे स्थगित कर दिया जाए। इसकी दो प्रमुख वजहें हैं। पहली वजह यह है कि यात्रा के दौरान ही हिमाचल और गुजरात में राज्य विधानसभा के आम चुनाव हैं।
इस चुनावी परीक्षा में राहुल गांधी को अनिवार्यतः समय देना होगा। दूसरी ओर इसी दौरान संसद का शीतकालीन अधिवेशन भी है। कांग्रेस का मुखिया होने के नाते अधिवेशन में इनकी उपस्थिति की अपेक्षा है। तीसरी बात यह है कि यात्रा के दौरान ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इस चुनाव को फिलहाल टालने के संकेत नहीं है। कारण इस चुनाव की प्रक्रिया करीब तीन साल से परिवारवाद की चिंता में सिसक रही है। यह चुनाव नहीं हुआ तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में तो पैदल चलकर निर्धारित समय में यात्रा पूरी करना संभव नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस को गांधी परिवार के गले में बांध कर रखने की कवायद भी इस बार आसान नहीं होगी। हालांकि‚ यह चर्चा है कि गांधी परिवार ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को स्वामिभक्ति के लिए मना लिया है। फिर भी ‘कानी के विवाह में सौ–सौ खतरे’ वाली कहावत मुंह फाडे खडी है। गहलोत के नाम पर राजस्थान सहित कई राज्यों के नेताओं के समीकरणों पर असर पड़ने के आसार हैं।
दूसरी ओर‚ पार्टी में भूचाल आने की सुगबुगाहट को भांप कर कांग्रेस यानी राहुल गांधी के सलाहकारों ने नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के प्रस्तावित राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में रणनीति के तहत अब कोई भी इच्छुक उम्मीदवार अपने पक्ष में प्रचार नहीं करेगा। पार्टी के सभी प्रदेश अध्यक्ष राहुल गांधी के समर्थपन में प्रस्ताव अपने चुनाव अधिकारी को सौंप देंगे। अर्थात पुरानी अवधारणा ‘गांधी परिवार शरणम’‚ ‘सोनिया–राहुल शरणम गच्छामी’ के कर्तव्य पथ पर बने रहने का संदेश पार्टी के पदाधिकारियों को भेजा जाएगा। इसके पक्ष में तर्क दिया जाएगा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राहुल गांधी परिपक्व होकर उभरेंगे और आगामी लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को सत्तारूढ़ कराने में कामयाब होंगे। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
उत्तर–प्रदेश‚ बिहार‚ मध्य प्रदेश‚ महाराष्ट्र‚ गुजरात‚ राजस्थान और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस अनहोनी के मार्ग पर है। पुनश्चः यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि बिहार के नीतीश कुमार ने भावी प्रधामंत्री की तमन्ना लेकर देश भर में भाजपा विरोधी नेताओं से जो मुलाकातें कीं और राहुल गांधी की प्रधानमंत्री की मनोकामना लेकर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ मात्र एक पर्यटन यात्रा है। इसकी एक वजह यह है कि फिलहाल प्रधानमंत्री पद के ये दोनों नेता सशक्त उम्मीदवार बन कर नहीं उभरे हैं। इसके अलावा इनके ही खिलाफ विपक्ष में मतैक्य नहीं है। कहा जा सकता है कि विपक्ष में फिलहाल ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली स्थिति है।