वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने पार्टी के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसे उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा। 5 पन्नों के इस्तीफे में उन्होंने लिखा- दुर्भाग्य से पार्टी में जब राहुल गांधी की एंट्री हुई और जनवरी 2013 में जब आपने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तब उन्होंने पार्टी के सलाहकार तंत्र को पूरी तरह से तबाह कर दिया।
आजाद यहीं नहीं रुके, कहा- राहुल की एंट्री के बाद सभी सीनियर और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और गैरअनुभवी चापलूसों का नया ग्रुप खड़ा हो गया और यही पार्टी को चलाने लगा।
आजाद के इस्तीफे में नेहरू से लेकर राहुल तक का जिक्र; पढ़िए 5 पेज के लेटर को
आदरणीय कांग्रेस अध्यक्ष
मैंने 1970 के मध्य जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस तब जॉइन की, जब इस पार्टी के इतिहास को देखते हुए इससे जुड़ना गलत माना जाता था। इन सबसे प्रभावित हुए बिना, छात्र जीवन से ही मैं आजादी की अलख जगाने वाले गांधी, नेहरू, पटेल, अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस के विचारों से प्रभावित था। संजय गांधी के कहने पर मैंने 1975-76 में जम्मू-कश्मीर यूथ कांग्रस की अध्यक्षता संभाली। कश्मीर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद 1973-75 तक मैं कांग्रेस के ब्लॉक जनरल सेक्रेटरी का जिम्मा भी संभाल रहा था।
1977 के बाद संजय गांधी के नेतृत्व में यूथ कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के पद पर रहते हुए मैं हजारों कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ एक जेल से दूसरी जेल गया। तिहाड़ जेल में मेरा सबसे लंबा समय 20 दिसंबर 1978 से जनवरी 1979 तक था। तब मैंने इंदिरा गांधी जी की गिरफ्तार के खिलाफ जामा मस्जिद से संसद भवन तक विरोध रैली निकाली थी।
हमने जनता पार्टी की व्यवस्था का विरोध किया और उस पार्टी के कायाकल्प का रास्ता बनाया, जिसकी नींव 1978 में इंदिरा गांधी जीन ने रखी थी। 3 साल के महान संघर्ष के बाद 1980 में कांग्रेस पार्टी दोबारा सत्ता में लौटी। संजय गांधी की दुखद मृत्यु के बाद 1980 में मैं यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बना। प्रेसिडेंट रहते हुए मुझे आपके पति राजीव गांधी को यूथ कांग्रेस में नेशनल काउंसिल मेंबर के तौर पर शामिल करने का सौभाग्य मिला। 1981 में कांग्रेस के स्पेशल सेशन के दौरान राजीव गांधी यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। यह भी मेरी ही अध्यक्षता में हुआ।
1982 से इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मैंने केंद्रीय मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। 1980 के मध्य से हर कांग्रेस अध्यक्ष के साथ मुझे पार्टी में महासचिव के तौर पर काम करने का मौका भी मिला। मैं राजीव गांधी के कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनने से लेकर उनकी दुखद हत्या तक सदस्य रहा। इसके बाद नरसिम्हा राव के समय भी ये जिम्मेदारी तब तक संभाली, जब तक अक्टूबर 1992 में उन्होंने इसे पुनर्गठित करने का फैसला नहीं कर लिया।
मैं लगातार 4 दशक तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी का भी सदस्य रहा। 35 साल तक मैं देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी का जनरल सेक्रेटरी इनचार्ज भी रहा। मैं यह बताते हुए खुश हूं कि जिन राज्यों में मैं इनचार्ज रहा, उनमें से 90% में कांग्रेस को जीत मिली।
मैं ये सब इसलिए गिना रहा हूं ताकि इस महान संस्था में दिए गए मेरे योगदान को देख लिया जाए। राज्यसभा में मैंने लीडर ऑफ अपोजिशन के तौर पर 7 साल तक काम किया। मैंने अपनी सेहत और अपने परिवार को दांव पर रखते हुए, अपने जीवन का हर लम्हा कांग्रेस की सेवा में दिया।
बेशक कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर आपने यूपीए-1 और यूपीए-2 के गठन में शानदार काम किया। इस सफलता का सबसे बड़ा कारण यह था कि आपने अध्यक्ष के तौर पर बुद्धिमान सलाहकारों और वरिष्ठ नेताओं के फैसलों पर भरोसा किया, उन्हें ताकत दी और उनका ख्याल रखा।
दुर्भाग्य से राजनीति में राहुल गांधी की एंट्री और खासतौर पर जब आपने जनवरी 2013 में उन्हें उपाध्यक्ष बनाया, तब राहुल ने पार्टी में चली आ रही सलाह के मैकेनिज्म को तबाह कर दिया। सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को साइड लाइन कर दिया गया और गैरअनुभवी चापलूसों का नया ग्रुप बन गया, जो पार्टी चलाने लगा।
सबसे ज्वलंत उदाहरण वह है, जब राहुल गांधी ने सरकार के अध्यादेश को पूरे मीडिया के सामने टुकड़े-टुकड़े कर डाला। कांग्रेस कोर ग्रुप ने ही यह अध्यादेश तैयार किया था। कैबिनेट और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दी थी। इस बचकाना हरकत ने भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के औचित्य को खत्म कर दिया। किसी भी चीज से ज्यादा यह इकलौती हरकत 2014 में यूपीए सरकार की हार की बड़ी वजह थी। इसके चलते राइट विंग और कारोबारी फायदों का एक गठजोड़ हुआ और उसने एक दुष्प्रचार का कैंपेन चलाया।
2014 में आपकी और उसके बाद राहुल गांधी की लीडरशिप में कांग्रेस शर्मनाक तरीके से 2 लोकसभा चुनाव हारी। 2014 से 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से हम 39 चुनाव हार गए। पार्टी ने केवल 4 राज्यों के चुनाव जीते और 6 मौकों पर उसे गठबंधन में शामिल होना पड़ा। अभी कांग्रेस केवल 2 राज्यों में शासन कर रही है और 2 राज्यों में गठबंधन में उसकी भागीदारी मामूली है।
राहुल गांधी ने झुंझलाहट ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया, उससे पहले उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में हर सीनियर नेता का अपमान किया, जिसने पार्टी के लिए अपनी जिंदगी दी, तब आप अंतरिम अध्यक्ष बनीं। पिछले 3 साल से आप यह जिम्मेदारी संभाल रही हैं। अभी भी बुरी बात यह है कि यूपीए सरकार की अखंडता को तबाह करने वाला रिमोट कंट्रोल सिस्टम अब कांग्रेस पर लागू हो रहा है। आप बस नाम के लिए इस पद पर बैठी हैं। सभी जरूरी फैसले राहुल गांधी ले रहे हैं, उससे भी बदतर यह है कि उनके सुरक्षाकर्मी और पीए ये फैसले ले रहे हैं।
दो घंटे में कैंपेन कमेटी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था
आजाद कई दिनों से हाईकमान के फैसलों से नाराज थे। इसी महीने 16 अगस्त को कांग्रेस ने आजाद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। आजाद ने कहा था कि ये मेरा डिमोशन है।
73 साल के आजाद अपनी सियासत के आखिरी पड़ाव पर फिर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाह रहे थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी बजाय 47 साल के विकार रसूल वानी को ये जिम्मेदारी दे दी। वानी गुलाम नबी आजाद के बेहद करीबी हैं। वे बानिहाल से विधायक रह चुके हैं। आजाद को यह फैसला पसंद नहीं आया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व आजाद के करीबी नेताओं को तोड़ रहा है और आजाद इससे खफा हैं।
कांग्रेस हाईकमान से पहले भी खटपट हुई, मामला सुलझ गया
यह पहली बार नहीं है, जब गुलाम नबी आजाद 10 जनपथ यानी सोनिय गांधी के गुड लिस्ट से बाहर हैं। 2008 में जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी उनका कांग्रेस हाईकमान से खटपट हुई थी। हालांकि, 2009 में आध्र प्रदेश कांग्रेस में विवाद के बाद हाईकमान ने आजाद को समस्या सुलझाने की जिम्मेदारी दी। इसके बाद फिर वे गुड लिस्ट में शामिल हुए और केंद्र में मंत्री बने। सूत्रों के मुताबिक, इस बार कांग्रेस हाईकमान से उनका समझौता नहीं हो पाया, इस वजह से उन्होंने इस्तीफा ही दे दिया।
जी-23 ग्रुप का हिस्सा थे गुलाम नबी आजाद
गुलाम नबी आजाद पार्टी से अलग उस जी 23 समूह का भी हिस्सा थे, जो पार्टी में कई बड़े बदलावों की पैरवी करता है। उन तमाम गतिविधियों के बीच इस इस्तीफे ने गुलाम नबी आजाद और उनके कांग्रेस के साथ रिश्तों पर सवाल खड़ा कर दिया है। केंद्र ने इसी साल गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया है।
आजाद का राज्यसभा का कार्यकाल 15 फरवरी 2021 को पूरा हो गया था। उसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि किसी दूसरे राज्य से उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा। आजाद का कार्यकाल खत्म होने वाले दिन उन्हें विदाई देते हुए PM नरेंद्र मोदी भावुक हो गए थे। 2021 में मोदी सरकार ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान दिया था। कांग्रेस के कई नेताओं को यह पंसद नहीं आया। नेताओं ने सुझाव दिया था कि आजाद को यह सम्मान नहीं लेना चाहिए।
अपने बयानों में कई बार किया पार्टी को इशारा
हालांकि सोनिया गांधी गुलाम नबी आजाद को पार्टी में सक्रिय देखना चाहती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से वे पार्टी में घुटन महसूस कर रहे थे। कई मौकों पर अपने बयान में ये बातें इशारों इशारों में बोल चुके थे। उन्होंने तो हताश होकर राजनीति छोड़ने की बात भी एक बार कह डाली थी। चूंकि वे कांग्रेस पार्टी को ही अपनी जिंदगी मानते थे, इसलिए उन्होंने बहुत लंबे समय तक पार्टी के वापस ट्रैक पर आने और सबकुछ सुधर जाने का इंतजार भी किया, लेकिन ये इंतजार करना उनके लिए बेमानी था। अंतत: उनका धैर्य जवाब दे गया और नतीजा, आज पार्टी छोड़ने के रूप में सामने आया।
जब पीएम मोदी ने की थी गुलाब नबी आजाद की तारीफ
पिछले साल फरवरी माह में जब गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से बिदाई हो रही थी, इस मौके पर उनके सम्मान में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में उनके राजनीतिक कार्यकाल की प्रशंसा की थी। अपने भाषण में खुद पीएम मोदी भी कई बार भावुक हुए थे। तब तो ये कयास राजनीति के गलियारों में लगाए जाने लगे थे कि वे कभी भी बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के लिहाज से देखा जाए तो उन्होंने इन सभी कयासों को झुठला दिया और सच्चे कांग्रेसी की तरह पार्टी के लिए काम किया। हालांकि जिस तरह से वे कांग्रेस की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट पिछले कुछ वर्षों में दिख रहे थे, तभी से ये लगने लगा था कि वे कांग्रेस को छोड़ सकते हैं। क्योंकि खुद उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब वो कांग्रेस नहीं रह गई है, जो पहले हुआ करती थी। उन्होंने तो यह भी कह दिया कि ये कांग्रेस अब नहीं बदल सकती। इन बातों को कहने में ऐसे व्यक्ति को पीड़ा होती ही है, जिसने अपना लगभग पूरा जीवन पार्टी के लिए समर्पित कर दिया हो।
गुलाम नबी आजाद का राजनीतिक सफर
1973 में गुलाम नबी आजाद ने भलस्वा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के बतौर राजनीति जीवन की शुरुआत की। इसके बाद उनकी सक्रियता और शैली को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। आजाद ने महाराष्ट्र में वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से 1980 में पहला संसदीय चुनाव लड़ा और विजयी हुए। 1982 में उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया।वर्ष 2005 में आजाद के लिए वह सुनहरा दौर भी आया, जब वे जम्मू कश्मीर के सीएम बने और राज्य की सेवा की। उन्होंने कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली।आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। तब कांग्रेस राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी।
गुलाम नबी आजाद: राजनीतिक जीवन के अहम पड़ाव
- 2008: भद्रवाह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए फिर चुने गए। उन्होंने दया कृष्ण को 29936 मतों के अंतर से हराया।
- 2009: चौथे कार्यकाल के लिए राज्यसभा के लिए चुना गया और बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।
- 2014: राज्यसभा में वे कांग्रेस पार्टी की ओर से विपक्ष के नेता रहे।
- 2015: गुलाम नबी आजाद पांचवीं बार राज्यसभा के लिए फिर से चुने गए।
- 2021:में विदाई के दौरान उनके बारे में चर्चा करके खुद पीएम मोदी भावुक हो गए थे।