बिहार के नवगठित महागठबंधन की सरकार ने विधानसभा में आसानी से विश्वास मत हासिल कर लिया। इस दौरान भाजपा ने सदन से वॉकआउट किया। १६० विधायकों ने विश्वास मत प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जबकि इसके विरु द्ध एक भी वोट नहीं पड़ा। इस तरह सामाजिक न्याय और पुरानी मंडलवादी ताकतें सत्ता में लौट आई हैं। भाजपा के विकल्प के संदर्भ में बात की जाए तो जनता दल (यू) और राजद के महागठबंधन का सामाजिक आधार बहुत मजबूत है। इन दोनों का सामाजिक और वैचारिक आधार एक है और वोट बैंक स्थायी है। अगर आगे चलकर इन दोनों दलों के नेताओं नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच राजनीतिक महत्वाकांक्षा की दीवार खड़ी नहीं होती है तो अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। अलबत्ता किसी भी दल या गठबंधन की कितनी भी मजबूत सरकार क्यों न हो‚ उसके सामने भी चुनौतियां होती हैं। इस लिहाज से महागठबंधन की सरकार भी अपवाद नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पिछला राजनीतिक व्यवहार बहुत ही अस्थिर और आकस्मिक रहा है। एनड़ीए और महागठबंधन के बीच आवाजही से एक वर्ग में इनकी छवि निश्चित रूप से प्रभावित हुई है। इसलिए इस गठबंधन का एकजुट होकर बना रहना सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले महागठबंधन सरकार के कामकाज के तौर तरीकों को देखकर कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के कामकाज के रिश्तों को और अधिक सुचारू बनाना होगा। महागठबंधन की सरकार को समाज के अति पिछड़े‚ कमजोर और सत्ता समीकरण में हाशिए पर रह गए समुदायों के सामाजिक–आर्थिक उत्थान पर विशेष जोर देना होगा। तेजस्वी यादव पार्टी की संरचना और नीति में बदलाव ला रहे हैं। अपने मंत्रियों के लिए नई अचार संगीता बनाई है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए‚ लेकिन कानून–व्यवस्था और रोजगार के मोर्चे पर सरकार की असली अग्निपरीक्षा होगी। तेजस्वी यादव ने दस लाख नौकरी देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री कुमार ने एक कदम आगे बढ़कर १० लाख नौकरी देने के साथ अन्य व्यवस्थाओं से और १० लाख रोजगार सृजित करने की घोषणा की है। महागठबंधन की सरकार इसके लिए क्या योजना बनाती है‚ यह देखने वाली बात होगी।
आप संविधान और लोकतंत्र को समाप्त क्यों करना चाहते है?
बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर वार पलटवार को दौर जारी है। मुद्दों को लगातार सत्ता पक्ष और विपक्ष एक...