स्वदेश निर्मित भारत के पहले विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) ने २८ जुलाई को कोच्चि में भारतीय नौसेना को सौंप दिया। इस पोत को १५ अगस्त को नौसैनिक बेडे में शामिल किए जाने की संभावना है। देश की आजादी की ७५वीं वर्षगांठ पर मिलने वाला यह स्वदेशी पोत हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक ताकत को बढाएगा। आईएनएस विक्रांत के नौसेना में शामिल किए जाने के बाद भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है‚ जिनके पास स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए विमान वाहक पोत बनाने की विशिष्ट क्षमता है। इस उपलब्धि के बाद भारतीय नौसेना दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में शुमार हो गई है। इस तरह स्वदेशी विमान वाहक पोत ने नौसैन्य बल का एक नया समुद्री इतिहास बना दिया है।
स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत के निर्माण की शुरुआत २८ फरवरी‚ २००९ को कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में की गई थी। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे १२ अगस्त‚ २०१३ को लॉन्च किया गया। दिसम्बर‚ २०२० में इसका बेसिन ट्रायल किया गया जिसमें यह खरा उतरा। सामुद्रिक परीक्षणों के लिए इसे ४ अगस्त‚ २०२१को समुद्र की लहरों पर उतारा गया था जो इसके परीक्षण का पहला चरण था। दूसरा चरण अक्टूबर‚ २०२१ और तीसरा चरण २२ जनवरी‚ २०२२ को पूरा हुआ। अंतिम और चौथा समुद्री परीक्षण मई‚ २०२२ में शुरू किया गया जो १० जुलाई‚ २०२२ को पूरा हुआ। चौथे परीक्षण में समुद्र के करीब और दूरी पर रक्षा संबंधी उपकरणों के साथ इसकी रणनीतिक क्षमता को नौसेना द्वारा व्यापक रूप से जांचा–परखा गया। इस भारी–भरकम युद्धपोत के निर्माण में लगभग ७५ प्रतिशत स्वदेशी उपकरणों का प्रयोग किया गया है। आईएनएस विक्रांत भारत का पहला स्टेट–ऑफ–द–आर्ट विमान वाहक पोत है। इसे बनाने में तकरीबन २३००० करोड रुपये की लागत आई है। इसके कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम को टाटा पावर स्ट्रैटेजिक इंजीनियर डिवीजन ने रूस की वैपन एंड इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग और मार्स के साथ मिलकर बनाया है। इसे बनाने में कोचीन शिपयार्ड के साथ–साथ ५५० भारतीय कंपनियों ने मदद की है। इसके निर्माण में १०० एमएसएमई कंपनियां भी शामिल थीं। मेक इन इंडिया का यह बेहतरीन उदाहरण है। इस पर पहले हल्के तेजस लडाकू विमान तैनात किए जाने की बात तय हुई थी परन्तु यह निर्णय इसके कैरियर के हिसाब से भारी हो रहा था। इसके बाद रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने प्लान बनाकर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को दे दिया जिसके तहत वह ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर विकसित कर रहा है। तब तक इस पर मिग–२९ लडाकू विमानों को तैनात किया जाएगा।
आईएनएस विक्रांत का इस्पात नगरी से भी गहरा नाता है। यह सेल के ध्वजवाहक भिलाई इस्पात संयंत्र के फौलाद से बना है। इस संयंत्र ने युद्धपोत के लिए विशेष क्वालिटी की प्लेट आपूर्ति की है। पूर्व में ये प्लेटें रूस से मंगाई जाती रही हैं। उल्लेखनीय है कि यह संयंत्र एंटी सबमरीन युद्धपोत‚ आईएनएस किलतान युद्धपोत‚ आईएनएस कमोर्ता युद्धपोत एवं आईएनएस कदमत युद्धपोत के लिए भी मजबूत प्लेटों की आपूर्ति कर चुका है। इस विमान वाहक पोत की फ्लाइट डेक काफी बडी अर्थात १.१० लाख वर्ग फुट एरिया वाली है‚ जिस पर से बडी संख्या में लडाकू विमान आराम से टेक–ऑफ व लैंडिंग कर सकते हैं। इस पर एक बार में ३६ से लेकर ४० की संख्या में लडाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं। इस पर २६ मिग–२९ के और १० लडाकू विमानों में कामोव केए–३१‚ वेस्टलैंड़ सी किंग या बहुउद्देशीय भूमिका वाले ध्रुव हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं। इस विमान वाहक पोत की स्ट्राइक फोर्स की रेंज १५०० किमी. तक है। इस पर जमीन से हवा में मार करने में सक्षम ६४ बराक मिसाइलें लगी होंगी। आईएनएस विक्रांत में जनरल इले्ट्रिरक के ताकतवर टरबाइन लगे हैं‚ जो इसको १.१० लाख हॉर्स पावर की ताकत देंगे। इस तरह यह काफी ताकत वाला विमान वाहक पोत है।
इस युद्धपोत को सर्वश्रेठ ऑटोमेटेड मशीनों‚ ऑपरेशन‚ शिप नेविगेशन एवं सुरक्षा प्रणलियों से लैस किया गया है। इसकी लंबाई ८६० फुट‚ इसकी बीम २०३ फुट‚ गहराई ८४ फुट ओर चौडाई २०३ फुट है। इस पोत का कुल क्षेत्रफल २.५ एकड है। यह ५२ किमी. प्रति घंटे की गति से समुद्र की लहरों को चीरता हुआ तेजी से बढने की क्षमता रखता है। समुद्र में निकलने पर यह एक बार में १५००० किमी. की यात्रा कर सकता है। इसमें एक बार में १९६ नौसेना अधिकारी‚ ११४९ सेलर्स व एयरक्रू तैनात रह सकते हैं। इसमें चार आटोब्रेडा ७६ मिमी. की ड्यूल पर्पज कैनन तथा चार एके–६३० प्वाइंट डिफेंस सिस्टम गन लगी होंगी। इन खूबियों वाला यह पोत हिंद महासागर में चीन की बढती गतिविधियों के मद्देनजर भारतीय नौसेना की ताकत काफी बढा देगा।