भारत को १५वें राष्ट्रपति का इंतजार है‚ और इसी के साथ नागरिकों में यह जिज्ञासा भी है कि राष्ट्रपति के कार्य क्या हैं‚ उनके पास क्या शक्तियां हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद ५२ में भारत में राष्ट्रपति पद की व्यवस्था है। देश की शासन व्यवस्था में राष्ट्रपति सर्वोच्च संवैधानिक पद है‚ और वह सशस्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांड़र होते हैं। अनुच्छेद ५३ के तहत व्यवस्था है कि उनके पदभार ग्रहण करने के दिन से पांच वर्ष की अवधि के दौरान संघ की समूची कार्यकारी शक्ति उनके नाम और मुहर से संचालित होगी।
हालांकि राष्ट्रपति का लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव नहीं होता लेकिन देश भर के जनप्रतिनिधि उनका चुनाव करते हैं। संविधान के अनुच्छेद ५४ में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया का उल्लेख है। इलेक्टरल कॉलेज में संसद के दोनों सदनों के सदस्य और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य शामिल होते हैं। राज्य सभा और राज्यों की विधानसभाओं में नामित सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में वोट करने का अधिकार नहीं होता। प्रधानमंत्री‚ केंद्र सरकार के मंत्रियों‚ भारत के प्रधान न्यायाधीश‚ भारत के अटॉर्नी जनरल‚ कंट्रोलर एंड़ ऑडि़टर जनरल ऑफ इंडि़या‚ राज्यों के राज्यपालों और मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक और अन्य संवैधानिक पदों पर नियुक्त करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास निहित है। संविधान के अनुच्छेद ७४ में प्रावधान है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंड़ल की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं‚ लेकिन वे सरकार के किसी भी प्रस्ताव‚ यदि उन्हें लगे कि देश और जनता के हित में उस पर पुनर्विचार होना चाहिए या कुछ संशोधन होना चाहिए‚ को वापस मंत्रिमंड़ल के पास फिर से विचार करने के लिए लौटा सकते हैं। अलबत्ता‚ इस शक्ति का उपयोग एक बार ही किया जा सकता है। यदि सरकार फिर से उसी प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज देती है‚ तो राष्ट्रपति को उसे मंजूरी देनी होगी। प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की व्यवस्था भारत के संविधान में १९७६ में किए ४४वें संशोधन के जरिए की गई थी।
दरअसल‚ तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर २६ जून‚ १९७५ को देश में आपातकाल की घोषणा नहीं करना चाहते थे‚ लेकिन किसी प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंड़ल को लौटाने संबंधी कोई प्रावधान के न होने से ऐसा नहीं कर सके। आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के अलावा उनके समक्ष कोई विकल्प नहीं था। ४४वें संशोधन के माध्यम से यह व्यवस्था भी हो सकी कि मंत्रिमंड़ल की कोईसलाह लिखित में राष्ट्रपति को प्रेषित करनी होगी और यह भी बताना होगा कि मंत्रिमंड़ल ने सर्वसम्मति से यह सलाह या प्रस्ताव भेजा है। इस प्रस्ताव या सलाह को लेकर मंत्रिमंड़ल में कोई असंतोष है‚ तो उसे भी राष्ट्रपति को लिखित में प्रेषित किया जाना चाहिए। ध्यान दिलाया जाना आवश्यक है कि राष्ट्रपति की शक्ति इस पर निर्भर करती है कि राष्ट्रपति संविधान प्रदत्त अपने अधिकार का उपयोग करने को कितने तत्पर और इच्छुक हैं। अधिकार के उपयोग से यह मतलब नहीं है कि सरकार के साथ टकराव किया जाए या शासन के उन तौर–तरीकों को बाधित या अवरुद्ध किया जाए जो भारत जैसे गणतंत्र में निर्वाचित सरकार के लोकतांत्रिक दायित्व के निर्वहन में आवश्यक हैं‚ उन्हें सहज बनाते हों। निर्वाचित सरकार संसद के माध्यम से लोगों के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार है।
पूर्व राष्ट्रपतियों के कार्यकाल को देखें तो ड़ॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे राष्ट्रपति थे‚ जिनका नाम भाजपा–नीत एनड़ीए ने राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में रखा था‚ लेकिन दोनों प्रमुख गठबंधनों–यूपीए और एनड़ीए–और अन्य पार्टियों ने एक राय होकर समर्थन दिया था। केवल कम्युनिस्ट पार्टियां ही इस कवायद से दूर रहीं। राष्ट्रपति के रूप में ड़ॉ. कलाम ने दोनों गठबंधनों की सरकारों–अटल बिहारी वाजपेयी–नीत एनड़ीए सरकार (२००२–२००४) और ड़ॉ. मनमोहन सिंह–नीत यूपीए सरकार (२००४–२००७)–के कार्यकाल के दौरान दायित्व का निर्वहन किया। उन्होंने तटस्थ राष्ट्रपति के रूप में अपने दायित्व निभाया। इससे वे अधिकांश भारतीयों के लिए आदर्श के रूप में स्थापित हुए। राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद १११ के तहत सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त है‚ वह यह कि संसद द्वारा पारित प्रस्ताव को वे मंजूरी देते हैं। कोई प्रस्ताव के आने पर राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं–ए) प्रस्ताव/विधेयक पर हस्ताक्षर कर दें‚ बी) इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दें‚ और सी) विधेयक पर पुनर्विचार के लिएइसे वापस संसद के पास भेज दें। लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है। संसद ने २००६ में प्रिवेंशन ऑफ डि़स्कवालिफिकेशन (अमेंड़मेंट बिल) पिारत किया जो ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बिल’ के नाम से जाना जाता है‚ जो राष्ट्रपति ड़ॉ. कलाम के पास मंजूरी के लिएभेजा गया। इसे मंजूरी देने से पूर्व उन्होंने कानूनी विशेषज्ञों और जानकार लोगों से चर्चा की। वैधानिक सलाह मिलने के उपरांत उन्होंने इसे संसद के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया। लेकिन यूपीए सरकार ने इसमें कोई संशोधन किए बिना इसे फिर से राष्ट्रपति के पास भेजना उचित समझा। चूंकि संसद के दोनों सदनों ने इसे फिर से पारित कर दिया था‚ तो राष्ट्रपति के पास इसे मंजूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन ड़ॉ. कलाम द्वारा इस विधेयक को लौटाने का बड़़ा मतलब था। बाद में काफी कुछ हुआ और परिणामस्वरूप यह विधेयक बनिस्बत कहीं ज्यादा संतुलनकारी कानून बना।
इस प्रकार भारत में राष्ट्रपति का पद बेहद महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है‚ और राष्ट्रपति के पास पर्याप्त अधिकार हैं‚ ताकि संविधान की संरक्षा‚ संरक्षण और बचाव कर सकें। राष्ट्रपति सत्ताधारी सरकार का संवैधानिक मूल्यों की अनुपालना में मार्गदर्शन कर सकते हैं। विधायिका‚ न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अधिकारों संबंधी टकराव टालना सुनिश्चित कर सकते हैं। भारत जैसे बड़े़ लोकतांत्रिक देश के हित में है कि राज्य के मुखिया के रूप में ऐसे व्यक्ति का चुनाव हो जो केंद्र और राज्यों के शासन में संतुलन को बनाए रख सके। मात्र दिखावटी न हो‚ मूकदर्शक न हो‚ अपने दायित्व निवर्हन में कुशल हो।