नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू की घोषणा भारतीय राजनीति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में मुर्मू की जीत होती है‚ तो राष्ट्रपति पद पर पहली बार कोई दलित और उसमें भी महिला आसीन होंगी। महिला के रूप में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी राष्ट्रपति रही हैं‚ लेकिन वह सवर्ण जाति से थीं। विरोधी खेमे की ओर से यशवंत सिन्हा राजनीति और शासन के अनुभवी उम्मीदवार हैं। भाजपा के नेतृत्व में राजग ने पिछली बार रामनाथ कोविंद के रूप में दलित को राष्ट्रपति पद पर आसीन कराया था। इस तरह देखें तो मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय और सामाजिक अभियांत्रिकी की दृष्टि से इतिहास रच दिया है। पिछली बार कोविंद के विजित होने के बाद आम विश्लेषकों का मत था कि यह दलित वोटों के सुदृढ़ीकरण का कदम है। निश्चित रूप से इस बार इसे आदिवासी वोटों के लिए उठाया गया कदम भी विरोधी बता सकते हैं। राजनीति में वोट प्राप्त करने का लक्ष्य बुरा नहीं है। भारत का दुर्भाग्य है कि यहां जातीय गोलबंदी या समीकरण राजनीति में मूलतः वोटों की दृष्टि से ही बनाए और बिगाड़े जाते हैं। किंतु राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में मुर्मू के चयन को इस परिधि में सीमित करना ठीक नहीं होगा। पहले दलित‚ इस बार आदिवासी और उसमें भी महिला राष्ट्रपति बनती हैं तो इसका संदेश सामाजिक समरसता की दृष्टि से ही नहीं‚ भारत और संपूर्ण विश्व में बहुआयामी होगा। संसद और विधानसभाओं के साथ राज्य एवं केंद्र की सरकारी सेवाओं में दलितों और आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण उपलब्ध है। बावजूद सामाजिक न्याय के नाम पर क्रांतिकारी योद्धा बने लोग भारत में दलितों और आदिवासियों के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार का आरोप लगाते रहते हैं। इनके नाम पर राजनीति ही नहीं होती‚ सामाजिक परिवर्तन‚ सामाजिक सुधार आदि के नाम पर हजारों एनजीओ चलते हैं। कोविंद के बाद मुर्मू जीतती हैं‚ जिसकी संभावना है‚ तो बिना कहे पूरी दुनिया में संदेश जाएगा कि भारत में जब शीर्ष पद पर इन वर्गों के लोग बैठ सकते हैं‚ तो वहां सामाजिक अन्याय कैसे हो सकता है। मुर्मू का राजनीतिक अनुभव और जनप्रतिनिधि से लेकर राज्यपाल के रूप में व्यवहार कभी ऐसा नहीं रहा जिसे गरिमा के विपरीत माना जाए। इस दृष्टि से देखें तो मोदी सरकार या भाजपा का अंतिम नाम पर मोहर लगाना सही दिशा में उठाया गया कदम लगेगा।
भाजपा नेताओं के साथ BJP के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने सुनी ‘मन की बात’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात की। इस दौरान साल 1975 में देश में इंदिरा सरकार द्वारा...