रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कमजोर होकर ७७ रह गई है। इससे पहले रुपये का सबसे निचला स्तर १६ अप्रैल‚ २०२० को दर्ज किया गया था। उस समय रुपया डॉलर के मुकाबले ७६.८७ पर बंद हुआ था। सिर्फ एक दिन में यानी ७ मार्च को रुपया डॉलर के मुकाबले १.१ प्रतिशत कमतर हुआ जबकि विगत दिनों यह ३.४२ प्रतिशत कमतर हुआ था। उल्लेखनीय है कि एशिया की करंसियों में रुपये में सबसे अधिक कमजोरी देखी गई है।
चालू खाता‚ निर्यात और आयात के कारण विदेशी मुद्रा के निवल अंतर को दर्शाता है। यदि यह अंतर नकारात्मक होता है तो इसे चालू खाता का घाटा या कैड कहते हैं‚ और सकारात्मक होने पर इसे चालू खाता का सरप्लस कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा ९.६ अरब डॉलर था‚ जो जीडीपी का १.३ प्रतिशत है‚ जबकि जून तिमाही में यह ६.६ अरब डॉलर सरप्लस था‚ जो जीडीपी का ०.९ प्रतिशत था। वहीं‚ पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा १५.३ अरब डॉलर सरप्लस था‚ जो जीडीपी का २.४ प्रतिशत था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत के उच्चतम स्तर पर पहुंचने‚ अमेरिकी डॉलर सूचकांक में बढ़ोतरी और भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा लगातार की जा रही निकासी से रुपये की हालत पतली होती जा रही है। डिपॉजिटरी आंकड़ों के अनुसार एफपीआई ने मार्च के पहले सप्ताह के ३ कारोबारी सत्रों में भारतीय शेयर बाजार से १७५३७ करोड़ रु पये की निकासी की है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद एफपीआई प्रति दिन ४५०० करोड़ की बिकवाली कर रहे हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से प्रोत्साहन पैकेज वापस लेने के बाद से भारतीय शेयर बाजार से एफपीआई द्वारा की जा रही बिकवाली में तेजी देखी गई है। कच्चे तेल की कीमत वर्ष २००८ के बाद पहली बार ७ मार्च‚ २०२२ को १३९ डॉलर प्रति बैरल हुई थी। जानकारों के मुताबिक कच्चे तेल की कीमत यूं ही आसमान को छूती रही तो रु पया और भी कमजोर होकर डॉलर के मुकाबले ८० के स्तर पर पहुंच सकता है। हालांकि‚ रिजर्व बैंक रुपये के अवमूल्यन को रोकने के लिए पिछले १० से १२ कारोबारी सत्रों से मुद्रा के कारोबार में हस्तक्षेप कर रहा है और इसी वजह से रुपया डॉलर के मुकाबले स्थिर बना हुआ है। हालांकि‚ जानकारों का मानना है कि रुपये में आ रही कमजोरी को जल्दबाजी में रोकने की कोशिश केंद्रीय बैंक को नहीं करनी चाहिए। नीतिगत दरों में बढ़ोतरी से महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सकती है‚ लेकिन इससे निवेश‚ ऋण वृद्धि‚ रोजगार सृजन आदि में कमी आ सकती है‚ जो विकास की गति को तेज करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक को लिए गए निर्णय के गुण–दोष का आकलन करने के बाद ही मामले में कोई निर्णय लेना चाहिए।
भारत अपनी जरूरत के ८५ प्रतिशत कच्चे तेल का आयात दूसरे देशों से करता है और ईरान को छोड़कर दूसरे सभी देश कच्चे तेल का निर्यात डॉलर में करते हैं। ईरान कच्चे तेल का निर्यात भारत को रुपये में करता है‚ लेकिन अमेरिकी दबाव की वजह से भारत पहले से ही ईरान से कच्चे तेल का आयात सीमित मात्रा में कर रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन होने से कच्चे तेल के आयात के लिए ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं‚ जिससे इधन‚ पेट्रोलियम उत्पाद और अन्य जिंसों की कीमत में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई है। इससे वाहन‚ विमानन‚ पेंट कारोबार आदि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ऐसी कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट दर्ज की गई है। कुछ जिंसों की कीमत में तेजी से भी कुछ कंपनियों के शेयर में वृद्धि देखी गई है। बेंचमार्क सेंसेक्स ७ मार्च‚ २०२२ को १‚४९१ अंक या ३.७४ प्रतिशत लुढ़ककर ५२‚८२४ पर बंद हुआ‚ जो ३० जुलाई के बाद इसका सबसे निचला स्तर था। अक्टूबर‚ २०२१ में ६१‚७६६ के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद सेंसेक्स में १४.४ प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इस साल इसमें ७ मार्च‚ २०२२ तक ९.३ प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। हालांकि‚ इस अवधि में निफ्टी ३८२ अंक या २.३ प्रतिशत लुढ़क कर १५‚८६३ पर बंद हुआ। निफ्टी में कम गिरावट का कारण ओएनजीसी‚ हिंडाल्को और कोल इंडिया के शेयरों में तेजी रहना है। एक अनुमान के अनुसार चुनाव परिणाम आने के बाद डीजल और पेट्रोल की कीमत में २५ से ३० रुûपये तक की वृद्धि हो सकती है क्योंकि सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए हमेशा पेट्रोल एवं डीजल पर वैट और उत्पाद शुल्क ज्यादा आरोपित करती है।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार पिछले ३ वित्त वर्षों में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाकर ८.०२ लाख करोड़ रु पये की कमाई की है। वहीं‚ सिर्फ वित्त वर्ष २०२०–२१ में केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीजल पर कर आरोपित करके ३.७२ लाख करोड़ के राजस्व की प्राप्ति हुई थी‚ जो वित्त वर्ष २०१९–२० से दोगुनी से भी अधिक थी। वित्त वर्ष २०१९–२० में पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए टैक्स से सरकार को १.७८ लाख करोड़ रु पये की कमाई हुई थी। वर्ष १९६० से भारत में कच्चे तेल की खपत में तेजी आने लगी क्योंकि विकास के विविध मानकों को गतिशील रखने के लिए देश में ज्यादा कच्चे तेल की जरूरत थी। वर्ष १९६५ तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की कीमत को पाउंड में मापा जाता था‚ जबकि वर्ष १९६६ से अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये को डॉलर के बरक्स मापा जाने लगा। वर्ष १९६६ में १ डॉलर की कीमत ७.५ रुपये थी‚ जो अब ८० पहुंचने के कगार पर है।
रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत औसतन १३० डॉलर बैरल बनी रहती है‚ तो भारत का चालू खाते का घाटा वित्त वर्ष २०२३ में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का ३.२ प्रतिशत रह सकता है। वैसे‚ मौजूदा परिदृश्य में कच्चे तेल की कीमत के १५० से २०० डॉलर प्रति बैरल पहुंच सकती है। अस्तु‚ इस मद में ज्यादा घाटा होने की संभावना बनी हुई है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए उसकी करंसी की कीमत का कम होना अच्छा नहीं माना जाता है‚ इससे देश की विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। महंगाई बढ़ने से आम जनता के लिए जीना मुहाल हो जाता है। हालांकि‚ वैसे भारतीय जो अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा विदेशों से भारत भेजते हैं‚ उन्हें मौजूदा स्थिति से फायदा हो सकता है।