भारत–चीन संबंधों में बढ़ती जा रही आंच को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस किया जाने लगा है। इस बात का अंदाजा अमेरिका के एक शीर्ष रक्षा अधिकारी के उस बयान से लगाया जा सकता है जो उन्होंने हिंद–प्रशांत को लेकर अमेरिकी कांग्रेस की सुनवाई के दौरान सांसदों के बीच दिया। इस बयान में उन्होंने जो कहा उसकी उपेक्षा भारत में किसी विपक्षी नेता के बयान के तौर पर नहीं की जा सकती। उन्होंने दो टूक कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच वर्तमान समय में तनाव चार दशकों में ‘सबसे खराब’ स्तर पर है। अमेरिका की हिंद–प्रशांत कमान के एड़मिरल जॉन एक्विलिनो का यह बयान तब आया है जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सैनिकों के बीच हुई झड़़प के बाद २२ महीनों से चल रहे गतिरोध का हल निकालने के लिए १५वें दौर की उच्चस्तरीय वार्ता चल रही है। अक्टूबर‚ २०२१ में चीनी संसद ने भूमि सीमा कानून पारित किया था जिसमें ‘पवित्र और अलंघनीय’ संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंड़ता के नाम पर सीमा सुरक्षा में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की वृहद भूमिका मंजूर की थी। तब से पहले ही से खिंचाव में चल रहे भारत–चीन संबंधों में तनाव बढा हुआ है। हिंद–प्रशांत सुरक्षा मामलों के सहायक रक्षा मंत्री एली रटनेर के अनुसार भारत–चीन सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के घटनाक्रम पर अमेरिका करीबी नजर रख रहा है। चीन के साथ संबंधों में खिंचाव को विदेश मंत्री एस जयशंकर क्वाड़ की बैठकों में स्वीकार कर चुके हैं। चीन अमेरिका तक मार करने में सक्षम मिसाइलें बनाकर वैश्विक सैन्य शक्ति बनना चाहता है और ताइवान पर कब्जा जमाने की क्षमता हासिल करना चाहता है। ताइवान का कहना है कि यदि चीन के साथ कोई संघर्ष होता है‚ तो यह सभी पक्षों के लिए विनाशकारी होगा‚ भले ही परिणाम कुछ भी हो। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से यह आशंका पैदा हो गई है कि चीन भी ताइवान पर जरूरत पड़़ने पर बल प्रयोग करके कब्जा कर सकता है। भारत के साथ भी उसकी उकसावे की हरकतें चरम पर हैं। चूंकि इस बात को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्वीकार किया जाने लगा है तो भारत को विशेष सतर्क हो जाना चाहिए। इसे केवल सत्तारूढ़ पार्टी की ही जिम्मेदारी न मानते हुए विपक्ष से भी विचार विमर्श करके रणनीति बनाई जानी चाहिए ताकि पूरा देश एकजुट होकर चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला कर सके।