8 मार्च को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के रूप में मनाए जाने की परंपरा को जारी हैं। पहले तो नहीं‚ परन्तु अब जब यह सोचता हूं तो मुझे ताज्जुब होता है कि ३६५ दिनों में सिर्फ १ दिन ही महिलाओं के नाम क्योंॽ क्या एक दिन ही उनका गुणगान किया जाए और बाकी दिनों के लिए उन्हें टारगेट किया जाए! जयंती या उत्सव के लिए यह बात समझ में आती है कि ऐसा साल में एकबार ही होता है‚ किन्तु महिला तो मां‚ बहन‚ बेटी‚ अथवा पत्नी के रूप में व्यक्तिगत व ख्यात होकर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आदर्श स्थिति में होती है। इनका सम्मान तो वर्ष भर किया जाना चाहिए।
‘जेंडर इक्वलिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टूमारो’ यानी एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता की थीम लिए मेरी ओर से विश्व के सभी को नारी शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की सस्नेह शुभकामनाएं!
आज सम्पूर्ण विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है । हर वर्ष एक विशेष सोच के साथ इसे मनाया जाता है । इस वर्ष लैंगिक समानता पर जोर दिया गया है । हलाकि मैं कभी भी पाश्चात्य सभ्यता के अधीन खुद को समाहित करके नही रख सकी । किन्तु अपने लिए नही औरों के लिए यह आवश्यक है ।
2021 के लिए इस बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की थीम ‘Gender equality today for a sustainable tomorrow” यानी एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता है। लैंगिक समानता का अर्थ समाज में महिला तथा पुरुष के समान अधिकार, दायित्व तथा रोजगार हैं। देश के विकास के लिए लैंगिक समानता सबसे आवश्यक है। इससे समाज में भेदभाव को खत्म किया जा सकता है। सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक – आर्थिक समते महिलाओं की हर क्षेत्र में भागीदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर वर्ष आज 8 मार्च को मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का हैशटैग #BreakTheBias के साथ इस साल का थीम महिलाओं की हर क्षेत्र में समानता से स्थायी भविष्य के निर्माण पर केंद्रित है, जिसमें कार्यस्थल भी शामिल हैं।
वैसे तो मैं अपनी व्यक्तिगत बात करु तो किसी भी डे सेलब्रेशन जो आत्मीय सम्बन्धों के आधार पर पश्चिम सभ्यता के घोतक है उनके समर्थन में नहीं हु जैसे मदरडे,फ़ादरडे, फ़्रेंड्शिप डे , वैलेंटाइन डे वैगरह वैगरह । क्योंकि मैं समझती हूं किसी को सम्मान देने के लिए किसी को प्रेम देने के लिए किसी एक खास दिन की आवश्यकता नही होती है । अगर हम उन्हें अपना स्नेह , अपना प्यार या फिर मान सम्मान देने हो तो सम्पूर्ण वर्ष भी नही बल्कि पूर्ण जीवन भर एक समान दें । यह एक दिन देकर या फिर कोई एक दिन के लिए क्यो सीमित रख दे । क्यों हमारे मन में साल में एक दिन महिला के प्रति या अपनी माता पिता के प्रति इतना प्यार उमड़ आता है ? हलाकि ऐसा भी नही है कि हम सब एक दिन मना कर फिर भूल जाते । किन्तु यह जज्बा नही दिखता वर्ष भर जो एक दिन दिखता है । हमे सम्पूर्ण वर्ष इस जज्बे को कायम रखना होगा , हम सम्मान करते है तो वह सम्मान एक दिन नही बल्कि अपने जीवन काल तक बरकरार रखने का प्रयत्न करना होगा । यह कोई त्योहार नही है ना ही कोई पर्व है यह दिन किसी के प्रति अपन्त्व को अपनी अंतरात्मा की वास्तविक स्थिति में स्थापित करने का पल होता है । अगर सचमुच ऐसा हो जाय तो विश्व का कल्याण हो जाएगा ।
हलाकि आज का दिन एक तरह से उन महिलाओं के नाम समर्पित होना चाहिए जो अपने फर्ज को अपने कर्त्तव्य को दृढ़ता पूर्वक निभाया है या उसे कार्यान्वित किया है । वास्तविकता में आज के दिन का मुख्य उद्देश्य भी यही था । आज भी विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
सबसे पहला दिवस, न्यूयॉर्क शहर में 1909 में अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर आयोजित किया गया था। जो एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम था । 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया और फरवरी माह के आखरी रविवार को मनाया जाने लगा । सबसे महत्वपूर्ण वर्ष रहा 1917 के 23 फरवरी को, जब रूस की महिलाओं ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अन्न वं वस्त्र के लिए हड़ताल पर चली गई । उस वक्त रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर । वह दिन ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार आज का दिन यानी 8 मार्च था । कई देशों ने आज के दिन छुटियाँ घोषित कर दी जो अब तक बरकरार है । हलाकि सँयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे 1975 में आधिकारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता दी और 1996 में यह तय किया कि प्रतेक वर्ष एक विशेष विषय यानी थीम को लेकर इसे मनाया जाएगा । पहले वर्ष की थीम थी “अतीत का जश्न, भविष्य के लिए योजना”
भारतीय संस्कृति की कुछ ऐसी स्त्रियां जो पत्नी या मातृशक्ति के रूप में पूजनीय है वो सदियों से सदियों तक एक समान भाव से इस सृष्टि में विद्यमान रहेगी । माता पार्वती , ब्रह्मवादिनी वेदज्ञ ऋषि गार्गी , माँ कत्यायनी की माता श्री ब्रह्मवादिनी वेदज्ञ ऋषि मैत्रेयी , माता कौशल्या , माता देवकी – यशोदा , माता सीता , माता शबरी , गांधारी , कुंती , द्रौपदी , अरुंधति जैसी कई माताओं के प्रताप से भारत भूमि आज पूजनीय है ।
इसी प्रकार भारत वर्ष में आध्यात्मिक एवम भौतिक उन्नति के लिए सम्पूर्ण शक्ति अर्पित करने की पूरी क्षमता माताओं में ही है जैसे माँ दुर्गा , माता पार्वती , माता लक्ष्मी , माता सरस्वती , माता अदिति , माता शतरूपा , माता गायत्री , माता शची , श्रद्धा और सावित्री । आदिशक्ति माता दुर्गा के स्वयं के 9 स्वरूप के साथ दस महाविद्याओं में भी माता का ही अंश है ।
भारत की कुछ ऐसी वीरांगनाएं जिन्होंने भारत की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान ही नही दिया बल्कि जान भी कुर्बान करने से नही हिचकी थी ।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा,झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, ऐनी बेसेंट, भीकाजी कामा, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, अरुणा आसफ अली , डॉ लक्ष्मी सहगल , दुर्गाभाभी , झलकारी देवी , कनकलता बरुआ सहित अनगिनत महिलाओं ने अपने जज्बे से देश को गौरवांवित किया ।
इसी प्रकार भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका भी कम अनुकरणीय नही रही है । हमारे देश में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री , वित्त मंत्री , मुख्यमंत्री, लोकसभा में विपक्ष की नेता और लोकसभा अध्यक्ष के अलावा कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर आसीन रही हैं , इसके अलावा अंतराष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक हर क्षेत्र में इनकी भूमिका को कमतर करके नही देखा जा सकता है । सेना से लेकर सिनेमा तक, अंतरिक्ष से लेकर खेल के मैदान तक , ऑटो से लेकर फाइटर जहाज तक , कला से लेकर व्यपार तक , कलम की ताकत से लेकर वाक- संवाद तक , गाँव की चहारदीवारी से लेकर सँयुक्त राष्ट्र तक , जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कोई ऐसा क्षेत्र नही जहाँ भारतीय महिलाओं ने अपनी कौशल का जलवा न बिखेरा हो ।
आज हमें गर्व है कि हम भारत की स्त्रियां इतनी समर्थवान बन चुकी है और नित्यप्रति आगे बढ़ रही है । वह दिन भी आएगा जब लिंग भेद का अंतर सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा । एक विकसित भारत एक विराट भारत का निर्माण होगा ।
जय माँ भारती
लेखक – अर्चना रॉय भट्ट