भारत स्त्रीशक्ति को प्रधानता देने वाले देशों में अग्रणी है। कालांतर में मुगल‚ पाश्चात्य और सामी (सेमेटिक) विचारों के दुष्प्रभावों के चलते महिला स्वाभिमान‚ स्वावलंबन और स्त्री की सामाजिक गरिमा का ह्रास हुआ। फिर भी हमारे पास ऐसी नायिकाओं की बहुलता है‚ जिन्होंने देश और समाज को दिशा दिखाने का काम किया है। हमारे पास ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है‚ जबकि सामी विचारों से प्रभावित देशों में महिलाओं को मूल अधिकार भी बड़ी मुश्किल से मिलते थे। आजादी के बाद भारत में सेमेटिक चिंतन से प्रभावित सरकारों ने भारत की इस शक्ति को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया।
प्राचीन भारत में गोंड रानी दुर्गावती जिन्होंने अकबर के खिलाफ युद्ध किया‚ इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर जिन्होंने काशी विश्वनाथ और सोमनाथ सहित तमाम मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया और सफलतापूर्वक शासन किया। कित्तूर की रानी चेनम्मा और रानी जयराज कुमारी हंसवर का नाम भी मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ने वाली विरांगनाओं में मिलता है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनकी सेना की वीरांगना वाहिनी की सेनापति झलकारी बाई का नाम अंग्रेजों से लोहा लेने वालों में प्रमुख है। अवंतीबाई लोधी और उदादेवी पासी भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। मैत्रेयी‚ गार्गी और अनुसूया जैसी विदुषी महिलाओं का नाम भी सम्मान के क्रम में लिया जाता है। सावित्री बाई फुले‚ रमाबाई भी प्रमुख नाम हैं। ऐसे न जाने कितने अनिगनत उदाहरण भरे पड़े हैं‚ जबकि इसके उलट पाश्चात्य देशों में शासन और सुधार की बात तो छोड़ ही दीजिए वोटिंग और पूजा के अधिकार से भी महिलाएं वंचित ही रहीं‚ जबकि भारतीय दर्शन के प्रचारक स्वामी विवेकानंद का स्पष्ट मानना था कि ‘एक व्यक्ति को पढ़ाओगे‚ तो एक व्यक्ति ही शिक्षित होगा‚ लेकिन एक स्त्री को पढ़ाओगे‚ तो पूरा परिवार शिक्षित होगा।’
देश की आजादी के बाद सामी विचारों के प्रभाव में रहने के कारण सरकारों ने भी महिलाओं की स्थिति के संबंध में बहुत धीमी गति से काम किए‚ जिसके परिणामस्वरूप अनिगनत सामाजिक कुरीतियों का सृजन हुआ। हालांकि भारतीय सामाजिक दृष्टि के प्रभाव के कारण समय–समय पर सामाजिक चेतना में बदलाव होते रहने पर भारत में इसका दुष्प्रभाव बहुत अधिक नहीं हुआ। सरकारों ने दबाव में ही कुछ–न–कुछ ऐसे प्रयत्न किए‚ जिससे यह दिखे की सरकार सशक्तिकरण को लेकर गंभीर है। २०१४ के बाद की इस दिशा में वास्तविकता के साथ धरातल पर क्रियान्वयन की गति बढ़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय विचारों को महत्व दिया‚ जिसका परिणाम आज सामने है। स्वाभिमान को खो चुकी भारतीय महिला अस्मिता में चेतना आई। सामाजिक और आर्थिक बदलावों को लेकर शुरू की गई योजनाओं ने महिला को घर की मालकिन की भूमिका देने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र में सत्ता संभालने के साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए। वर्ष २०१७ में महिला शक्ति केंद्र योजना शुरू की गई।
इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को सामाजिक भागीदारी के माध्यम से सशक्त करना था‚ जिसमें आर्थिक आत्मंनिर्भरता भी शामिल है। स्व रोजगार के लिए चलाई जा रही ‘मुद्रा लोन’ योजना के ७५ प्रतिशत ऋण महिलाओं को दिए गए। देश में ‘सिलाई मशीन’ योजना वर्ष २०२१ में शुरू की गई। इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को स्वनरोजगार के लिए प्रेरित करते हुए उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करना था। सुदूर ग्रामीण व वन्य क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं भी मोदी सरकार की योजनाओं से लाभान्वित हुइ। विकासशील देशों में लिंगानुपात में महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्रीम अमर्त्य सेन ने ‘मिसिंग वीमेन’ शब्दों का प्रयोग किया था‚ लेकिन बेटियों के शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्ति होने से देश में ‘मिसिंग वीमेन’ मिल गइ। प्रति हजार पुरु षों के मुकाबले महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई। नेशनल फैमिली एंड हेल्थस सर्वे ५ के मुताबिक देश में महिलाओं की संख्या १००० पुरु षों के मुकाबले १०२० हो गई है। ऐसा पहली बार हुआ और यह महिलाओं के सशक्ति करने के मोदी सरकार के समर्पित प्रयास के कारण ही हुआ है। लोगों को यह जानना चाहिए कि भारत में प्राचीन काल में महिलाएं न केवल शैक्षिक रूप से‚ बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्ता थीं। उन्हेंे संपत्ति में बराबरी का अधिकार प्राप्ति था। यह केवल कहने के लिए नहीं था‚ बल्कि वे व्यावहारिक रूप से इस शक्ति का इस्तेामाल कर पाती थीं। वे अपने बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर ज्यादा ध्यान दे पाती थीं। यह वैदिक काल से था और इसका उत्कर्ष मगध काल में नजर आता है।
इतिहास साक्षी है कि अलेक्जेंडर की सेना भी मगध की सेना के भय के कारण भारत में प्रवेश किए बिना लौट गई। मगध के पतन के बाद छोटे–छोटे राज्यों का उदय हुआ और वे वर्चस्वत के लिए आपस में लड़ने लगे। इससे देश धीरे–धीरे कमजोर होने लगा और विदेशी ताकतों को भारत में प्रवेश करने का मौका मिला। वे भारत पर आक्रमण करने लगे और अंततः १२वीं सदी के अंत में वे भारत पर प्रवेश कर गए। इसके साथ ही भारत पर विदेशी शक्तियों का कब्जा हो गया और महिलाओं की स्थिति दयनीय हो गई। भारत विश्व में सिंह की तरह गर्व से मस्तंक उठाए रख सकेगा‚ इसके लिए दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की बेटियों को फिर से आर्थिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने बेटी बचाओ‚ बेटी पढ़ाओ योजना‚ मिशन वात्सल्य और मिशन शक्ति के माध्यम से महिलाएं सशक्त किया।
निशुल्क १२ करोड़ गरीबों के घरों में शौचालय का निर्माण‚ पीएम आवास योजना के माध्यम से लगभग ११ करोड़ घर और लगभग १०.५ करोड़ घरों में गैस कनेक्शन देकर‚ मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक को खत्म कर‚ आयुष्मान भारत योजना के तहत ५ लाख रुपये तक इलाज की सुविधा और कार्यरत गर्भवती महिलाओं का अवकाश १२ सप्ताह से बढ़ाकर २६ सप्ताह करने से महिलाओं को मानसिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण किया गया है। युगप्रवर्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महिलाओं को सशक्तन करते हुए भारत को वैश्विक पटल पर मजबूत किया है।