पूरी दुनिया यूक्रेन–रूस के युद्ध को लेकर बेचैन है। भारत की बड़ी चिंता उन विद्यार्थियों को लेकर है‚ जो यूक्रेन में अभी भी फंसे हुए हैं। जो विद्यार्थी जोखिम उठा कर‚ तकलीफ सहकर‚ भूखे–प्यासे रह कर यूक्रेन की सीमाओं को पार कर पा रहे हैं‚ उन्हें ही भारत लाने का काम भारत सरकार कर रही है। पर जो युद्धग्रस्त यूक्रेन के शहरों में फंसे हैं‚ खासकर वो जो सीमा से कई सौ किमी. दूर हैं‚ उनके हालात बहुत नाजुक हैं। ऐसा उन विद्यार्थियों के वायरल होते वीडियो में देखा जा रहा है। इसके साथ ही इस युद्ध से जो दूसरी बड़ी चुनौती है‚ उसके भी दीर्घगामी परिणाम हम भारतवासियों को भुगतने पड़ सकते हैं। सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरु ण कुमार ने भारत की अर्थव्यवस्था पर इस युद्ध के परिणामों को लेकर अध्ययन किया है। प्रो. कुमार के अनुसार वैश्वीकरण के कारण किसी भी जंग का दुनिया के हर हिस्से पर असर पड़ता है। फिर वह युद्ध चाहे खाड़ी के देशों में हो या अमेरिका में। परंतु रूस और यूक्रेन की जंग इन सबसे अलग है। यह युद्ध नहीं‚ बल्कि विश्व की दो महाशक्तियों के बीच टकराव है। एक ओर रूस की सेना है‚ जबकि दूसरी ओर अमेरिका और नाटो द्वारा परोक्ष रूप से समर्थित यूक्रेन की सेना। दो खेमे बन चुके हैं‚ जिनकी तनातनी भारत पर भी असर छोड़ सकती है।
यूक्रेन और रूस के बीच होने वाला यह युद्ध तात्कालिक तौर पर वैश्विक कारोबार‚ पूंजी प्रवाह‚ वित्तीय बाजार और तकनीकी पहुंच को भी प्रभावित करेगा। इस युद्ध में भले ही रूस ने हमला बोला है‚ लेकिन उस पर प्रतिबंध भी लागू हो गया है। आम तौर पर जिस देश पर प्रतिबंध लगाया जाता है‚ उसके साथ होने वाले व्यापार को रोकने की कोशिश भी होती है। फिलहाल‚ दुनिया भर में रूस गैस और तेल का बहुत बड़ा आपूतकर्ता है। अभी इन उत्पादों के कारोबार भले ही प्रतिबंधित नहीं किए गए हैं‚ लेकिन मुमकिन है कि जल्द ही इनके व्यापार पर भी रोक लगे। जाहिर है‚ इसके बाद इनके दाम बढ़ सकते हैं। दूसरी ओर‚ यूक्रेन गेहूं और खाद्य तेलों के बड़े निर्यातकों में से एक है। भारत भी वहां से लगभग १.५ बिलियन डॉलर का सूरजमुखी तेल हर साल मंगाता है। ऐसे में‚ भारत में इन वस्तुओं के आयात प्रभावित होने से खाद्य उत्पादों पर भी असर पड़ेगा यानी युद्ध ऊर्जा‚ धातु और खाद्य उत्पादों के वैश्विक कारोबार को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। प्रो. कुमार के अनुसार‚ रूस पर प्रतिबंध लगने से वहां की पूंजी का प्रवाह भी बाधित होगा। यह वित्तीय बाजारों को प्रभावित करेगा। बाजार में अनिश्चितता का दौर आता है‚ तो बिक्री शुरू हो जाती है। विदेशी निवेशक अपनी पूंजी वापस निकालने लगते हैं। इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) का आना भी कम हो जाता है।
जंग के हालात में सभी देश अपने–अपने निवेशकों को अपने–अपने मुल्क में ही निवेश करने की सलाह देते हैं। इसलिए कि उनकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रहे। इस बार भी ऐसा हो सकता है। तकनीक भी इन सबसे अछूती नहीं रह जाती। चूंकि युद्ध में आधुनिक तकनीक की जरूरत बढ़ जाती है‚ इसलिए बाकी क्षेत्रों के लिए उसकी उपलब्धता कम हो जाती है। अलबत्ता‚ एक क्षेत्र है जहां युद्ध फायदा कराता है‚ और वो है सैन्य साजो–सामान से जुड़े उद्योग। युद्ध के समय उनकी खरीद–बिक्री और उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। सोचने वाली बात है कि यह सब इस पर निर्भर करेगा कि यूक्रेन और रूस का युद्ध कितने समय तक चलता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह जंग लंबी नहीं चलने वाली। रूस १९७९–८९ में हुई अफगानिस्तान वाली गलती को शायद ही दोहराना पसंद करेगा। इसलिए दोनों देशों के बीच बातचीत की मेज सजने की खबर भी आ रही है। मगर तय है कि हाल–फिलहाल में जंग भले ही खत्म हो जाए परंतु युद्ध–उपरांत शीतयुद्ध थमने वाला नहीं। लेकिन इस बार १९५० के दशक जैसा दृश्य नहीं होगा। उस समय सोवियत संघ (वामपंथ) और पश्चिम (पूंजीवाद) की वैचारिक लड़ाई थी। अब तो रूस और चीन जैसे देश भी पूंजीवादी व्यवस्था अपना चुके हैं। इसलिए यह वैचारिक लड़ाई नहीं‚ वर्चस्व की लड़ाई है। इससे दुनिया दो हिस्सों में बंट सकती है‚ जिनमें आपस में ही कारोबार करने की परंपरा जोर पकड़ सकती है। ऐसा होता है तो आपस में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला खला भी प्रभावित होगी। इसी कारण हमें भारत में महंगाई का सामना भी करना पड़ सकता है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि युद्ध से दुनिया भर में मंदी और महंगाई बढ़ सकती है। रूस की कंपनियों पर प्रतिबंध से वैश्विक कारोबार प्रभावित होगा।
हालांकि‚ पश्चिमी देश कोशिश में हैं कि पेट्रो उत्पादों का अपना उत्पादन बढ़ा दें और ओपेक देशों से भी ऐसा करने की गुजारिश की जा सकती है। फिर भी‚ पेट्रो उत्पादों की घरेलू कीमतें बढ़ना तय है। इनकी कीमत बढ़ते ही अन्य चीजों के दामों में भी तेजी आएगी। चूंकि बाजार में बहुत ज्यादा पूंजी नहीं है‚ इसलिए माना जा रहा है कि पहले की तुलना में महंगाई ज्यादा असर डालेगी। आयात बढ़ने और निर्यात कम होने से भी भुगतान–संतुलन बिगड़ जाएगा।
इस अनिश्चितता के दौर में सोने की मांग भी बढ़ सकती है‚ जिससे इसका आयात भी बढ़ सकता है। इससे रुपया कमजोर होगा और स्थानीय बाजार में इसकी कीमत बढ़ सकती है यानी दो–तीन रास्तों से महंगाई सामने आने वाली है। प्रो. कुमार का मानना है कि यूक्रेन–रूस युद्ध के दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर कुछ अन्य असर भी हो सकते हैं। जैसे दुनिया भर के देशों का बजट बिगड़ सकता है। सभी देश अपनी सेना पर ज्यादा खर्च करने लगेंगे। इससे वास्तविक विकास तुलनात्मक रूप से कम हो जाएगा और राजस्व में भी भारी कमी आएगी। महंगाई से कर वसूली बढ़ती जरूर है‚ लेकिन राजस्व घाटा बढ़ता जाता है‚ जिसके बाद सरकारें सामाजिक क्षेत्रों से हाथ खींचने लगती हैं। जनता प्रभावित होती है। भारत भी अपवाद नहीं होगा। मुमकिन है कि वैश्वीकरण की अवधारणा से भी अब सरकारें पीछे हटने लगें‚ जिसका नुकसान विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों को होगा।