योजना एवं विकास मंत्री बिजेंद्र यादव (Planning and Development Minister Bijendra Yadav) ने कहा है कि नीति आयोग ने प्रदेश के क्रमिक विकास (इंक्रीमेंटल इंप्रूवमेंट) को पूरी तरह दरकिनार किया है। यदि इस मानक को मापदंड में शामिल किया गया होता तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के दावे को और बल मिलता। विशेष राज्य का दर्जा मिलता तो विकास कार्यों के लिए संसाधनों की उपलब्धता आसान हो जाती। मंत्री गुरुवार को विधान परिषद में सदस्य नीरज कुमार के ध्यानाकर्षण पर जवाब दे रहे थे।
विकसित और विकासशील राज्यों के विकास का मापदंड एक कैसे
मंत्री ने कहा कि नीति आयोग ने विकसित और विकासशील राज्यों के लिए गरीबों के मापदंड को एक समान रखा है। लेकिन विकास के विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग राज्यों में विकास सूचकांक की प्राथमिकता बदलती है। बिहार की आर्थिक वृद्धि दर वर्ष 2005-06 में -1.69 प्रतिशत थी। लेकिन 2006-07 में वृद्धि दर स्थिर मूल्य पर 16.18 प्रतिशत हो गई। जो कि राष्ट्रीय विकास दर 9.57 प्रतिशत से काफी अधिक रही। उन्होंने कहा केंद्र के आंकड़ों के अनुसार बिहार की वृद्धि दर वर्ष में 2016-17 में 8.9 प्रतिशत, वर्ष 2018-19 में 9.3 प्रतिशत तथा वर्ष 2019-20 में 10.5 प्रतिशत रही, जो राष्ट्रीय वृद्धि से अधिक है।
गरीबी रेखा के नीचे की आबादी घटी
कहा कि, वर्ष 2014-15 से 2019-20 की अवधि में प्रदेश में प्रति व्यक्ति विकास व्यय में 17.9 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि रही। उस वक्त राष्ट्रीय औसत 11.6 प्रतिशत ही रही। 2004-05 में बिहार की 54.4 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे थी जो वर्ष 2011 में घटकर 33.7 हो गई। महज सात वर्षों में गरीबी दर में 20.7 प्रतिशत की कमी हुई थी। मंत्री ने सदन को बताया कि बिहार में 2005 में 10वीं बोर्ड की परीक्षा में 5.6 लाख बच्चे शामिल हुए। इसके बाद बालिका साइकिल, कन्या प्रोत्साहन जैसी योजनाओं के प्रभाव से बालिकाओं के नामांकन और शैक्षणिक उपलब्धियों में बड़ी उछाल आई।
क्रमिक रफ्तार को नीति आयोग ने किया दरकिनार
मंत्री ने अपने जवाब में स्वास्थ्य, कृषि क्षेत्र, बिजली, जीवन स्तर में सुधार, घर तक शुद्ध पेयजल समेत अन्य योजनाओं का हवाला देकर कहा कि हमने विकास के लिए जो क्रमिक रफ्तार अपनाई और लक्ष्य प्राप्ति के लिए जो कदम उठाए वैसे इंक्रीमेंटल इंप्रूवमेंट को नीति आयोग ने सीधे-सीधे दनकिनार कर दिया।