हाल के समय में प्रारंभिक स्तर पर नामांकन में स्पष्ट रूप से सुधार हुआ है। २०१९–२० में प्राथमिक स्तर पर कुल नामांकन १३९.४७ लाख था‚ जिसमें ६८.१३ लाख लडकियां थीं और ७१.३४ लाख लडके। उसी वर्ष में अनुसूचित जाति के २७.२७ लाख और अनुसूचित जनजाति के ३.३८ लाख विद्यार्थियों का प्राथमिक स्तर पर नामांकन हुआ। उसी के अनुरूप २०१९–२० में उच्च प्राथमिक स्तर पर कुल ६९.२९ लाख नामांकन हुआ। ६९.२९ लाख में ३४.२६ लाख लडकिया था और ३५.०३ लाख लडके। विधान सभा में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात निकल कर आयी है।
वर्ष २०१२–१३ से २०१९–२० तक के रुझान को देखने पर दिखता है कि लडकों और लडकियों के बीच का फासला प्राथमिक और उच्च प्राथमिक‚ दोनों स्तरों पर क्रमशः घट रहा है। यहां गौरतलब है कि २०१२–१३ से २०१९–२० के बीच अनसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों का नामांकन क्रमशः ३३.४ प्रतिशत और ५०.५ प्रतिशत बढा है जो निश्चित तौर पर शिक्षा में घटती सामाजिक असमानता का संकेत देता है। कुल मिलाकर‚ २०१९–२० में प्रारंभिक स्तर पर हुए कुल २०८.७६ लाख नामांकन में लडकों की संख्या १०६.३७ लाख थी जो लडकियों की संख्या से थोडी ही अधिक है। अनसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के नामांकन के मामले में भी लडकों की संख्या लडकियों से कुछ अधिक थी। इस लैंगिक अंतराल को घटाने के लिए अधिक प्रयास करने की जरूरत है। वर्ष २०१९–२० में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक‚ दोनो स्तरों पर नामांकन के मामले में जिलों में काफी अंतर है। प्राथमिक स्तर पर सर्वाधिक ७.४० लाख नामांकन मधुवनी में दर्ज हुआ और उसके बाद ७.२७ लाख पूर्वी चंपारण में इसी प्रकार‚ उच्च प्राथमिक स्तर पर सर्वाधिक ३.४० लाख नामांकन पटना में और उसके बाद ३.३३ लाख पूर्वी चंपारण में दर्ज हुआ। इसके विपरीत सबसे कम नामांकन वाले दो जिले और शेखपुरा थे। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की बात करें‚ तो दोनो स्तरों पर सर्वोतम प्रदर्शन वाला जिला नालंदा (२.६७ लाख) और सबसे कमजोर प्रदर्शन वाला जिला किशनगंज (०.२५ लाख) था॥। साक्षरता सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण साधन है। वर्ष २०११ में भारत में साक्षरता दर ७२.९ प्रतिशत थी। पुरुष साक्षरता ८०.९ प्रतिशत थी और महिला साक्षरता ६४.६ प्रतिशत। उस वर्ष बिहार में साक्षरता दर ६१.८ प्रतिशत थी। जिसमें पुरुष साक्षरता दर ७१.२ प्रतिशत और महिला साक्षरता दर ५२.५ प्रतिशत। लेकिन २००१ से २०११ के बीच बिहार में साक्षरता दर १७.९ प्रतिशत अंक बढी थी जबकि पूरे देश में १०.९ प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई थी। उल्लेखनीय है कि यह दशकीय वृद्धि बिहार में १९६१ से अब तक ही सर्वाधिक नहीं है। २००१ से २०११ के दशक में सभी राज्या के बीच भी सर्वाधिक है। बिहार में संपूर्ण भारत की तरह लैंगिक अंतराल भी घटा है। जिलावार साक्षरता दरों को लिंग और निवास स्थान के आधार पर तुलना करने पर दिखता है कि सर्वाधिक २४.४ प्रतिशत अंकों की दशकीय वृद्धि किशनगंज में दर्ज की गई थी।
दूसरी ओर‚ पटना में सबसे कम ७.८ प्रतिशत अंकों की दशकीय वृद्धि दर्ज हुई थी क्योंकि वहां २००१ में ही साक्षरता दर उची थी। राज्य में शिक्षा प्रणालों तीन स्तरों में विभाजित है प्रारंभिक‚ माध्यमिक और उच्च शिक्षा संचालन के स्तर पर प्रारंभिक शिक्षा को आम तौर पर दो भागों में बांटा जाता है। पांच वषोंर् की प्राथमिक शिक्षा (कक्षा १ से ५) और उसके बाद तीन वषोंर् को उच्च प्राथमिक शिक्षा (कक्षा ६ से ८)। इसी प्रकार‚ माध्यमिक शिक्षा के भी दो स्तर है। दो वषोंर् को माध्यमिक शिक्षा (कक्षा ९ और १०) तथा दो वषोंर् को उच्च माध्यमिक शिक्षा (कक्षा ॥ और १२)। उच्च शिक्षा का अंतिम चरण भी दो धाराओं में विभाजित है। अकादमिक धारा और व्यावसायिक धारा।
अकादमिक धारा का मकसद विद्यार्थियों को आगे विश्वविद्यालय या अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में पढने के लिए तैयार करना है जबकि व्यावसायिक धारा विद्यार्थियों को काम या आगे की व्यावसायिक शिक्षा के लिए तैयार करती है। अगर छीजन दर भी अधिक हो‚ तो विद्यार्थियों की उच्च नामांकन दर बहुत महत्व नहीं रखती है। छीजन दर किसी खास स्कूल वर्ष में किसी खास कक्षा में पढाई छोडने वाले विद्यार्थियों के प्रतिशत को व्यक्त करती है। बिहार में वाछित शैक्षिक स्तर तक पढाई पूरी करने के पहले काफी अधिक विद्यार्थियों द्वारा पढाई छोड देने की परिघटन एक समस्या है। इस तरह पढाई छोडने के पीछे मौजूद सारे कारकों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। आर्थिक कारक‚ सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक तथा विद्यालय का वातावरण और अधिसंरचना। बिहार के मामले में ये सारे कारक अलग–अलग मात्रा में प्रभाव डालते हैं।
वर्ष २०१२–१३ से २०१९–२० के बीच प्राथमिक स्तर पर छीजन दर में ९.० प्रतिशत अंक की और उच्च प्राथमिक प्रतिशत स्तर पर ७.९ प्रतिशत अंकों की गिरावट आई। वर्ष २०१२–१३ में प्राथमिक स्तर पर लडकियों की छीजन दर २६.३ प्रतिशत थी जो ५.९ प्रतिशत अंकों की कमी दर्शाते हुए २०१९–२० में घटकर २०.४ प्रतिशत रह गई। वहीं‚ लडकों की छीजन दर ११.२ प्रतिशत अंक घटकर २०१२–१३ के ३६.० प्रतिशत से २०१९–२० में २४.८ प्रतिशत रह गई। इसी प्रकार‚ २०१२–१३ से २०१९–२० के बीच उच्च प्राथमिक स्तर पर छीजन दर लडकियों के लिए १.४ प्रतिशत अंक और लडकों के लिए १२.३ प्रतिशत अंक घटी। साथ ही‚ २०१९–२० में प्राथमिक स्तर पर लडकियों की छीजन दर लडकों से कम थी। उच्च प्राथमिक स्तर पर भी ऐसा हो रूझान दिखा जहां लडकियों की छीजन दर ३७.३ प्रतिशत और सडकों की ४०.१ प्रतिशत थी। हालांकि माध्यमिक स्तर पर छीजन दरें प्रारंभिक स्तरों से काफी अधिक थीं। माध्यमिक स्तर पर छीजन दर २०१९–२० में ६३.५ प्रतिशत भी जो २०१२–१३ के ६२.८ प्रतिशत से ०.७ प्रतिशत अंक अधिक है। हालांकि लडकों की छीजन दर में ४.४ प्रतिशत अंकों को गिरावट दर्ज हुई लेकिन लडकियों के मामले में यह उलटा था। कुल मिलाकर चिंता की बात यह है कि बिहार में कक्षा में नामांकित ३६.५ प्रतिशत विद्यार्थी माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं। उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले विद्यार्थियों का अनुपात और भी घट जाता है। जहां तकलैगिंक अंतरों की बात है‚ तो सराहनीय बात है कि प्रारंभिक स्तर पर छात्राओं की छीजन दरें छात्रों से कम हैं। लेकिन माध्यमिक स्तर पर हमें छलांग भराने की जरूरत है। इस प्रकार‚ राज्य में प्रारंभिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लक्ष्य को दिशा में काफी प्रगति हुई है लेकिन इसे माध्यमिक स्तर पर भी बढावा देने का प्रयास किया जाना चाहिए। राज्य में आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास को तेज करने के लिए अकेले इसी से अधिक मानव पूंजी तैयार होगी।
उच्च प्राथमिक और माध्यमिक दोनों स्तरों पर अनुसूचित जाति को लडकियों की छीजन दर अनुसूचित जाति के लडकों की अपेक्षा नीचे रही हैं। वहीं‚ प्राथमिक स्तर पर यह दर लडकों की दरों के लगभग बराबर हैं। गौरतलब है कि उच्च प्राथमिक स्तर पर २०१२–१३ से २०१९–२० के बीच अजा लडकियों की छीजन दर में ९३ प्रतिशत अंकों की कमी आई। वहाँ इस अवधि में अजा लडकियों की छीजन दर में प्राथमिक स्तर पर २.६ और माध्यमिक स्तर पर २.७ प्रतिशत अंकों की कमी आई। इसी प्रकार‚ अजजा विद्यार्थियों के मामले में सभी स्तरों पर छीजन दरें लडकों की अपेक्षा लडकियों के लिए कम था। शिक्षा ज्ञान और कौशल प्राप्ति में भी लोगों की मदद करती है और उन्हें सार्थक आर्थिक और सामाजिक भागीदारों में सक्षम है। आर्थिक वृद्धि और मानव विकास में इन सभी का योगदान होता है। शिक्षा को मुख्य प्राथमिकताएं पहुंच समता और इस खंड में राज्य में शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य सरकार को पहलकदमियों का विश्लेषण किया गया है जिसमें शैक्षिक इनपुट (शैक्षिक संस्थानों की संख्या और विनीय तथा परिणाम (साक्षरता दर नामांकन अनुपात और छीजन दर) दोनों को ध्यान में रखा गया है।
केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेप)‚ २०२० में शिक्षा के सभी स्तरों पर सकल नामांकन अनुपात में सुधार लाने के लिए कई उपाय प्रस्तावित किए गए हैं। इस नीति ने १९८६ में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की जगह ले ली है। इन उपायों में सभी बच्चों को सर्वव्यापी पहुंच और अवसर उपलब्ध कराना‚ प्रभावी और पर्याप्त अधिसंरचना‚ सुरक्षित आवागमन और छात्रावास (खास कर छात्राओं के लिए)‚ विद्यालय–त्यागी बच्चों को पुनः विद्यालय में लाना‚ और अधिक संख्या में उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षिक संस्थानों की स्थापना करना शामिल हैं। इस प्रीपेक्षय में २०३० तक विद्यालय–पूर्व से लेकर माध्यमिक स्तर तक शत–प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात हासिल करने के लिए राज्य सरकार द्वारा लक्ष्य तय किए गए हैं। नई नीति में स्कूली शिक्षा को अनिवार्यता वाले उम्र समूह का विस्तार करके ६ से १४ वर्ष की जगह ३ से १८ वर्ष कर दिया गया है। नई प्रणाली में तीन वषोंर् की आंगनवाडी/प्री–स्कूलिंग के अलावा १२ वषोंर् की स्कूली शिक्षा होगी। इन सभी का आर्थिक वृद्धि और मानव विकास में योगदान होगा।